बोनस वाली जिंदगी
मैंने एक भरपूर जिंदगी जी ली है,
काट रहा हूं बाकी जीवन बोनस में
अपने साथी संगी और परिवार जनों
के प्रति मेरा प्यार भरा है नस-नस में
जीवन के कुछ दिन मस्ती में बीत गए, किलकारी भरते, मुस्काते, बचपन में
कुछ दिन बीते यूं ही किशोर अवस्था में
उच्छृंखल से, मौज मनाते ही यौवन में और फिर शादी हुई गृहस्थी बोझ बड़ा, गया उलझता मैं कमाई की उलझन में
पग पग बाधाओं से टकराव हुआ ,
कितने सुख-दुख झेले अबतक जीवन में पाले पोसे बच्चे, उनके पंख उगे ,
नीड़ बसा कर अपना, चले गए बसने
मैंने एक भरपूर जिंदगी जी ली है,
काट रहा हूं बाकी जीवन बोनस में
इस जीवन में खट्टे मीठे कितने ही, अनुभव पाकर के अब जब परिपक्व हुआ
धीरे-धीरे सीख सीख दुनियादारी
अच्छा बुरा समझने में कुछ दक्ष हुआ
दबे पांव आ गया बुढ़ापा ,यह बोला
बूढ़े हो तुम ,किसी काम के नहीं रहे जबकि चुस्त दुरुस्त काम में यह बूढ़ा, अपने मन की पीर बताओ किसे कहे कार्य शैली में अंतर दोनों पीढ़ी का
सोच नहीं उनकी मिलती है आपस में
मैंने एक भरपूर जिंदगी जी ली है
काट रहा हूं बाकी जीवन बोनस में
यह सच है की बढ़ती हुई उम्र के संग
हुआ समय का भी कुछ ऐसा पगफेरा तने हुए तन में कमजोरी समा गई तरह-तरह की नई व्याधियों ने घेरा
काम धाम कुछ बचा नहीं है करने को,
खालीपन ही खालीपन है जीवन में
लाचारी ने मुझे निकम्मा बना दिया,
रह रह टीस उठा करती मेरे मन में
कल तक तो चलता फिरता था फुर्तीला देखो आज हो गया कितना बेबस मै
मैंने एक भरपूर जिंदगी जी ली है,
काट रहा हूं बाकी जीवन बोनस में
वृद्धावस्था मुझे इस तरह सता रही पिछले जन्मों की मुझे मिल रही कोई सजा
रह गया वस्तु में एक चरण छूने की बस
मेरे सर पर जब से बुजुर्ग का ताज सजा जी करता है त्यागूं सभी मोह माया ,
कुछ पुण्य कमा लूं,राम नाम का जप करके
तीर्थाटन और दान धर्म थोड़ा कर लूं
करूं प्रायश्चित पापों का जीवन भर के कोशिश करूं कि तर जाऊं मै बैतरणी , यही कामना ईश कृपा की मानस में
मैंने एक भरपूर जिंदगी जी ली है
काट रहा हूं बाकी जीवन बोनस में
मदन मोहन बाहेती घोटू