Saturday, July 30, 2011

कल रात मैंने एक सपना देखा

कल रात मैंने एक सपना देखा
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कल रात मैंने एक सपना देखा,
मै रेगिस्तान में भाग रहा हूँ
और भागते भागते भटक गया हूँ
फिर थक कर गिर पड़ा हूँ
मेरे हाथ कट कर,
मेरे शरीर से छिटक कर,
दूर हो गए है
मेरे होंठ,प्यास से सूखने लगे है
और मेरी आँखों पर पट्टी बंधी है
कुछ हाथ,मदद के लिए ,मेरी तरफ,
बढ़ने की कोशिश कर रहे है,
पर पहुँच नहीं पा रहे है
तभी आसमान से एक परी उतरती है
वह मुझे  सहलाती है,
शीतल जल पिलाती है
और मेरी आँखों की पट्टी खोलती है
मैंने देखा,एक जादू सा हो गया है
मेरे हाथ मेरे शरीर से फिर जा जुड़े है
मदद करने वाले हाथों ने,
मेरे करीब आकर,मुझे उठाया है,
और मरुस्थल में अचानक,
हरियाली छा गयी है ,
और फूल खिलने लगे है
क्या था ये सपना?
मेरी आँखें खुली तो मैंने देखा,
रेगिस्तान में मेरा भटकना,
कोरी मृग तृष्णा थी ,
वो परी मेरी पत्नी थी
 वो हाथ, मेरे बच्चे थे
,मेरे माँ बाप,भाई बहन और मित्रों के हाथ,
मेरी मदद को बढ़ना चाह रहे थे
पर मेरी आँखों पर,
अहम् और अहंकार की पट्टी बंधी थी,
जिसके खुलते ही,
सब फिर से मिल गए
और रेगिस्तान में फूलखिल गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

बचपन की बातें, जब याद आती है बड़ा तडफाती है

बचपन की बातें,
जब याद आती है
बड़ा तडफाती  है
बरषा के बहते पानी में ,
कागज की नावों के ,
पीछे दोड़ने वाला, मै,
अब कागज के नोटों के ,
पीछे दोड़ता रहता हूँ
शाम ढले,छत पर बैठ,
नीड़ में लौटते हुए पंछियों को गिनना,
और बाद में उगते हुए तारों की गिनती करना ,
जिसका नित्य कर्म होता था,
अब नोट गिनने में इतना व्यस्त हो गया है,
कि उसके पास,
प्रकृति के इस अद्भुत नज़ारे को ,
देखने का समय ही नहीं है
माँ का आँचल पकड़,
चाँद खिलौना पाने कि जिद करनेवाला,
अब खुद व्यापार कि दुनिया में,
सूरज,चाँद बन कर चमकने को आतुर है
ठुमुक ठुमुक कर ,धीरे धीरे चलना सीख कर,
जीवन कि दौड़ में,
सबसे आगे निकलने कि होड़ में,
अधीर रहता है
माँ से जिद करके,
माखन मिश्री खाने वाला,
अब न तो माखन  खा सकता है न मिश्री,
क्योंकि,क्लोरोसट्राल  और शुगर,
दोनों ही बड़े हुए है,
क्यों छाया है मुझमे ये पागलपन?
क्या ये ही है जीवन?
कहाँ खो गया वो प्यारा बचपन ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, July 29, 2011

विडंबना

विडंबना
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हमारे संस्कार,
हमें सिखाते है,
प्रकृति की पूजा करना
हम वृक्षों को पूजते है,
वट सावित्री पर वट वृक्ष,
और आंवला नवमी पर,
आंवले के वृक्ष की पूजा करते है
और पीपल  हमारे लिए,
सदा पूजनीय रहा है
हम सुबह शाम,
सूर्य को अर्घ्य देते है
हमारे देश की महिलायें,
चाँद को देख कर  व्रत  तोड़ती है
गंगा,जमुना और सभी नदियाँ,
हमारे लिए इतनी पूजनीय है,
कि इनमे  एक डुबकी लगा कर,
हम जनम जनम के पाप से मुक्त हो जाते है
सरोवर,चाहे पुष्कर हो या अमृतसर,
यहाँ का स्नान,हमारे लिए पुण्यप्रदायक है
मिट्टी  के ढेले को भी,
लक्ष्मी मान,उसकी पूजा करते है
और पत्थर को भी पूज पूज,
भगवान बना देते है
लेकिन हमारी संस्कृति हमें,
'मातृ देवो भव' और 'पितृ देवो भव'
भी सिखाती है,
पर हम पत्थरों के पूजक,
पत्थर दिल बन कर,
अपने जीवित जनकों को,
पत्थरों की तरह,
तिरस्कृत कर रहे है;
कैसी विडम्बना है ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, July 28, 2011

