Wednesday, March 26, 2025

गुलाब की पंखुड़ी 

सुंदर गुलाब की तू पंखुड़ी 

तेरा स्पर्श मुलायम है तुझसे खुशबू उमड़ी उमड़ी 

मखमली गुलाबी रंगत है,तू है गोरी के अधर चढ़ी 
तू ताजी ताजी नरम नरम चिकनी चिकनी निखरी निखरी 
वरमाला सी तू गले लगी और मिलन सेज पर तू बिखरी 
काम आई ईश वंदना में ,तू भाग्यवान प्रभु चरण चढ़ी 
तू मुझे देखकर मुस्कुराई ,अपनी तो किस्मत निकल पड़ी 
सुंदर गुलाब की तू पंखुड़ी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चाहत 

तुम्हें लौकी पसंद है तो पकाओ और खाओ तुम

मैं हूं पकवान का प्रेमी, मुझे हलवा खिलाओ तुम

पसंद हर एक इंसान की, होती अपनी-अपनी है,

पसंद तुम मेरे दिल की हो बस इतना जान जाओ तुम 
2
तुम्हारी आंख में बसता,भले ही काला काजल मै

 भरा हूं भावनाओं से,बड़ा गहरा हूं बादल मैं 

ये चाहत है मैं जब बरसूं,तेरा अंगना हो तू भीजे

रहे तू सामने हरदम , निहारूं तुझको पल-पल मै 
3
कसम तुमको मेरे दिल की ,कभी भी दूर मत होना 
जमाना लाख रोके पर ,कभी मजबूर मत होना

भले ही हुस्न बरपा है, खुदा ने अपने हाथों में,
चांदनी चार दिन की है ,कभी मगरूर मत होना
4
तुम्हारा चांद सा चेहरा ,वो जब मेरे करीबआया

उठी लहरें समंदर में,जलजला एक अजीब आया

 हमारा मिलना आपस में,खुदा ने ही लिखा होगा,
जो इतनी पास दोनों को हमारा यह नसीब लाया
 
मदन मोहन बाहेती घोटू 
किस्मत 

नहीं कुछ हाथ लगना है तो गम खाने से क्या होगा 
जहां ना दाल गलनी है, वहां जाने से क्या होगा

यही वह सोच है जो रोकती है हमको पाने से,

चुग गई खेत जब चिड़िया,तो पछताने से क्या होगा 
2
सकेगा रोक ना कोई, लिखा होगा जो किस्मत में

 परेशान व्यर्थ होते हो, यूं ही कोई की चाहत में

अगर जो ना मिला कोई, तुम्हें जीते जी दुनिया में,

यकीन मानो हजारों हूरें, मिल जाएगी जन्नत में

मदन मोहन बाहेती घोटू 

असर


जीतता ट्रंफ यू एस ए,मेरे शेयर लुढ़क जाते 


रूस यूक्रेन लड़ते तो भाव सोने की बढ़ जाते 


मेरे खाने में मिर्ची और नमक अनुपात बढ़ जाता,

 हमारा झगड़ा होता जब, तेरे तेवर में चढ़ जाते 


मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, March 23, 2025

हमेशा मुस्कराएं हम 
1
न कोई मेरा दुश्मन है, नहीं कोई विरोधी है

फसल ऐसी मोहब्बत की,सभी के दिल में बो दी है 
कोई ने फेंका पत्थर तो, मैंने उत्तर में फल बांटे,

भलाई करने वालों की, हमेशा जीत होती है 
2
कभी हम तुममें झगड़ा था चलो अब भूल जाएं हम 
मिलाएं हाथ हाथों से और दिल से दिल मिलाएं हम 
बड़ी रंगीन और सुंदर लगेगी तुमको यह दुनिया,
जहां बस प्यार ही हो प्यार ,हरदम मुस्कुराए हम

