Monday, May 29, 2017

पैसे वाले 

ऐसे वाले ,  वैसे  वाले 
खेल बहुतसे खेले खाले 
चाहे उजले ,चाहे काले 
लोग बन गए पैसे वाले 

थोड़े लोग 'रिजर्वेशन'के 
थोड़े चालू और तिकड़म के 
कुछ लक्ष्मीजी के वाहन, पर ,
घूम रहे ऐरावत  बन के 
मुश्किल से ही जाए संभाले 
लोग बन गए पैसे वाले 

होते कुछ नीयत के गंदे 
कुछ के उलटे गोरखधंधे 
कुछ है मेहनत वाले बंदे 
कुछ है एनआर आई परिंदे 
यूरो,डॉलर  जैसे वाले 
लोग बन गए पैसे वाले 

कोई रिश्वत खाये भारी 
कोई करे कालाबाज़ारी 
कुछ है ,उडा रहे जो मौजें ,
कर्जा लेकर,दबा उधारी 
लूटो जैसे तैसे वाले 
लोग बन गए पैसे वाले 

पास किसी के धन है काला 
भरा समंदर है पर खारा 
कोई पर पुश्तैनी दौलत ,
कोई 'पेंशन' से करे गुजारा 
जीते ,जैसे तैसे  वाले 
लोग बन गए पैसे वाले 

घोटू 
बढ़ती हुई उम्र 

बढ़ती हुई उमर  में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है 
मुंह पोपला सा लगता है, पिछले गाल नज़र आते है
 
कभी फूल सा महकाता मुख,लगता मुरझाया,मुरझाया 
छितरे श्वेत बाल गालों पर ,काँटों का हो जाल बिछाया 
या तो सर गंजा होता या   उड़ते बाल नज़र आते है 
बढ़ती हुई उमर  में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है 

कभी चमकती थी  जो आँखें,अब लगती धुंधलाई सी है 
बाहुपाश वाले हाथों पर ,आज झुर्रियां  छाई  सी है 
यौवन का धन जब लुट जाता ,सब कंगाल नज़र आते है 
बढ़ती हुई उमर  में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है 

तन कर चलने वाला ये तन,हो जाता अशक्त,ढीला है 
लाली लिए कपोलों का रंग ,अब पड़ने लगता पीला है 
थोड़े बेढब और बेसुरे ,हम बदहाल  नज़र आते है 
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल नज़र आते है 

फिर भी कोई सुंदरी दिखती,तो मन मचल मचल जाता है 
मुई आशिक़ी नहीं  छूटती ,तन कितना ही ढल जाता है 
याद जवानी के बीते दिन,,गुजरे साल नज़र आते है 
बढ़ती हुई उमर में अक्सर ,ऐसे हाल  नज़र आते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जीने में मुश्किल होती है 

इतनी सुविधा ग्रस्त हो गयी ,आज हमारी जीवनशैली ,
कि विपरीत परिस्तिथियों में ,जीने में मुश्किल होती है 
यूं तो कई सफलता मिलती ,पर आनंद तभी आता है ,
पग पग बाधाओं से लड़ कर ,जब मंजिल हासिल होती है 

गर्दन में रस्सी बंधवा कर ,गगरी कुवे में जाती है ,
पानी में डूबा करती है ,तब उसका रीतापन भरता 
कभी किसी पनिहारिन हाथों ,ओक लगा ,पीकर तो देखो,
तुम्हे लगेगा ऐसा जैसे ,कलशों से है  अमृत  झरता 
पर अब ये सुख ,मिल ना पाता ,क्योंकि नल जल के आदी हम,
प्यास हमारी तब बुझती है ,जब कि बोतल 'चिल ' होती है 
इतनी सुविधा ग्रस्त हो गयी,आज हमारी जीवन शैली,
कि विपरीत परिस्तिथियों में ,जीने में  मुश्किल होती है 

बाती  डूबी रहे तैल में और जलाती रहती खुद को ,
तब ही अंत तिमिर का होता ,और जगमग होता है जीवन 
दीवाली को दीपोत्सव में ,सजती है दीपों की माला,
रोज आरती और पूजा में ,दीप प्रज्जवलित करते है हम 
आत्मोत्सर्ग दीपक करते है ,हमको लगते टिमटिम करते  
बिजली की बिन ,हमे एक पल ,ख़ुशी नहीं हासिल होती है 
इतनी सुविधाग्रस्त हो गयी ,आज हमारी जीवन शैली ,
कि विपरीत परिस्तिथियों में,जीने में मुश्किल होती है 