मेरी प्यारी पोती मिशा

मेरी प्यारी पोती मिशा
आई धर कर रूप परी सा
खिली कली सी नवल नवेली
दादा की गोदी में खेली
बचपन के दिन शेतानी के
सुन किस्से राजा रानी के
ठुमुक ठुमुक नाची ,मुस्काई
घर भर में खुशियाँ भर लायी

जब से आई है मेरे घर
समृद्धि से दिया इसे भर

है गंभीर,सिंसियर,प्यारी
घर में सबकी बड़ी दुलारी
करती सबसे प्यार बहुत है
पढने में होशियार बहुत है

नृत्य कला में है पारंगत

सब के प्रति है मन में चाहत
मिशा नहीं,ये तो मिश्री है
प्यार भरी ,ये तो बदली है
पढने में भी रही टॉप पर
कई गुणों में,गयी बाप पर


खूब पढ़े और करे तरक्की
यही कामना है हम सब की
यही प्रार्थना करते है हम
भरा रहे खुशियों से जीवन
आज जा रही है अमेरिका
मेरी प्यारी पोती मिशा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


Wednesday, July 27, 2011

आज गिरी फिर बिजली

आज गिरी फिर बिजली
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जुल्फों को फैला कर,
तुम थोडा मुस्काई
आज घिरी  फिर बदली
आज गिरी  फिर बिजली
भीगे से से बालों को ,
तुमने जब झटकाया
पानी की बूंदों से,
सावन सा बरसाया
हुई ऋतू  फिर पगली
आज गिरी फिर बिजली
गीली हो चिपक गयी,
गौरी के तन चोली
गालों पर बिखर गयी,
शर्मीली  रांगोली
पिया रंग ,फिर रंग ली
आज गिरी फिर बिजली
देख संवारता तुमको,
आइना हर्षाया
ताज़ा सा खिला रूप,
लख कर मन मुस्काया
मिलन आस फिर जग ली
आज गिरी फिर बिजली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम, तुम हो

तुम, तुम हो
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गर्मी में शीतलता,
सर्दी में ऊष्मा
बारिश में भीगापन,
बासंती सुषमा
हर ऋतू में मनभाती
मुस्काती,मनभाती
मस्ती की धुन हो
तुम ,तुम हो
ग्रीष्म में शिमला की,
वादियों सी शीतल
बरफ की चुस्की की तरह,
रसभरी,मनहर
शीतल जल की घूँट की तरह,
तृप्ति प्रदायिनी
चांदनी में बिछी सफ़ेद चादरों सी,
सुहावनी
आम के फलों की तरह,
मीठी और रसीली तुम  हो
तुम,तुम हो
सर्दी में जयपुर की गुदगुदी,
रजाई सी सुहाती
सूरज की गुनगुनी ,
धूप सी मनभाती
मक्की की रोटी और सरसों के ,
साग जैसी स्वाद में
गरम अंगीठी की तरह तपाती,
ठिठुराती रात में,
रस की खीर,गरम जलेबी,
या रसीला गुलाबजामुन हो
तुम,तुम हो
वर्षा की ऋतू में सावन की,
बरसती फुहार
जुल्फों की बदली से,
आँखों की बिजली की चमकार
आँख मिचोली खेलती हुई,
सूरज की किरण
या गरम चाय के साथ,
पकोड़ी गरम गरम
दूर दूर तक फैली हरियाली,
भीगा हुआ मौसम हो
तुम, तुम हो
बासंती ऋतू की,
मस्त  मस्त बहार
प्यार भरी, होली के,
रंगों की बौछार
फूलों की क्यारियों की,
गमक  और महक
कोयल की कुहू कुहू,
पंछियों की चहक
वृक्षों के नवल पात सी कोमल,
पलाश सा,रंगीला फागुन हो
तुम ,तुम हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


Tuesday, July 26, 2011

एक मधुमख्खी, एक है मख्खी

एक मधुमख्खी, एक है मख्खी
एक नस्ल की है दोनों पर,एक अनुशाषित,एक है झक्की
एक मधुमख्खी,एक है  मख्खी
छोटी मख्खी में छोटापन,दिन भर भीं भीं करती फिरती
बहुत सताती,उड़ उड़ जाती,चाय भरे प्याले   में गिरती
कभी गाल पर ,कभी नाक पर,बार बार बैठा करती है
मार भगाओ तो उड़ जाती,लेकिन चोट तुम्हे लगती है
परेशान सबको करती है,और फैलाती है बीमारी
ना है कोई ठौर ठिकाना,फिरती रहती मारी मारी
है शालीन मगर मधुमख्खी,छत्ते से उड़,जा फूलों पर
मधुकोष में संचय करती,रस की बूँदें लाती है भर
करे छेड़खानी जो कोई,तो उसके पीछे पड़ जाती
अपनी सारी बहनों के संग,उसे काटती,मज़ा चखाती
कितनी सुन्दर जीवन पध्दिती,सब मिलकर श्रम करती दिनभर
होता जब परिवार संगठित,तो मिठास से भरता है घर
लेकिन इनकी छोटी बहना,मख्खी है पूरी आवारा
कभी मिठाई,कभी गंदगी,इधर उधर मुंह करती मारा
कहने  को दोनों बहने पर,दोनों में कितना है अंतर
एक चखाती मधुर मधु है,और एक बीमारी का घर
ये गुण सभी संगठन के है,महिमा अनुशाषित जीवन की
एक मधुमख्खी,एक है मख्खी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Sunday, July 24, 2011