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मेरी फितरत 
1
मैं सबसे प्यार करता हूं ,मेरी फितरत बड़ी सादी 
मैं दादा हूं मगर दादा गिरी मुझको नहीं आती 
मैं देता सबको इज्जत हूं, मुझे भी मिलती है इज्ज़त, 
रहे यह जिंदगी हरदम, खुशी से यूं ही मुस्काती
2
मुझे कोई से कुछ शिकवा नहीं है ना शिकायत है 
जो होता है, वह होना था, समझना मेरी आदत है 
किसी से भी ,कभी कोई, अपेक्षा ना मेरे मन में, 
मोहब्बत मैं लुटाता हूं ,मुझे मिलती मोहब्बत है 
3
बची है जिंदगी कुछ दिन, बुढ़ापे की हकीकत है 
ना देती साथ काया है, मुसीबत ही मुसीबत है 
मेरा परिवार ,दोस्त और यार , लुटाते प्यार है मुझ पर ,
कमाई मैंने जीवन में ,अभी तक यह ही दौलत है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, March 21, 2025

जिंदगी का सफर 


1

हमारी जिंदगानी में मुसीबत आनी जितनी है 

न तेरी है ना मेरी है, हमारी है वो अपनी है 

हमें मिलजुल के करना सामना है उनसे लड़ना है,

तभी यह जिंदगानी शान से अपनी गुजरनी है

2

 कठिन पथ जिंदगी का है हमें जिससे गुजरना है

 मिला कर कंधे से कंधा ,हमेशा साथ चलना है

ना तो मतभेद हो कोई,नहीं मनभेद हो कोई,

बदल कर एक दूजे को, एक सांचे में ढलना है

3

तभी हम काट पाएंगे,विकट जीवन, कठिन पथ को 

रहेंगे जो सभी से मिल, बना रखेंगे इज्जत को

किसी की भावना को,ठेस ना पहुंचाएंगे हम , 

लगेगी ना नजर कोई की अपनी इस मोहब्बत को


मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, March 20, 2025

बुढ़ापे की झलकियां 

1
उम्र बढ़ती, बुढ़ापे का ,बड़ा दुखदाई है रस्ता 
है मेरे हाल भी खस्ता ,है उसके हाल भी खस्ता 
मगर बासंती मौसम सा, हमारा प्यार का आलम 
फूल मुरझाए, खुशबू से ,महकता फिर भी गुलदस्ता
रहा ना जोश यौवन का, नहीं पहले सी मस्ती है
 मैं 84 का लगता हूं ,वह भी 80 की लगती है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,हमारा यह तरीका है 
मैं उसका ख्याल रखता हूं, वो मेरा ख्याल रखती है 
3
जगाती है सुबह पत्नी, पिलाकर चाय का प्याला
कभी चुंबन भी दे देती, तो कर देती है मतवाला 
उसे जब धुंधलीआंखों से प्यार से देखता हूं मैं, 
भले झुर्री भरा तन हो, मगर लगती है मधुबाला
4
ढल गए सब जवानी के, रहे नाम हौसले बाकी 
उड़े बच्चे,जो पर निकले,है खाली घोंसले बाकी 
उम्र बढ़ती के संग सीखा, है हमने मन को बहलाना ,
मोहब्बत हो गई फुर्र है,बचे अब चोंचले बाकी
5
उचटती नींद रहती है ,कभी सोता कभी जगता 
सुने बिन उसके खर्राटे, ठीक से सो नहीं सकता 
बन गए एक दूजे की जरूरत इस कदर से हम, 
वह मुझ बिन जी नहीं सकती, मैं उस बिन जी नहीं सकता 
6
हमारी जिंदगानी का, ये अंतिम छोर होता है
वक्त मुश्किल से कटता है, ये ऐसा दौर होता है
सहारा एक दूजे का , हैं होते बूढ़े और बुढ़िया,
बुढ़ापे की मोहब्बत का मजा कुछ और होता है

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, March 14, 2025

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है 
*एक विकसित होती हुई कन्या की मनोदशा*