शीतल हवा ,वृक्ष की छाया ,भुला दिया ऐ,सी,कूलर ने,
निर्मलता नदियों के जल की,हजम कर गया है 'पॉल्यूशन'
परिस्तिथियाँ कम बदली है,उससे ज्यादा बदल गए हम,
भौतिकता में ऐसे उलझे,भूल गए प्रकृति का पोषण  
भूल गए सब रिश्ते नाते, भूले हम अहसानफरोशी ,
क्या ऐसी जीवन पद्धिति भी,जीने के काबिल होती है 
इतनी सुविधाग्रस्त हो गयी ,आज हमारी जीवनशैली ,
कि विपरीत परिस्तिथियों में ,जीने में मुश्किल होती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दास्ताने मजबूरी 

कभी हम में भी तपिश थी ,आग थी,उन्माद था ,
      गए अब वो दिन गुजर ,पर भूल हम पाते  नहीं 
तमन्नाओं ने बनाया इस कदर है बावला ,
      मचलता ही रहता है मन ,पर हम समझाते नहीं 
जब महकते फूल दिखते या चटकती सी कली,
      ये निगोड़े  नयन  खुद पे ,काबू  रख  पाते  नहीं 
हमारी मजबूरियों की इतनी सी है दास्तां ,
       चाहते है चाँद  ,जुगनू  तक पकड़  पाते  नहीं 

घोटू  
अप्सरा बीबी 

ज्यों  अपने घर का खाना ही ,सबको लगता स्वादिष्ट सदा 
अपने खटिया और  बिस्तर पर,आती है सुख की नींद सदा  
जैसे अपना हो  घर छोटा  ,पर हमें  महल सा लगता है 
अपना बच्चा कैसा भी हो ,पर  खिले कमल सा लगता है 
हर पति को बिस्तर पर बीबी ,सदा अप्सरा लगती  है 
अच्छी अच्छी हीरोइन से ,नहीं कम जरा  लगती है
मीठी मीठी बात बना कर ,पति पर जादू  चलवाती   
कुछ मुस्का कर,कुछ शरमा कर,बातें सारी मनवाती
महकाती उसकी रातों को ,महक मोगरा  लगती है 
हर पति को बिस्तर पर बीबी,सदा अप्सरा लगती है 
कभी मोम  की गुड़िया लगती,कभी भड़कता सा शोला 
कभी रिझाती अपने पति को,दिखला कर चेहरा भोला 
ना ना  कर पति को तड़फती,नाज और नखरा करती है 
हर पति  को बिस्तर पर बीबी ,सदा अप्सरा लगती है 
शेर भले कितना हो पति पर ,वो बीबी से डरता है 
उस आगे भीगी बिल्ली बन ,म्याऊं ,म्याऊं करता है 
अच्छे भले आदमी को वो  ,इतना पगला करती है 
हर पति को बिस्तर पर बीबी , सदा अप्सरा लगती है 
पूरी निष्ठा से फिर खुद को पूर्ण समर्पित  कर देती 
दिल से सच्चा प्यार लुटा ,जीवन में खुशियां भर देती 
लगती साकी और कभी खुद,जाम मदभरा  लगती है 
हर पति को बिस्तर पर बीबी,सदा अप्सरा  लगती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'' 

भूटान में 

मैं तुम्हे क्या बताऊँ ,भूटान में क्या है 
उन हरी भरी  पहाड़ियों का ,अपना ही मज़ा है 
वो प्रकृति के उरस्थल पर ,उन्नत उन्नत शिखर 
जिनके सौंदर्य का रसपान ,मैंने किया है जी भर 
उन उन्नत शिलाखंडों में शिलाजीत तो नहीं मिल पायी 
पर उनके  सानिध्य  मात्र से, मिली एक ऊर्जा सुखदायी 
मैं आज भी उन पहाड़ों के स्पंदन को महसूस करता हूँ 
और प्रसन्नता से सरोबार होकर ,
फिर से उन घाटियों में विचरता हूँ
जी करता है कि मैं मधुमक्खी की तरह उड़ कर,
फिर से लौट जाऊं उन शिखरों पर 
और वहां खिले हुए फूलों का रसपान कर लू 
और मीठी यादों का ,ढेर सारा मधु ,
अपने दिल  में भर लू 
वहां की हवाओं की सौंधी सौंधी खुशबू,
आज भी मेरे नथुनों में बसी हुई है 
वो नीले नीले पुष्पों की सेज ,
आज भी मेरे सपनो में सजी हुई है 
जैसे गूंगे को ,गुड़ का स्वाद बताना मुश्किल है 
वैसे ही मुझे भी ,वहां की याद भुलाना मुश्किल है 