हम सत्तर के

         हम सत्तर के
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हम सत्तर के
हम हस्ताक्षर बीते कल के
हम सत्तर के
कोई समझे अनुभव के घट
कोई समझे कूढा करकट
बीच अधर में लटके है हम,
नहीं इधर के ,नहीं उधर के
हम सत्तर के
कभी तेज थे,बड़े प्रखर थे
उजियारा करते दिन भर थे
अब भी लिए सुनहरी आभा,
ढलते सूरज अस्ताचल के
हम सत्तर के
याद आते वो दिन रह रह के
हम भी महके,हम भी चहके
यौवन था तो खूब उठाया,
मज़ा जिंदगी का जी भरके
हम सत्तर के
पीड़ा दी टूटे सपनो ने
हम को बाँट दिया अपनों ने
किस से करें शिकायत अपनी,
अब न घांट के और न घर के
हम सत्तर के
उम्र बढ़ी अब तन है जर्जर
लेकिन नहीं किसी पर निर्भर
स्वाभिमान  से जीवन जीते,
आभारी है परमेश्वर के
हम सत्तर के

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


राज़-कोमल गालों का

राज़-कोमल गालों का
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होली के अवसर पर पर,
समधन के गालों   पर
जब मैंने लगायी गुलाल
इन्फ्रारेड लाली से,
लाल हो गए उनके गाल,
मैंने कहा कमाल है
इस उम्र में भी,
कितने कोमल और चिकने,
आपके गाल है
समधन जी मुस्काई
थोड़ी सी सकुचाई,
और बोली शरमा कर
आपको बताती हूँ आज
अपने कोमल गालों का राज़
मै रोज अपने गालों को,
'जोनसन बेबी सोप  'से धोती हूँ,
और गालों पर लगाती हूँ,
'जोनसन बेबी पावडर'
इसीलिए मेरी त्वचा,
है बच्चों सी कोमल

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

सुख समधन का

सुख समधन का
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सबका दुलार प्यार,
अच्छी सी देखभाल,
चूमे सब बार बार,
                 ये सुख है बचपन का
यौवन ऋतू मदमाती,
है खुशियाँ बरसाती ,
जब जीवन का साथी,
                   देता सुख यौवन का
 प्यार पुष्प जब लहके
बच्चों से घर महके,
जब किलकारी  चहके,
                    मिलता सुख जीवन का
बच्चों की शादी कर,
खुशियों से भरता घर,
बोनस में मिलता पर,
                  हमको सुख  समधन का

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Thursday, July 21, 2011

रेखा

            रेखा
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मैंने जब रेखा को देखा,मै था छोटा ,वो थी जवान
फिर बार बार उसको देखा,वो थी जवान ,मै था जवान
लेकिन इन धुंधली आँखों से,अब भी उसको देखा करता
वो अब भी लगती है  जवान लेकिन मै हूँ बूढा लगता
तो मैंने उनसे पूछ लिया,एक बात बताओ रेखा जी
क्यों नहीं तुम्हारे चेहरे पर है चढ़ी उम्र की रेखा जी
थी कितनी स्लीम सायरा जी,कितनो के दिल की रानी थी
दुबला पतला छरहरा बदन,सारी दुनिया दीवानी थी
पर जब से पति का प्यार मिला,दूना हो गया दायरा है
पहले जैसी दुबली पतली, अब ना वो रही सायरा  है
वह सुन्दर  कटे बाल वाली ,लड़की छरहरे बदन की थी
था नाम साधना, हिरोइन,मेरे महबूब   फिलम की थी
पर जब उसको महबूब मिला,वो फूली फूली फूल गयी
हो गया घना साधना बदन,अब जनता उसको भूल गयी
तो शादी कर लेने पर जब आहार प्यार का मिलता है
अच्छा खासा छरहरा बदन,शादी के बाद फूलता है
तो कम खाना और योग,साथ में अब तक मै जो क्वांरी हूँ
इसलिए चिरयुवा लगती हूँ,मै सुन्दर हूँ मै प्यारी हूँ