उछलते कूदते कट रहा था बचपन 
पर बढ़ती हुई उम्र ले आई परिवर्तन 
तन-बदन में आने लगी बदलाव की आहट 
मन में होने लगी थोड़ी सी घबराहट 
आईने में खुद को निहारने का शौक बढ़ गया धीरे-धीरे मुझ पर जवानी का रंग चढ़ गया 
मन की गतिविधि जाने कहां भटकाने लगी बिना मतलब के ही कभी-कभी हंसी आने लगी अल्हड़ बचपन अब कुछ शर्मिला होने लगा 
मैं बड़ी हो गई हूं मन में यह एहसास जगा 
लोगों की निगाहें बदन को बेंधने लगी 
आ गया थोड़ा चुलबुलापन और दिल्लगी 
तो क्या अब मेरे उड़ जाने के दिन आ रहे हैं 
एक नया संसार बसाने के दिन आ रहे हैं 
जिस घर में मैं पली ,बड़ी, उसे छोड़ना होगा एक अनजान परिवार से नाता जोड़ना होगा अपने मां-बाप के लिए में पराई हो जाऊंगी अपने पति की प्रीत में इतना खो जाऊंगी 
ना पिताजी की डांट ना मम्मी का अनुशासन अब एक नए घर में चलेगा मेरा शासन 
मेरा एक पति होगा ,नया घर बार होगा 
मैं घर की रानी बनूगी ,नया संसार होगा
मेरा जीवन साथी मेरी हर बात मानेगा
मुझे अपने मां-बाप से भी बढ़कर जानेगा 
मेरे भी बच्चे होंगे जिन्हें मैं पालूंगी प्यार से 
और जुड़ जाऊंगी एक नए परिवार से 
मगर अगर सास खडूस और हुई तानेबाज छोटी-छोटी बातों पर अगर हुई नाराज 
अगर जुल्म करेगी तो सह ना पाऊंगी 
पति के साथअपना अलग घर बढ़ाऊंगी
अरे मैं पगली कहां से कहां भटक गई 
जीवन के आने वाले दौर में अटक गई 
अभी तो मुझे पढ़ना लिखना है, बड़ा होना है काबिल बनना है अपने पैरों खड़ा होना है 
पहले एक स्वावलंबी नारी बनूंगी 
फिर किसी की दुल्हन दुलारी बनूंगी 
हम औरतों की भी अजब जिंदगानी है 
बचपन किसी का और किसी की जवानी है शादी के बाद जीवन में बड़ा मोड़ आता है 
अपने मां-बाप भाई बहन को छोड़ आता है एकदम बदले वातावरण में निभाना पड़ता है सास ससुर और पति का प्यार पाना पड़ता है जिसको मुश्किल होताअपने कपड़े संभालना 
उसे पड़ता है पूरी गृहस्थी संभालना
किस्मत में क्या है ,कौन और कैसा लिखा है संघर्ष लिखा है गरीबी या पैसा लिखा है 
जो भी हो जैसा होगा देखा जाएगा 
पर अभी तो पढूं क्योंकि जीवन में यही काम आएगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सोना या पीतल 

मैं यही जानने बेकल हूं 
मैं सोना हूं या पीतल हूं 

दोनों एक जैसे रंगत में 
पर फर्क बहुत है कीमत में 
एक से बनते हैं आभूषण 
एक से बनते घर के बर्तन 
एक से गौरी का तन सजता 
एक जीवन की आवश्यकता 
बर्तन में पकता है भोजन 
और खाना खाते हैं सब जन 
पीतल के ही लोटा गिलास 
जिनसे पानी पी, मिटे प्यास 
अग्नि पर नित्य चढ़ा करते 
होते हैं शुद्ध रोज मँझते 
अति आवश्यक है जीवन में 
है बहुत मधुरता खनखन में 
सोना पीतल सा रंगीला 
यह भी पीला वह भी पीला 
लेकिन सोना आभूषण बन 
करता सज्जित नारी का तन
गौरी सोलह सिंगार करे
हर कोई स्वर्ण से प्यार करें 
पर जब होता कोई उत्सव 
तब दिखता सोने का वैभव 
वरना अक्सर चोरी डर से 
वह नहीं निकलता लॉकर से 
श्रृंगार प्रिया का सजवाता 
जब होता मिलन ,उतर जाता 
बहुमूल्य न ,बन बहुउपयोगी 
जीना मेरी किस्मत होगी 
काम आता सबके संग पल-पल 
मैं स्वर्ण न, अच्छा हूं पीतल

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, March 9, 2025

कोई उलाहना नहीं चाहिए 

चाह थी कुछ करूं, मैंने कोशिश की,
 कर न पाया तो बहाना नहीं चाहिए 
मैं क्यों क्या किया और क्या ना किया ,
यह किसी को दिखाना नहीं चाहिए
 मैंने यह न किया, मैंने वह ना किया
 मुझको कोई उलाहना नहीं चाहिए 
मैंने जो भी किया, सच्चे दिल से किया
 मुझको कोई सराहना नहीं चाहिए
 काम आऊं सभी के यह कोशिश थी 
मुझसे जो बन सका मैंने वह सब किया 
चाहे अच्छा लगा या बुरा आपको 
तुमने जैसे लिया ,आपका शुक्रिया