घोटू 
  
सभी को अपनी पड़ी है 

सभी को अपनी पड़ी है ,
कौन किसको पूछता है 
पालने को पेट अपना,
हर एक  बंदा जूझता है 
कोई जुट कर जिंदगी भर ,
है सभी साधन जुटाता 
कोई पाता विरासत में ,
मौज जीवन भर मनाता 
कोई जीवन काटता है,
कोई जीवन जी रहा है 
कोई रहता है चहकता ,
कोई आंसू पी रहा है 
अपनी अपनी जिंदगी का,
नज़रिया सबका अलग है 
कोई तो है मस्त मौला ,
कोई चौकन्ना,सजग है 
कोई जाता मंदिरों में ,
लूटने दौलत धरम की 
ये जनम तो जी न पाता ,
सोचता अगले जनम की 
गंगाजी में लगा डुबकी,
पाप कोई धो रहा है 
और वो इस हड़बड़ी में,
आज अपना खो रहा है 
कोई औरों के फटे में ,
मज़ा लेकर झांकता है 
अपनी कमियों को भुलाकर ,
दूसरों की ,आंकता है 
नहीं नियति बदल सकती ,
भाग्य के आधीन सब है 
उस तरह से नाचते है ,
नचाता जिस तरह रब है 
बहा कर अपना पसीना ,
तुमने जो दौलत कमाई 
वो भला किस कामकी जो ,
काम तुम्हारे न आयी 
इसलिए अपनी कमाई,
का स्वयं उपभोग कर लो 
जिंदगी जितनी बची है,
उतने दिन तक मौज है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 बेबसी 

कुछ के आगे बस चलता है. ,कुछ के आगे हम बेबस है ,
     कहने को मरजी  के मालिक,रहते किस्मत पर निर्भर है 
लेकिन हम अपनी मजबूरी ,दुनिया को बता नहीं पाते ,
       जिस को पाने को जी करता ,वो चीज पहुंच के बाहर है 
क्या खाना है ,क्या पीना है,इस पर बस चलता है अपना ,
       इस पर न जबरजस्ती कोई ,जो मन को भाया,वो खाया 
बालों पर चलता अपना बस ,क्योंकि ये घर की खेती है ,
       जब भी जी चाहा ,बढ़ा लिए ,जब जी में आया,मुंडवाया 
जब जी चाहा, जागे,,सोये, जब जी चाहा ,नहाये ,धोये,
       लेकिन जीवन के हर पथ पर ,अपनी मरजी कब चलती है 
कुछ समझौते करने पड़ते ,जो भले न दिल को भाते है 
           रस्ते में  यदि  हो बाधाएं ,तो  राह  बदलनी  पड़ती  है 
लेकिन ये होता कभी कभी,कि अहम बीच में आजाता ,
      तो फिर मन को समझाने को ,हमने कुछ ऐसा काम किया 
शादी के बाद पड़ी पल्ले ,बीबी तो बदल नहीं सकते ,
        तो फिर मन की सन्तुष्टि को,हमने बिस्तर ही बदल लिया 

घोटू 
इस ढलते तन को मत देखो 

कोई कहता ढलता सूरज,कोई कहता बुझता दिया,
          कोई कहता सूखी नदिया ,मुरझाया फूल कोई कहता 
मै कहता हूँ कि मत देखो ,तुम मेरे इस ढलते तन को..  ,
         इस अस्थि पंजर के अंदर ,मस्ती का झरना है  बहता 
है भले ढली तन की सुर्खी,है भरा भावनाओं से मन ,
               ढले सूरज में भी होती,उगते सूरज की लाली   है 
माना है जोश नहीं उतना ,पर जज्बा अब भी बाकी है,
            अब भी तो ये मन है रईस ,माना तन पर कंगाली है 
मत उजले केशों को देखो ,मत करो नज़रअंदाज हमें,
               अंदाज हमारे देखोगे ,तो घबरा गश खा जाओगे 
स्वादिष्ट बहुत ये पके आम,हैं खिले पुराने ये चांवल,
             इनकी अपनी ही लज्जत है ,खाओगे,भूल न पाओगे 