मदन मोहन बहेती 'घोटू'

पंच तत्व

पंच तत्व
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पंचतत्व से   बना   हुआ है ,ये सारा   संसार
जल,नभ,पृथ्वी,वायु और अग्नि,जीवन का आधार
हुआ इन्ही तत्वों से मिल कर ,ये शरीर निर्माण
इन्ही पंच तत्वों को कहते है हम सब
भगवान
' भ 'याने भूमि या पृथ्वी,अपनी धरती माता
हमें अन्नजल सब कुछ देती ,सहनशील और दाता
अस्थि,मांस,नख,केश ,त्वचा सब,इस माटी से बनते
और शरीर का अंत होने पर माटी में जा मिलते
'ग'गरमीया अगन तत्व है,उर्जा का है साधन
इस की शक्ति से ही होता,खान पान का पाचन
'व'है वायु तत्व जीवन का,यही प्राण कहलाता
सांस,सांस,में भीतर जाता,नस नस में बस जाता
'अ'याने अपसु या पानी, कहलाता है जीवन
यहीतरल  है जिससे बहता,रक्त नसों में हर क्षण
'न ',नभ या आकाश हर जगह,व्यापक तत्व यही है
नस,नाड़ी या उदर जहाँ भी,खाली जगह  यही है
 जिनमे गुण इन पांच तत्व के,वो महान कहलाता
  इसीलिए कहते शरीर को है भगवान  बनाता

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

तू कमाल है

तू कमाल है
--------------
तेरे गाल है गुलाबी
तेरे होंठ है शराबी
तेरी अदायें मदमाती
            तू कमाल है
तेरा रूप है सलोना
तेने किया जादूटोना
तेरे तन का कोना  कोना
              मालामाल है
तेरी बातें मदमाती
मुझ पे प्यार लुटाती
नाज़ नखरों से रिझाती
               तेरी चाल है
मेरी  प्यारी प्यारी मैना
मेरे दिल में ही रहना
तेरे चंचल चंचल नैना
             बेमिसाल है

घोटू

 

Wednesday, July 20, 2011

स्वर्ण सुंदरी

स्वर्ण सुंदरी
--------------
तुम मुस्काती
तो गालो पर,
ऐसी प्यारी रंगत आती
जैसे नोट हज़ार रूपये का,
प्यारा, सुन्दर
और सोने की गिन्नी जैसे,
डिम्पल पड़ते हैं गालों पर
चमक आँख की हीरे जैसी,
और दांत हो जैसे मोती
तेरे सुन्दर तन की आभा,
जैसे स्वर्णिम आभूषण सी
सजा रखे है,कलश स्वर्ण के,
तुमने तन पर
रूप राशी तुम,
तुम्हारी हर मुद्रा,
स्वर्णिम मुद्रा से बढ़
लाख टके सी प्यारी बातें,
तुम तो मूरत हो सोने की,
और खजाना हो  चाहत का
अपने दिल की बंद तिजोरी में,,
मेरा दिल,
छुपा रखा है जाने कबका
वणिक पुत्र मै,लोभी स्वर्ण और रत्नों का,
तुम्हारा अनमोल खजाना,
चाहूं रोज रोज ही पाना
स्वर्ण सुंदरी!

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Tuesday, July 19, 2011

डुगडुगी

डुगडुगी
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सुनो डुगडुगी राजा
काहे रोज बजाते बाजा
करते नित्य ताज़ा ताज़ा,
              बकवास हो
तुम सत्ता में कभी थे
चुक चुके हो तुम कभी के
मन में सपने गद्दी के
                करते आस हो
करते बातें ऊलजुलूल
अपनी मर्यादा को भूल
बजते रहना यूं ही फिजूल
             कुछ भी बात हो
तुम जो बकते हो दिनरात
लोग बतलाते है बात
सर पर प्रिंस का है  हाथ
            उसके खास हो
घोटू

Monday, July 18, 2011

बारिश का मज़ा

बारिश का मज़ा
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बरस रहा हो पानी रिमझिम
और साथ में हो मै और तुम
छोटी सी छत्री  के  नीचे
दोनों संग संग भीजे भीजे
एक दूजे के तन से सट के
हो जाते है ,कुछ पागल से
तू भी व्याकुल,आँखे मूंदे
मोती सी पानी की बूँदें
 बह  कर के तेरे बालों  से
चमक रही तेरे गालों पर
और गरजते है जब बादल
सहमा करती तू डर डर कर
तड़ित चमकती,तू डर जाती
मुझसे लिपट लिपट सी जाती
तेरे भीगे तन को छूकर
मुझ में गर्मी सी जाती भर
गीले तन से चिपका आँचल
कर देता है मुझको  पागल
मन कहता घन रहे बरसते
पानी में हम रहे तरसते
मज़ा प्यास का मगर अजब है
बारिश का रोमांस  गजब है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