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नया सवेरा 

चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा कल फिर ,नया एक सवेरा 
प्राची में फिर से, प्रकटेगा सूरज
 चमकेगी किरणें ,मिटेगा अंधेरा 

बादल गमों के, बिखर जाएंगे सब 
खुशी के उजाले, नजर आएंगे अब 

वृक्षों में पत्ते ,विकसेंगे फिर से ,
चहचहाते पंछी, करेंगे बसेरा 
चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा फिर कल, नया एक सवेरा 

आशा के पौधे, पनपेंगे फिर से ,
आएगा प्यारा ,बहारों का मौसम 
महकेगी बगिया ,कलियां खिलेगी,
 गूंजेगा फिर से , भ्रमरों का गुंजन

 गुलशन हमारा, गुलजार होगा
 फिर से सुहाना ,यह संसार होगा 

शुभ आगमन होगा, अच्छे दिनों का
 बरसाएगा सुख ,किस्मत का फेरा 
चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा कल फिर,नया एक सवेरा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Saturday, March 8, 2025

कबूतर को दाना 


 खिलाते जो हम हैं कबूतर को जाना 

एक दिन हमारे दिल ने यह जाना 

हम जो ये सारा करम कर रहे हैं 

जिसे सोचते हम धरम कर रहे हैं 

धर्म ऐसा कैसा कमा हम रहे हैं 

सभी को निठल्ला बना हम रहे हैं 

जिन्हें पेट भरने ,कमाने को दाना 

सवेरे को उड़कर के पड़ता था जाना

उन्हें पास मिल जाता है ढेरों दाना 

मुटिया रहे जिसको खा वो रोजाना 

खिलाने का दाना,करम आपका यह 

धर्म का नहीं है, करम पाप का यह

हुए जा रहे हैं आलसी सब कबूतर 

फैला रहे गंदगी घर-घर जाकर

मानो न मानो मगर सच यही है

इनकी नस्ल आलसी हो रही है


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुढ़ापे का प्यार 

जवानी का प्यार 
बहार ही बहार 
सौंदर्य का आकर्षण 
प्रेमी हृदयों की तड़पन 
यौवन की आकुलता 
मिलन की आतुरता 
उबलता हुआ जोश 
भोग का संयोग 
गर्म रक्त का प्रवाह 
चाह और उत्साह 
पर बढ़ती हुई उम्र के साथ
 बदल जाते हैं हालात 
जवानी का आकर्षण 
बन जाता है समर्पण 
तन का क्षरण हो जाता 
रिश्तो मेंअपनापन आता 
फिर आगे बढ़ता सिलसिला 
बच्चे छोड़ देते हैं घोसला
 बनते एक दूसरे की जरूरत 
प्रकट होती है असली मोहब्बत
बुढ़ापे का दर्द जब सहा नहीं जाता
 एक दूसरे के बिन रहा नहीं जाता 
पैरों में दर्द है पत्नी चल नहीं पाती 
फिर भी पति के लिए चाय बनाती 
पति पत्नी के सर बाम मलता है 
हमेशा उसके इशारों पर चलता है 
अपना सुख-दुख आपस बांटते हैं 
एक दूसरों के पैर के नाखून काटते हैं
बुढ़ापे की मजबूरी में होता है यह हाल 
दोनों रखते हैं एक दूसरे का ख्याल 
जब परिवार वाले कर लेते हैं किनारा 
दोनों बन जाते हैं एक दूसरे का सहारा 
अगर कभी हो भी जाती है खटपट 
तो झगड़ा झट से जाता हैं निपट 
क्योंकि दोनों ही सो नहीं पाते 
बिना सुने एक दूसरे के खर्राटे 
सच की उम्र का बड़ा हसीं दौर है 
बुढ़ापे के प्यार मजा ही कुछ और है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

क्या आपने बासीपन इंजॉय किया है?

