Monday, August 26, 2013

मोर,कबूतर और आदमी

      मोर,कबूतर और आदमी

झिलमिलाते सात रंग है ,मोर के पंखों में सब,
नाचता है जब ठुमुक कर ,मोरनी को लुभाता
गौर से गर्दन कबूतर की अगर देखोगे तुम,
जब कबूतरनी को पटाने ,है वो गरदन हिलाता
रंग तब मोरों के पंखों के है सारे उभरते ,
गुटरगूं कर मटकाता है कबूतर गर्दन है जब
कबूतरनी मुग्ध होकर ,फडफडाती पंख है ,
प्यार का ये निमंत्रण मंजूर होता उसको तब
पंछियों के प्यार से ये सीखता है आदमी ,
पत्नीजी के इशारों पर ,नाचता है मोर सा
पत्नीजी को पटाने को वो कबूतर की तरह ,
हिलाता रहता है गर्दन ,हो बड़ा कमजोर सा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संत

          संत

एक आदमी जो प्रवचन में सीटी बजाता है
नौटंकी करता है ,नाचता गाता है
लोगों को मर्दानगी की दवा बतलाता है
लोगो की जमीनो को  हड़पता है
मासूम बच्ची से  बलात्कार करता है
काले जादू के चक्कर में बच्चों की बलि चढ़ाता है
आज के युग में वो संत कहलाता है
घोटू

जवानी सलामत- बुढ़ापा कोसों दूर है

जवानी सलामत- बुढ़ापा कोसों दूर है

हम तो है ,कोल्ड स्टोरेज में रखे आलू ,
जब भी जरुरत पड़े,लो काम में,हम ताज़े है
ज़रा सी फूंक जो मारोगे ,लगेगे बजने ,
हम तो है बांसुरी ,या बिगुल,बेन्ड बाजे है
पुरानी चीज को रखते संभाल कर हम है ,
चीज 'एंटिक 'जितनी,उतना दाम बढ़ता है
बीबियाँ वैसे कभी पुरानी नहीं पड़ती ,
ज्यों ज्यों बढ़ती है उमर ,वैसे  प्यार बढ़ता है
वैसे भी दिल हमारा एक रेफ्रिजेटर  है ,
उसमे जो चीज रखी ,सदा फ्रेश  रहती है
हमारी बीबी सदा दिल में हमारे रहती ,
प्यार में ताजगी जो हो तो ऐश रहती  है
समय के साथ,जब बढ़ती है  उमर तो अक्सर,
लोग जाने क्यों ,खुद को बूढा समझने लगते
आदमी सोचता है जैसा,वैसा हो जाता ,
सोच कर बूढा खुद को बूढ़े  वो लगने लगते
सोच में अपने न आने दो उमर का साया,
जब तलक ज़िंदा हो तुम और जिंदगानी है
जब तलक है जवान मन और सोच तुम्हारा,
समझ लो ,तब तलक ही ,सलामत जवानी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्यार का गणित

          प्यार का गणित

प्यार करने में दर्जा माँ का ,है सबसे अधिक ऊपर ,
गर्भ से जब तलक ज़िंदा ,तुम्हारा ख्याल रखती है
पिताजी भी है करते प्यार ,पर थोड़े कड़क होते ,
मगर उतना नहीं,जितना कि माता प्यार करती है
प्यार करते है ,भाई बहन भी,जब तक न हो शादी,
मगर उपरान्त शादी के ,बदल जाता गणित सब है
और फिर जबसे आजाती है बीबी ,जिंदगानी  में,
टॉप पर प्यार करने की ,बीबियाँ जाती चढ़ अब है
बाद में ,बच्चे होते,वो भी तुमको प्यार करते है,
मगर जब शादी करके ,जाता है बस,उनका अपना घर
प्यार में अपनी बीबी के ,तुम्हे देते भुला बेटे,
मगर देखा गया है ,ख्याल रखती,बेटियां अक्सर
प्यार करते है बाकी और भी ,पर औपचारिक है,
लिमिट में ही करते प्यार तुमसे,दोस्त जो सारे
बुढापे में,तुम्हारा ख्याल रखती ,सिर्फ बीबी है ,
यही होता गणित है प्यार का  ,संसार में प्यारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जंगल का कानून

    जंगल का कानून

आजकल तो हो गया जंगल का ये कानून है ,
की यहाँ पर कोई भी ,चलता नहीं क़ानून है
आम जनता सांस भी ले ,तो है ये उसका कसूर ,
और दबंगों के लिए तो,माफ़ सारे खून है  ,
रुपय्ये की साख गिरती जा रही है दिन ब दिन,
और चढ़ते आसमां पर ,जा रहे सब दाम है
आजकल बेख़ौफ़ होकर घूमते  है  दरिन्दे ,
औरतों की अस्मतों को ,लूटना अब आम है
जेल भरने के जो काबिल ,जेब भरते नेता बन,
करते खुल के गुंडा गर्दी , छूट है उनको  खुली
हो गयी है बड़ी गंदी ,राजनीति  इस तरह ,
माफिया को बचाने ,मासूम चढ़ते है सुली
शेर ने तो बाँध रख्खी ,अपने मुंह पर पट्टियाँ ,
रंगे सियारों के हाथों ,चल रही सरकार है
खाने के अधिकार का भी ,बन रहा क़ानून है ,
खूब खाओ,खाने का अब ,कानूनी अधिकार है
राजनीति ,आजकल ,पुश्तेनी धंधा बन गया ,
जिधर भी तुम हाथ डालोगे,उधर ही पोल है
गोलमालों का यहाँ पर ,सिलसिला थमता नहीं ,
इसका कारण ,ये भी है ,संसद भवन ही गोल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'