घोटू 

Thursday, May 25, 2017

वाहन सुख 

कुछ लक्ष्मीजी के वाहन पर ,ऐसी लक्ष्मी की कृपा हुई ,
वो इंद्र सभा में जा बैठे और इंद्र वाहन से फूल गए 
कुछ शीतलामाता के वाहन ,सीधे सादे सेवाभावी,,
माता का जब वरदान मिला ,अपनी स्वरलहरी भूल गए 
थे कभी विचरते खुले खुले ,जब से शिववाहन बन बैठे,
शिवजी के संग पूजे जाते ,अब उनकी शान निराली है 
कुछः दुर्गाजी के वाहन ने ,ऐसा आधिपत्य जमाया है ,
उनके कारण दुर्गामाता ,कहलाती शेरांवाली है 
बिल से जब निकले कुछ मूषक ,बन गए गजानन के वाहन,
मोदक के साथ देश को भी ,वो कुतर कुतर कर खाते है
विष्णु के वाहन गरुड़ आज ,मंदिर में पूजे जाते है ,
यम के वाहन महिष  से पर ,सभी लोग घबराते है 
है हंस सरस्वती का वाहन,और उसकी शान निराली है 
पानी और दूध पृथक करता ,पर वो भी चुगता है मोती  
ये वाहन और वाहन  चालक ,चालाक बहुत सब होते है ,
साहब की सेवा करते है ,जिससे है स्वार्थसिद्धि होती  

घोटू 

होटल के बिस्तर की आत्मकथा 

जाने कितनी बार मिलन की सेज मुझी पर सजती है 
खनका करती कई चूड़ियां ,और पायलें बजती है 
 कितने प्रेमी युगल ,मिलन का खेल यहाँ करते खेला 
कितनी बार दबा करता मै और झटके करता झेला 
नित नित नए और कोमल तन का मिलता स्पर्श मुझे 
देख  प्रेम लीलाएँ उनकी ,कितना मिलता हर्ष मुझे 
कई प्रौढ़ और बूढ़े भी आ करते याद जवानी को 
मै सुख का संरक्षण देता ,थके हुए हर प्राणी को 
मै निरीह ,निर्जीव बिचारा ,बोझ सभी का हूँ सहता 
नहीं किसी से कुछ भी कहता ,बस चुपचाप पड़ा रहता 
कोई होता मस्त,पस्त  कोई ,कोई उच्श्रृंखल सा 
मै सबको सुकून देता हूँ , मै हूँ बिस्तर होटल का  

घोटू 
मिलन की आग 

जगमगाती हो दिलों में ,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
भले दीपक रहे जलता ,या बुझाया जाय फिर,
मिलन की अठखेलियों में ,फर्क कुछ पड़ता नहीं
 
दिल के अंदर जब सुलगती हो मिलन की आग तो. ,
रात दिन ना देखता है,नहीं मौसम देखता 
गमगमाता पुष्प हो तो प्यार में पागल भ्र्मर ,
डूबता रसपान में ,ना मुहूरत ,क्षण देखता 
स्वयं ही होता समर्पण ,हो मिलन का जोश जब ,
होश रहता कब किसी को ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
जगमगाती हो दिलों में प्यार की जब रौशनी,
अँधेरा हो या उजाला ,फर्क कुछः पड़ता नहीं 

डूबता जब प्यार में तो भूल जाता आदमी ,
देखती है चाँद ,तारे और सूरज की नज़र 
प्रेम लीला में रंगीला होता है वो इस कदर ,
डूबता अभिसार में है ,पागलों सा बेखबर 
इस तरह अनुराग की वह आग में है झुलसता ,
मस्त होकर पस्त  होता ,फर्क कुछ पड़ता नहीं 
जगमगाती हो दिलों में,प्यार की जब रौशनी,
अन्धेरा हो या उजाला फर्क कुछ पड़ता नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, May 23, 2017

आधार कार्ड 

मेरी आँखों की पुतली में वास तुम्हारा 
मेरे हाथों के पोरों पर  छाप   तुम्हारा 
तुम बिन मेरी कोई भी पहचान नहीं है 
बिना तुम्हारे ,होता कुछ भी काम नहीं है 
तुम ही मेरा संबल हो और तुम्ही सहारा 
मैं ,मैं तब हूँ ,जब तक कि है संग तुम्हारा
रहते मेरे साथ हमेशा ,यत्र तत्र हो  
तुम मेरे आधार कार्ड,पहचानपत्र हो 

घोटू  
दोहे 
१ 
सीख गर्भ से आ रही,कम्प्यूटर का ज्ञान 
अभिमन्यु सी हो रही,पैदा अब संतान 
२ 
लिए झुनझुना खेलना ,हुई पुरानी बात 
अब है बच्चे खेलते ,मोबाइल ले हाथ 
३ 
घर घर में ऐसी हुइ,कंप्यूटर की पैठ 
ए बी,सी डी हो गया ,गूगल,इंटरनेट 
४ 
पोती से दादी कहे ,हमको दो समझाय 
व्हाट्सएप पर संदेशे, ,कैसे भेजे जाय 
टीचर से बढ़ कर गुरु ,गूगल ,गुरुघंटाल 
सेकंडों में हल करे, सारे प्रश्न,सवाल 