तेरे हाथ में

तेरे हाथ में
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तेरे हाथों की बनायी
दाल ,सब्जी,मिठाई,
मैंने  चाट चाट खायी
           डूब स्वाद में
पैसे पर्स  के मेरे
हाथ लगने पे तेरे
जाने कहाँ उड़ गए रे
           बात बात में
अपनी उंगली पे नचा के,
मुझे बहलाती सहला के
रख्खे दीवाना  बना के,
            दिन रात में
मन करती है बेकाबू
सच सच बतला तू
जाने कैसा है रे जादू
             तेरे हाथ में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, July 17, 2011

आजन्म कुंवारों के प्रति

आजन्म कुंवारों के प्रति
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चाहते थे जिंदगी की रह में,
           हमसफ़र एक चाँद का टुकड़ा मिले
महक जाए जिंदगी का ये चमन,
            फूल कुछ एसा गमकता सा खिले
 चाहते थे रूपसी यूं मदभरी,
              जिधर से निकले नशीला हो समां
थाम ले दिल देखने वाले सभी,
              इस तरह की हो अनूठी दिलरुबां
पर समय का समीरण सब ले उड़ा,
                स्वप्न यौवन के सुनहरे ,खो गये
रूपसी इसी नहीं कोई मिली,
                प्रतीक्षा में केश रूपा  हो गये

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Friday, July 15, 2011

पेट्रोलपंप का उदघाटन

पेट्रोलपंप का उदघाटन
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एक पेट्रोल पम्प  का उदघाटन कर
नेताजी ने पूछा,
पम्प  के मालिक को,एक तरफ ले जाकर
भैये,सच सच बतलाना
हमसे  न छुपाना
इस जगह,जमीन से पेट्रोल निकलेगा,
ये तुमने कैसे जाना?,

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

भ्रमर,तितलियाँ और मधुमख्खी

भ्रमर,तितलियाँ और मधुमख्खी
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खिले पुष्प पर गुंजन करता काला भंवरा
रस पाता है ,उड़ जाता है
तितली भी तो मंडराती है
रस पीती है ,इठलाती है
लेकिन जब उन्ही पुष्पों पर,
मधुमख्खी है आती जाती
घूँट घूँट कर,रस भर लेती,
और संचय हित,
अपने छत्ते में ले जाती
भ्रमर,तितलियाँ और मधुमख्खी,
तीनो ही हैं रस के प्रेमी,
किन्तु प्रवृत्ति भिन्न भिन्न है
भ्रमर प्रेमी सा,रस का लोभी,
रस पाता है,उड़ जाता है
और तितलियाँ,आधुनिका सी,
पुष्पों पर चढ़ इठलाती है
किन्तु सुगढ़ गृहणी के जैसी है मधुमख्खी,
रस भी चखती,और बचा कर,
संगृह भी करती जाती है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

अबके सावन में

अबके   सावन में
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इन होटों पर गीत न आये, अबके सावन में
बारिश में हम भीग न पाए,अबके सावन में
अबके बस पानी ही बरसा,थी कोरी बरसात
रिमझिम में सरगम होती थी,था जब तेरा साथ
व्रत का अमृत बरसाती थी,जो हम पर हर साल,
वो हरियाली तीज न आये,अबके सावन में
तुम्हारी प्यारी अलकों का,था मेघों सा रंग
तड़ित रेख सा,दन्त लड़ी का,मुस्काने का ढंग
घुमड़ घुमड़ कर काले बादल ,छाये  कितनी बार
पर वो बादल रीत न पाये,अबके सावन में
पहली बार चुभी है तन पर,पानी की फुहार
जीवन के सावन में सूखे,है हम पहली बार
सूखा सूखा  ,भीगा मौसम,सूनी सूनी शाम,
उचट उचट कर नींद न आये,अबके सावन में

मदन मोहन बहेती'घोटू'

Thursday, July 14, 2011

ऊँचा सर

ऊँचा सर
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दो दो तकिये,
सर के नीचे रखने से,
सर ऊँचा नहीं होता
सर ऊँचा करने के लिए,
करने पड़ते है,
कुछ ऐसे काम
जिससे गर्व से ,
आप सर ऊँचा कर सको,
और ऊँचा हो आपका नाम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मोडर्न एटिकेट