 रात भर निद्रा ले और करके आराम
सुबह उठने सुबह उठने पर प्यारी सी थकान 
सुबह सुबह आती हुई आलस भरी उबासी 
जब तन वदन सब कुछ हो बासी 
बदन तोड़ती हुई मीठी सी अंगड़ाई 
ओंठो को फैला कर आती हुई जमहाई 
बिस्तर को नहीं छोड़ने का मोह 
दफ्तर और काम पर जाने की उहापोह 
बोझिल सी आंखें को सहलाना,मलना
धीरे-धीरे उठकर के अलसा कर चलना गरम-गरम चाय की चुस्ती की तलब 
रोज-रोज सवेरे होता है यह सब 
क्या आपने कभी बासीपन एंजॉय किया है?
बासी ओंठो से बासी ओंठो का चुंबन लिया है?

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, March 7, 2025

एक भला आदमी चला गया
वो कितनो को ही रुला गया 

बुरा नहीं था,अच्छा था वो 
कर्म वचन से,सच्चा था वो 
करता सद् व्यवहार सभी से
मन में रखता प्यार सभी से
नहीं किसी से राग द्वेष था
कर्मवीर था,वो विशेष था
स्वाभिमान से भरा हुआ था 
पाप कर्म से डरा हुआ था
आस्तिक,धार्मिक ईश भक्त था
 सिद्धांतों में जरा सख्त था 
 शुभ संस्कार में पला गया
 एक भला आदमी चला गया 

पढ़ा लिखा था और था ज्ञानी 
रहती सदा संतुलित वाणी 
मधुर शांत उसका स्वभाव था
सबके ही प्रति प्रेम भाव था 
की न किसी की कभी बुराई
ढूंढा करता था अच्छाई 
ना पड़ता कोई विवाद में 
मिलजुल रहता, सभी साथ में
उसने सबको साध रखा था 
परिवार को बांध रखा था 
पर कुछ हाथों छला गया 
एक भला आदमी चला गया 

मधु भाषी था ,व्यावहारिक था 
सबसे मिलता ,सामाजिक था 
धार्मिक और सदाचारी था 
यारों से रखता यारी था 
जिया सदा सात्विक जीवन 
बहुत साफ और निश्छल था मन 
लोगों के ह्रदयों में बस कर 
जीवन जीया ,उसने हंसकर 
लेख नीयति का पूरा करने 
उसको बुला लिया ईश्वर ने 
चलता फिरता भला गया 
एक भला आदमी चला गया

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, February 27, 2025

बुढ़ापे की रात


देखो बूढ़े बुढ़िया कैसे रात बिताते हैं 


नींद नहीं आती है तो रह रह बतियाते हैं 


यह मत पूछो कैसे उनकी रात गुजरती है,

कोशिश करते सोने की पर सो ना पाते हैं 


एक दूजे की सभी शिकायत शिकवे जो भी है,

सभी रात को आपस में निपटाए जाते हैं 


कभी झगड़ना,गुस्साहोना और मनाना फिर ,

सोने की कोशिश करते,भरते खर्राटे है


कभी पुराने किस्से की फाइल जब खुलती है, भूली बिसरी यादों का आनंद उठाते हैं 


मन प्रपंच से हटा, भूल सब बीती बातों को, 

बीत गई सो बीत गई ,खुद को समझाते हैं


सुबह आयेगी, खुशी लायेगी, ये उम्मीद लिए,

कुछ पल को सपनों की दुनिया में खो जाते है


 देखो बूढ़े बुढ़िया कैसे रात बिताते हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू 

आएगा एक दिन सबका अंत 

थम जाएगा यूं ही अचानक सांसों का यह तंत्र

कोई भाग्यवान जो जन्मा,बन कर के श्रीमंत

कोई दुखी गरीब बिचारा ,पीड़ा पाई अनंत 

सबने सारे मौसम देखे ,गर्मी ,शीत, बसंत 

तेरे अपने साथ तभी तक,जब तक तू जीवंत 

मरने पर ना पास रखेंगे, देंगे फूंक तुरंत 

अंतिम सबकी यही गति है, राजा हो या संत

 साथ जाएंगे कर्म ,किए हैं जो जीवन पर्यंत

 सबसे करके प्रेम लूट ले जीवन का आनंद

 आएगा एक दिन सबका अंत

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Wednesday, February 26, 2025