घोटू 
कबूतर कथा 

जोड़ा एक कबूतर का ,कल ,दिखा ,देरहा मुझको गाली 
क्यों कर मेरी 'इश्कगाह ' पर ,तुमने लगवा  दी  है जाली 
प्रेम कर रहे दो प्रेमी पर  ,काहे को  प्रतिबंध  लगाया 
मिलनराह  में वाधा डाली ,युगल प्रेमियों को तडफाया 
बालकनी के एक कोने में , बैठ गुटर गूँ  कर लेते थे 
कभी फड़फड़ा पंख,प्यार करते,तुम्हारा क्या लेते थे 
मैंने कहा कबूतर भाई ,मैं भी हूँ एक प्रेम  पुजारी 
मुझको भी अच्छी लगती थी ,सदा प्रेम लीला तुम्हारी 
लेकिन जब तुम,हर चौथे दिन ,नयी संगिनी ले आते थे 
उसके संग तुम मौज मनाते ,पर मेरा दिल तड़फाते थे 
क्योंकि युगों से मेरे जीवन में बस एक कबूतरनी  है 
जिसके साथ जिंदगी सारी ,मुझको यूं ही बसर करनी है 
तुम्हे देखता मज़ा उठाते,अपना साथी बदल बदल कर 
मेरे दिल पर सांप लौटते,तुम्हारी किस्मत से जल कर 
मुझको बड़ा रश्क़ होता था ,देख देख किस्मत तुम्हारी 
रोज रोज की घुटन ,जलन ये देख न मुझसे गयी संभाली 
और फिर धीरे धीरे  तुमने ,जमा लिया कुछ अड्डा ऐसा 
तुमने मेरी बालकनी को ,बना दिया प्रसूतिगृह जैसा 
रोज गंदगी इतनी करते ,परेशान होती  घरवाली 
इसीलिए इनसे बचने को ,मैंने लगवा ली है जाली 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
क्षणिकाएं 
१ 
वो अपनी हठधर्मी को अनुशासन कहते है 
उनके लगाए प्रतिबंध ,उनके सिद्धांत रहते है 
हमारा अपनी मर्जी से जीना ,कहलाता उच्श्रृंखलता है 
ये हमे खलता है 
२ 
इसे आत्मनिर्भरता कहे या स्वार्थ ,
या अपना हाथ,जगन्नाथ 
बिना दुसरे की सहायता के ,
जब अपनी तस्वीरें ,
अपनी मरजी मुताबिक़ खींची जाती है 
'सेल्फी' कहलाती है 
३ 
समय है ,सबसे बड़ा 'कोरियोग्राफर'
जो सबको नचाता है,अपने इशारों पर 
४ 
गुस्से सी ,समंदर की लहरें ,
जब उमड़ती हुई आती है 
किनारे पर ,शांत पड़ी हुई ,
सारी अच्छाइयों को भी ,बहा ले जाती है 

घोटू 
आ जाया करो 

जो हमसे मिन्नतें करते थे कि रोज रोज आ जाया करो 
और बैठ हमारे पहलू में ,तुम देर तलक ना जाया करो 
इतने बदले.,अब मिलते तो ,कहते जो कहना ,जल्द कहो ,
हम काम में हैं मशगूल बहुत,तुम वक़्त यूं ही ना ज़ाया करो 

घोटू 
                   दो दो मायें 

हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी 
शादी बाद 'मदर इन लॉ 'मिल,कर देती है खुशियां दूनी
 
जन्मदायिनी माँ का तो दिल,हरदम भरा प्यार से रहता 
जीवनसाथी की माँ में भी,झरना सदा प्यार का बहता 
माँ और सासू माँ , दोनों  बिन,लगे जिंदगी सूनी सूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी
 
दे दामाद ख़ुशी बेटी को, सासू माँ का प्यार उमड़ता 
पोता दे और वंश बढ़ाये ,सास बहू रिश्ता, रंग चढ़ता 
एक दूजे के प्रति दोनों में ,होती प्रीत,मगर अंदरूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ ,एक कुदरती,एक कानूनी
 
पति पत्नी का,एक दूजे की ,माँ के संग संबंध  निराला 
अगर मिले मन,स्वर्ग बने घर,नहीं मिले तो गड़बड़झाला 
इन दोनों की नोक झोंक  बिन ,लगे जिंदगी बड़ी  अलूनी 
हर एक के जीवन में दो माँ,एक कुदरती,एक कानूनी 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'