मोडर्न एटिकेट
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आज के इस आधुनिक समाज में
अपना जीवन अपने ढंग से जीने को भी,
हो गया हूँ मोहताज मै
बनावटीपन से भरी ,खोखली सी जीवन पद्धिति का,
आदमी इस कदर गुलाम हो गया है
कि जीने का मज़ा ही खो गया है
खिलखिला कर ठहाके मार कर हँसाना,
दुखी होने पर दहाड़े मार  कर रोना
पाँव पसार कर बैठना,
पलटियां मार कर सोना
और सोकर उठने पर अंगडाइया  लेना,
या फिर जोरदार जमहाईयां लेना
खुजली होने पर अंगों को खुजाना
खुश होने पर मस्ती में गाना
ये सारी क्रियायें, जिनसे मन होता आनंदित है
'मोडर्न एटिकेट' में प्रतिबंधित है 
न खुल कर छींक सकते हो,
न खर्राटे भर कर सो सकते हो
न डट कर खाने के बाद डकार ले सकते हो
न कुल्ले कर के मुंह धो सकते हो
और तो और ,कोमल से आम कि फांको को
काँटों से चुभा चुभा,खाया जाता है
जब कि आम का असली मज़ा,
गिलबिलाकर चूसने में आता है
चाय के कप में बिस्कुट डुबा कर खाना,
और चाय,प्लेट में डाल कर सुडबुडाना,
सबडके लेकर,खीर कि कटोरियाँ सटकना ,
और उँगलियों से श्रीखंड चाट कर गटकना
सच,इनमे आता कितना स्वाद है
पर ये आधुनिक तौर तरीकों के खिलाफ है
उदर से वायु का निस्तारण,
करते में, यदि होता शोर है
तो इस पर किसका जोर है
यह तो एक नेसर्गिक क्रिया है
पर इसे 'बेड मैनर्स '(bad manners ) का नाम दिया है
 हर एक बात में 'एक्स्कुज़ मी '(excuse  me ) की फोर्मिलिटी(formility )
हर अवसर पर एक कार्ड  भिजवाने की औपचारिकता,
बहुत दिनों के बाद किसी  अपने के मिलने पर,
प्रेम से झप्पी नहीं लेकर,
गाल से गाल मिलाना,
खोखली सी हंसी से मुस्कराना,
क्या इसे ही कहते है आधुनिकता
मै तो हूँ वही करता हूँ
जिसमे है मुझे आनंद मिलता
तुम मुझे कितना ही असभ्य कहो,
ऐसी आधुनिकता से,आया हूँ बाज मै
आज के इस आधुनिक समाज  में

मदन मोहन बहेती'घोटू'


Wednesday, July 13, 2011

वेदनाये

  वेदनाये
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दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
ह्रदय की संवेदनायें, आज पीछे पड़ गयी है
  ओढ़ यादों की रजाई,मन बसंती ठिठुरता है
शूल जैसी चुभा करती ,स्वजनों की निठुरता है
जो कभी अपने सगे थे,पराये से हो गए है
प्यार के ,अपनत्व के सब,भाव क्यूं कर,खो गए है
मिलन की संभावनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
नींद क्यों जाती उचट अब ,रात के पिछले प्रहर है
भावना के ज्वार में क्यों,मन भटकता,इस कदर है
है बहुत चिंतित व्यथित मन,शांति मन की लुट रही है
घाव ताज़े या पुराने,टीस मन में उठ  रही है
कसकती कुछ भावनाए,आज पीछे पड़ गयी है
 ह्रदय की संवेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है
हो रहा भारी बहुत मन ,ह्रदय में कुछ बोझ सा है
एक दिन  की बात ना है,सिलसिला ये रोज का है
कई बाते पुरानी आ,द्वार दिल के खटखटाती
ह्रदय में आक्रोश भरता,भावनाएं छटपटाती 
,व्यथित मन की यातनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी दिल की वेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, July 11, 2011

तुम्ही तो अर्धांगिनी हो

तुम्ही तो अर्धांगिनी हो
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तुम ह्रदय की स्वामिनी हो,
       और जीवन संगिनी हो
मै अधूरा बिन तुम्हारे,
        तुम्ही तो अर्धांगिनी हो
,तुम महकते पुष्प की क्यारी,
         भ्रमर मै गुनगुनाता
रूप की रोशन शमा तुम,
         मै पतंगा छटपटाता
 कभी बदली सी बरसती,
         कभी छा जाती घटा सी  
चांदनी सी बिखर जाती,
        रूप की उज्जवल छटा सी
तुम्ही हो फुहार सावन की,
         पवन का मस्त झोंका
तुम्ही बासंती बहारें,
           और झरना मस्तियों का
प्यार का मै हूँ समंदर,
              हर लहर संग प्यार आता
पूर्णिमा के चन्द्र सी तुम,
             पास आती,ज्वार आता
मै दिया हूँ,तुम्ही बाती,
             गीत मै तुम रागिनी हो
मचलते मेरे ह्रदय की,
            कामना हो,कामिनी  हो
कृष्ण मै तुम राधिका सी,
             रास की रानी तुम्ही हो
प्यार आठों प्रहर करती,
             आठ पटरानी तुम्ही हो
तुम्हे पाकर ,पूर्ण सारी,
            हो गयी मन की उमंगें
तुम्हारा स्पर्श तन में,
             जगाता विद्युत् तरंगें
और इन विद्युत् तरंगों,
                की तुम्ही संवाहिनी हो
मै अधूरा बिन तुम्हारे,
                तुम्ही तो अर्धांगिनी हो