क्या करना है बुढ़ापे में 


 तब, जब मैं अपनी जवानी के चरम में था 

मोह माया के भरम में था 

चाहता था कमाना खूब पैसा 

कमाई की धुन में रहता था हमेशा 

व्यस्तताएं इतनी थी दिनभर 

फुर्सत नहीं मिल पाती थी पल भर 

परिवार और गृहस्थी की जिम्मेदारी 

नौकरी और दफ्तर की मारामारी 

सुबह से शाम 

बस काम ही काम 

बस एक ही धुन थी बहुत सारा पैसा कमा कर एश करूंगा बुढ़ापे में जाकर 

तब मैं सोचा करता था भगवान ऐसे दिन कब देख पाऊंगा 

जब पूरे दिन भर अपनी मर्जी से आराम से सो पाऊंगा 

अपनी मर्जी से जिऊंगा 

 खाऊंगा ,पिऊंगा 

आखिर भगवान ने मेरी सुन ली मेरा सपना सच हो गया 

और एक दिन में रिटायर हो गया 


अब दिन भर निठल्ले बैठा रहता हूं 

बेमतलब इकल्ले बैठा रहता हूं 

नहीं करना कोई काम धाम 

दिन भर बस आराम नहीं आराम 

टीवी पर देखते रहो मनचाही पिक्चर 

या फिर बिस्तर पर पड़े रहो दिन भर 

न नौकरी की भागा दौड़ी न बॉस की चमचागिरी दिनभर एकदम फ्री 

वैसे तो पूरा हो गया मेरा जवानी का स्वपन 

पर अब मुझे कचोटता है  एकाकीपन 

आज मुझे इस बात आ गया है ज्ञान 

कि बिना काम किये जीना नहीं आसान 

बुढ़ापे में आकर बात यह मैंने जानी 

निठल्ला जीवन काटने में होती है बड़ी परेशानी

आज मेरे पास पैसा है बहुत सारा 

पर मैं इंजॉय नहीं कर पा रहा हूं मैं बेचारा 

ठीक से रहती सेहत नहीं है 

बदन में बची हिम्मत नहीं है 

बिमारियों ने घेर रखा है 

अपनो ने मुंह फेर रखा है 

आप जाकर की यह बात मेरी समझ में आई एंजॉय करते रहो अपनी कमाई 

बचत उतनी ही अच्छी के हो सके आराम से बुढ़ापा गुजारना 

किसी के आगे हाथ ना पड़े पसारना 

तो मेरे मित्रों मेरा अनुभव यह बताता है 

बचत का पैसा ज्यादा भी हो तो बुढ़ापे में सताता है 

छुपा कर रखो तो डूब जाएगा 

वरना मरने के बाद बच्चों में झगड़े करवाएगा 

ऐसी नौबत को जीते जी काट दो

जिसको जो देना है पहले ही बांट दो

बुढ़ापे में माया से ज्यादा मोहब्बत मत करो 

थोड़ी दीन दुखियों की सेवा कर  पुण्य की गठरी भरो

प्रभु नाम का स्मरण दिन रात करो 

चैन से जियो और चैन से मरो 


मदन मोहन बाहेती घोटू

Monday, February 24, 2025

आओ हम तुम चले प्रयाग 
एक डुबकी संगम में ले ले, धन्य हमारे भाग 

एक सौ चुम्मालिस वर्षों में आया यह संजोग 
महाकुंभ का लाभ उठाने पहुंचे कितने लोग

 कितने सारे साधु बाबा योगी और महंत 
कई अखाड़े मंडलेश्वर के, एकत्रित सब संत

 बड़े-बड़े भंडारे चलते, कथा ,यज्ञ ,उपदेश 
इस अवसर का लाभ उठाने पहुंचा पूरा देश 

उमड़ रही है भीड़ कर रहे हैं सब गंगा स्नान 
उठा रहे हैं परेशानियां, नहीं रहे पर मान

एक डुबकी में पुण्य कमाते और धो रहे पाप 
इस मौके से फिर क्यों वंचित रहते मै और आप

दिखा रहे हैं धर्म सनातन के प्रति निजअनुराग 
हर हिंदू में ,धर्म आस्था ,आज गई है जाग

 आओ हम तुम चले प्रयाग 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, February 21, 2025

84 वें जन्मदिन पर 

कोई निशा अमावस सी थी 
कोई रात थी पूरनमासी 
जैसे तैसे ,एक-एक करके,
 कटे उमर के बरस तिर्यासी 

