Sunday, March 13, 2011

विनाश लीला

       
खंड खंड  भूखंड  हो गया
उदधि भी उद्दंड हो गया
ऐसी लहरें आई सुनामी
 सभी तरफ पानी ही पानी
प्रलय नहीं महाप्रलय आ गया
कैसा हाहाकार  छा गया
कांपा धरती का अन्तरतर
लहरों ने भी उठा लिया सर
तिनके जैसे सभी बह गए
घर मकान और किले ढह गए
जब प्रकृति ने कोप दिखाया
तो  जर्रा जर्रा   थर्राया
एसा था कुदरत का तांडव
तिनका तिनका बिखरा वैभव
रूप धरा अग्नि ने भीषण
परमाणु का हुआ विकिरण
जब कांपी जापानी धरती
मानवता थी आहें भरती
जहाँ कभी प्रगति ,विकास था
 सर्वनाश ही सर्वनाश  था
ऐसी विपदा आई भयंकर
उगते सूरज की धरती पर
प्रगति पर प्रकृति है भारी
बेबस मानव की लाचारी

 


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