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

        
 

Sunday, July 10, 2011

हरा भरा जीवन

हरा भरा जीवन
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हरियाली सबको भाती है,कभी आपने गौर करा है
जीवन के हर रंग ढंग में,पाओगे तुम हरा भरा है
वर्षा में तो होती ही है,सारी धरती हरी भरी है
सर्दी में कोहरा होता है,तो गर्मी की दोपहरी है
नीलाम्बर के रस की बूँदें,पीत धरा से मिल जाती है
तो फिर हरा रंग आता है,या हरियाली छा जाती है
ग्रामीणों के खेत हरे है,शहरी के भी हरी संग है
और तिरंगा जो लहराता,उसमे भी  तो हरा रंग है
सुबह उठो तो धूप सुनहरी,दिन  चढ़ आया,दोपहरी है
रात हुई तो मिले मसहरी,सदा जिंदगी हरी भरी है
अगर ख़ुशी होती तो हमको,हंस हंस मन दोहरा होता है
जब दुःख होता है तो चेहरा,चिंता से गहरा होता है
अपनी तबियत  हरी हो गयी,देखा उनका सुन्दर चेहरा
किसने यह मन हरा हाय रे,मतवाला था रूप सुनहरा
बदन छरहरा अच्छा लगता,क्योकि अंत में लगा हरा है
रंग सुनहरा,काली आँखे,पर उनमे काजल गहरा  है
उनकी जुल्फे लहराती है,उनका आँचल फहराता  है
लहराता हो या फहराता,हरा बीच में पर आता है
आज देश के नेता कहते,हमको हरी क्रांति लाना है
हरी लगा है तभी तरक्की,कर पाया यह हरियाणा है
हरिद्वार में हरियाली है,क्योकि हरी आगे बैठा है
देहरादून हरा लगता है,हरी बीच में आ लेटा  है
हरी सुभद्रा कृष्णचन्द्र ने,रावण को थे राम हराये
हरे राम और हरे कृष्ण का,जाप और भी फ़ैल रहा है
सबसे अच्छे आम दशहरी,है प्यारा त्यौहार दशहरा
हरी घांस खाकर के पशु भी,देने लगते दूध दोहरा
अक्सर लोग कहा करते है,कितनी बार सुना जाता है
के सावन के हर अंधे को,सब कुछ हरा नज़र आता है
लेकिन आँखों वालों तुम भी,मेरी बात मान जाओगे
जीवन के हर रंग ढंग में,अक्सर हरा भरा पाओगे

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Saturday, July 9, 2011

बारात

    बारात
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बारात चढ़ रही है
मंथर गति से ,आगे बढ़ रही है
दुल्हे के मित्र और रिश्तेदार,
पसीने से तरबतर,
जोश से नाच रहे है
और मोका मिलने पर,
दुल्हन की सजीधजी,
सहेलियों को ताक रहे है
दुल्हे के  कुछ रिश्तेदार,
दुल्हे पर नोट वार,
हाथ ऊँचा कर
 सबको दिखाने में लग रहे है
और बैंड बाजे वाले, नोट पकड़ने को ,
चील कव्वों की तरह लपक रहे है
लड़की का  बाप,थका हुआ व्यथित है ,
चेहरे पर चिंता है
और लड़के का बाप ,प्रफुल्लित है,
मन ही मन दहेज़ की रकम गिनता है
दूल्हा,सेहरे में चेहरे को छुपाये,
न कुछ देखता है न सुनता है
बस आने वाले खुशहाल दिनों के सपने बुनता है
दुल्हन,कहीं चुपके से,
कनखियों से,
घोड़ी पर चढ़े,अपने सजे धजे,
दुल्हे को निहारती है
और दुल्हन की माँ भी सज रही है,उसे ,
अपने दामाद की, उतारनी आरती है
शादी के मेहमान,
बारात आने के इन्तजार में,
लग रहे है थके थके
सोच रहे है,कब बारात आये
और कब खाना लगे
कुछ मेहमान तो,
शगुन का लिफ़ाफ़ पकड़ा कर
खिसक गए है,चाट पापड़ी खाकर
घोड़ी की लगाम पकडे,
घोड़ी वाला सोच रहा है,
क्या एसा भी दिन आएगा?
जब वो भी दूल्हा बन,
ऐसी सजी धजी घोड़ी पर बैठ पायेगा
बेन्ड वाला सोच रहा है,
कि जब होगी उसकी शादी,
तो उसके साथी
तो  बन जायेगे बाराती,
तो फिर बेन्ड कौन बजाएगा
गेस का हंडा उठानेवाली महिला
सोच रही है ,
कि कब बारात ठिकाने पर पहुंचे,
और उसे मजदूरी मिल जाये
और वो अपने घर जाकर,
भूखे बैठे बच्चों को खाना खिलाये
और तो और,दुल्हे कि अम्मा,अभी से,
दादी बनने के सपने गढ़ रही है
बारात आगे बढ़ रही है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