टेढ़ा मेढ़ा जीवन पथ था,
कई मोड़ थे ,चौड़े ,सकड़े 
मैंने पार किया सब रस्ता,
बस धीरज की उंगली पकड़े 
मिला साथ कितने अपनों का 
कई दोस्त तो दुश्मन भी थे 
कभी धूप, तूफान , बारिशे ,
तो बासंती मौसम भी थे 
महानगर की चमक दमक में
 भटका नहीं ग्राम का वासी
जैसे जैसे ,एक-एक करके 
कटे उमर के बरस तिर्यासी 

हंसते गाते बचपन बीता,
 बीती करते काम, जवानी 
अब निश्चिंत,जी रहे जीवन ,
आया बुढ़ापा, उम्र सुहानी 
बाकी ,कुछ ही दिन जीवन के 
उम्र जनित, पीड़ाएं सहते 
लिखा नियति का भोग रहे हैं 
फिर भी हम मुस्कुराते रहते 
जैसे भी कट जाए ,काट लो ,
भेद ये गहरा ,बात जरा सी 
जैसे तैसे, एक-एक करके 
कटे उम्र के बरस तिर्यासी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, January 20, 2025

सुख दुख 

बहुत हसीं यह जीवन यदि सुख से जियो
दुख के विष को त्याग शान्ति अमृत पियो 
अपने दिल को जला दुखी क्यों करते हो रोज-रोज तुम यूं ही घुट घुट मरते हो

तुमको अपने मन के माफिक जीना है
 निज पसंद का रहना ,खाना ,पीना है  
वरना लोग नहीं सुख से जीने देंगे 
बार बार वो तुम्हे परेशाँ कर देंगे

बहुत मिलेगा सुनने को तुम्हें उलहाने में
कड़वी खट्टी गंदी बातें ताने में 
कसर न होगी खोटी खरी सुनाने में
सुख वह सदा पाएंगे तुम्हें सताने में 

उनकी बातों पर जो ध्यान अगर दोगे 
अपने मन का अमन चैन सब खो दोगे 
इसीलिए मत इन बातों पर रोष करो 
जैसे भी हो सुखी रहो, संतोष करो 

इन लोगों से सदा दूरियां रखो बना 
उनकी बातों को तुम कर दो बिना सुना 
कैसे रहना सुखी तुम्हारे हाथ में है 
कैसे रहना दुखी तुम्हारे हाथ में है 

तुम जैसा चाहो वैसे जी सकते हो
नीलकंठ बन सभी गरल पी सकते हो 
सदा दुखी रहने के कई बहाने हैं 
लेकिन पहले ये सब तुम्हें भुलाने हैं 

कैसे रहना सुखी सीख लो जीवन में 
बहुत शांति और सुख पाओगे तुम मन में 
नहीं किसी से बैर भाव या क्रोध करो 
प्रतिस्पर्धा से दूर रहो ,संतोष करो 

ना ऊधो से लेना ,देना माधव को 
बोलो मीठे बोल, प्रेम बांटो सबको 
बहुत सरल है दुख में परेशान होना 
फूटी किस्मत ,बार-बार रोना-धोना 

एक बार जब मुखड़ा मोड़ोगे दुख से
भर जाएगा पूरा ही जीवन सुख से 
सुख दुख तो जीवन में आते जाते हैं 
बहुत सुखी वो ,जो हरदम मुस्काते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मेरे घर का मौसम

ना तुझमें खराबी, ना मुझमें खराबी 
 मेरे घर का मौसम ,गुलाबी गुलाबी 

हम पर खुदा की ,है इतनी इनायत 
किसी को किसी से न शिकवा शिकायत 
मिला जो भी कुछ है, संतुष्ट हम हैं 
खुशी ही खुशी है ,नहीं कोई गम है 
किसी से कोई भी अपेक्षा नहीं है 
लिखा जो भी किस्मत में पाया वही है
 नहीं मन के अंदर ,लालच जरा भी 
मेरे घर का मौसम, गुलाबी गुलाबी 

सीमित है साधन, पर करते गुजारा 
भरा सादगी से , है जीवन हमारा 
नहीं चाह कोई तो चिंता नहीं है 
सभी को सभी कुछ तो मिलता नहीं है
मिलकर के रहते हैं, हम सीधे-सादे 
कभी राम रटते ,कभी राधे राधे 
सत्कर्म ही है ,सफलता की चाबी 
मेरे घर का मौसम गुलाबी गुलाबी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, January 19, 2025

