सपन संजोये प्रियदर्शन के,गीत मिलन के हम गाते है
किस्मत से छींका टूटेगा ,अपने मन को समझाते है
हुए प्यार में अंधे उनके,पर बटेर कब हाथ लगेगी
जो बाँट रही रेवड़ी मीठी ,हमको भी तो कभी मिलेगी
आस लगाये हम बैठे है,छप्पर फाड़ मिलेगा कब धन
कब सूखी बगिया सर्सेगी,फूल खिलेंगे मेरे आँगन
इस अंधियारी सी कुटिया में ,जाने कब उजियारा होगा
कब आशा के दीप जलेंगे,कब दीदार तुम्हारा होगा
सपन मिलन के संजो रखे है,जाने कब वो होंगे पूरे
कब परियां नाचेंगी मन में ,जाने कब आएगी हूरें
मेरे मन के वृन्दावन में, रास करेगी राधा रानी
दिल की इस सूखी धरती पर कब बरसेगा रिमझिम पानी
सोंधी सोंधी सी खुशबू से,कब महकेगी मन की माटी
कब तुम मुझे सहारा दोगी ,बन कर इस अंधे की लाठी
तिल तिल करके जलते दिल को,ये दूरी मंजूर नहीं है
भटक रहा है बंजारा मन,पर अब दिल्ली दूर नहीं है
कहते लोग ,भोर में देखे ,सब सपने सच हो जाते है
गीत मिलन के हम गाते है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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