Friday, July 8, 2011

संस्कार

संस्कार
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हमने जब बच्चे पाले
तो विनम्रता और आज्ञाकारी
होने के संस्कार डाले
हमें ख़ुशी है ,हमारा बेटा,
अभी भी संस्कारी है
हमारा नहीं तो क्या,
अपनी पत्नी का तो आज्ञाकारी है

घोटू

जनरेशन गेप

जनरेशन गेप
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हमारे बच्चे,जब छोटे होते है
हमारी उंगली पकड़ कर खड़े होते है
पर अपने पेरों पर खड़े होने के बाद,
वे अपनी खिचड़ी अलग पकाते है
उनके विचार,हमारे विचारों से मेल नहीं खाते है
और कहते है की ये जनरेशन का अंतर है
पर ये बात हमारी समझ के बाहर है
 क्योकि हमारी और उनकी उनकी ,
उम्र में तब भी था इतना ही अंतर
जब वो चलते थे हमारी उंगली पकड़ कर

घोटू

भविष्यवाणी

भविष्यवाणी
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एक पेंसठ वर्षीय बुढ़िया ने,
एक ज्योतिषी को,
अपनी जन्म कुंडली दिखलाई
 ज्योतिषी ने,काफी बातें सच बतलाई
बोला अटल सुहाग है,
काया निरोग है
पर माई,तेरा दो सासों का योग है
बुढ़िया बोली,तेरी ये बात है बेकार
मेरे ससुर तो गए है स्वर्ग सिधार
पास खड़ा बूढा पति बोला,
ज्योतिषी की बात में दम है
तेरी बहू, क्या सास से कम है?

घोटू

शिकवा

  शिकवा
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पहले तो आग लगायी,
रूप से अदाओं से
चंचल सी चितवन से,
मदमाते भावों से
और  अब आँखों से ,
आंसू ढलकाती हो
बन कर के दमकल तुम,
आग क्यों बुझाती हो

घोटू

 

Thursday, July 7, 2011

बच्चे बड़े हो गए है

बच्चे बड़े हो गए है
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शादी के बाद,
जब हमारे बच्चे हुए,
हमारी शरारतों पर लगाम लग गयी
हर बार सुनना पड़ता था बस यही
अरे, कुछ तो शर्म करो ,
बच्चे बड़े हो रहे है
धीरे धीरे बच्चे बड़े होकर स्कूल जाने लगे
तो हम अपने फालतू खर्चे घटाने लगे
बच्चों के भविष्य की चिंता में,
पैसे बचाने लगे
दिमाग में रहता था हरदम ये ख़याल
खर्चा करो संभाल,
क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे है
और अब जब बच्चे सचमुच बड़े हो गए है
अपने पैरों पर खड़े हो गए है
अब उनका अपना एकीकृत परिवार है
मियां,बीबी,बच्चे,बस ये ही संसार है
माँ बाप,भाई बहन,ये सब जो रिश्ते नाते है
इन्हें फोन पर कभी 'हाय''हल्लो' कह कर निभाते है
फादर्स दे पर एक कार्ड पिता को,
और मदर्स दे पर एक कार्ड माँ को देते है
और अपना दायित्व निभा देते है
समझदार और प्रेक्टिकल ये हो गए है
हाँ,बच्चे सचमुच में बड़े हो गए है
माँ बाप अब भी परेशान है
सोचते है ,कि बच्चे नादान है
आज अपने दंभ में,सबको भुला कर,
अपने आप में खो रहें है
ये भी भूल जाते हैं कि ,
उनके बच्चे भी बड़े हो रहे है
उनकी समझ में ये नहीं आता है
कि इतिहास अपने आप को दोहराता है
अपना किया वो ही भरेंगे
उनके बच्चे जैसा देखेंगे,वैसा ही करेंगे
जिनके छोटे छोटे फल,
पहुँच से बहुत परे है,
ऐसे छायाविहीन खजूर के ,
ऊंचे वृक्ष बन कर खड़े हो गए है
बच्चे क्या सचमुच बड़े हो गए है ?




मदन मोहन बाहेती 'घोटू'