बुढ़ापे की गाड़ी 

 उमर धीरे-धीरे ढली जा रही है 
बुढ़ापे की गाड़ी चली जा रही है 

चरम चूं,चरम चूं , कभी चरमराती 
चलती है रुक-रुक, कभी डगमगाती 
पुरानी है, पहिए भी ढीले पड़े हैं 
रास्ते में पत्थर भी बिखरे पड़े हैं
कभी दचके खाकर, संभल मुस्कुराकर
 पल-पल वह आगे बढ़ी जा रही है 
बुढ़ापे की गाड़ी चली जा रही है 

कहीं पर रुकावट ,कहीं पर थकावट
कभी आने लगती जब मंजिल की आहट
घुमड़ती है बदली मगर न बरसती 
मन के मृग की तृष्णा सदा ही तरसती 
कभी ख्वाब जन्नत की मुझको दिखा कर 
मेरी आस्थाएं छली जा रही है
 बुढ़ापे की गाड़ी चली जा रही है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चौरासी के फेरे में 

पल-पल करके जीवन बीता 
हर दिन सांझ सवेरे में 
तिर्यासी की उम्र हो गई 
चौरासी के फेरे में 

बादल जैसे आए बरस 
और बरस बरस कर चले गए 
गई जवानी आया बुढ़ापा 
उम्र के हाथों छले गए 
मर्णान्तक बीमारी आई ,
आई, आकर चली गई 
ढलते सूरज की आभा सी 
उम्र हमारी ढली गई 
यूं ही सारी उम्र गमा दी ,
फंस कर तेरे, मेरे में 
तीर्यासी की उम्र हो गई 
चौरासी के फेरे में 

चौरासीवां बरस लगा अब
आया परिवर्तन मन में 
भले बुरे कर्मों का चक्कर 
बहुत कर लिया जीवन में 
पग पग पर बाधाएं आई,
 विपदाओं से खेले हैं 
इतने खट्टे मीठे अनुभव
 हमने अब तक झेले हैं 
अब जाकर के आंख खुली है 
अब तक रहे अंधेरे में 
तीर्यासी की उम्र हो गई 
चौरासी के फेरे में 

 अब ना मोह बचा है मन में 
ना माया से प्यार रहा 
अपने ही कर रहे अपेक्षित 
नहीं प्रेम व्यवहार रहा 
अब ना तन में जोश बचा है 
पल-पल क्षरण हो रहा तन 
अब तो बस कर प्रभु का सिमरन 
काटेंगे अपना जीवन 
जब तक तेल बचा, उजियारा
 होगा रैन बसेरे में 
तीर्यासी की उम्र हो गई
 चौरासी के फेरे में 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मैं


मैं जो भी हूं ,जैसा भी हूं,

 मुझको है संतोष इसी से 

सबकी अपनी सूरत,सीरत

 क्यों निज तुलना करूं किसी से


 ईश्वर ने कुछ सोच समझकर 

अपने हाथों मुझे गढ़ा है 

थोड़े सद्गुण ,थोड़े दुर्गुण

 भर कर मुझको किया बड़ा है 

अगर चाहता तो वह मुझको 

और निकृष्ट बना सकता था 

या चांदी का चम्मच मुंह में,

 रखकर कहीं जना सकता था 

लेकिन उसने मुझको सबसा 

साधारण इंसान बनाया 

इसीलिए अपनापन देकर 

सब ने मुझको गले लगाया 

वरना ऊंच-नीच चक्कर में,

 मिलजुल रहता नहीं किसी से 

मैं जो भी हूं जैसा भी हूं ,

मुझको है संतोष इसी से 


प्रभु ने इतनी बुद्धि दी है 

भले बुरे का ज्ञान मुझे है 

कौन दोस्त है कौन है दुश्मन 

इन सब का संज्ञान मुझे है 

आम आदमी को और मुझको 

नहीं बांटती कोई रेखा 

लोग प्यार से मुझसे मिलते

 करते नहीं कभी अनदेखा 

मैं भी जितना भी,हो सकता है

 सब लोगों में प्यार लुटाता 

सबकी इज्जत करता हूं मैं 

इसीलिए हूं इज्जत पाता 

कृपा प्रभु की, मैंने अब तक,

जीवन जिया, हंसी खुशी से 

मैं जो भी हूं ,जैसा भी हूं 

मुझको है संतोष इसी  से


मदन मोहन बाहेती घोटू