Monday, January 9, 2012

रियो की रंगीनियों में खो गया मन

रियो की रंगीनियों में खो गया मन
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रियो की रंगीनियों में खो गया मन
बावरा सा ,दिवाना ये हो गया मन
स्वच्छ निर्मल जल,समुन्दर का किनारा
रजत तट  पर देख परियों का नज़ारा
नग्न बदना,रूपसियाँ,देह चिकनी
कर रही अठखेलियाँ,बस पहन बिकनी
देख कर उनका मचलता पूर्ण यौवन
भला विचलित नहीं होगा ,कौनसा मन
धूप में लेटी,तपाती,सुनहरा  तन
रियो की रंगीनियों में खो गया मन
ज़ील है ब्राजील  में और मस्तियाँ  है
और साम्भा नृत्य की तो बात क्या है
रात है रंगीन तो दिन भी हसीं  है
हर तरफ माहोल में  खुशियाँ बसी है
रोज ही त्योंहार सा दिखता नज़ारा
रियो तो है एक सुन्दर शहर प्यारा
सज रहा नव वर्ष में ये बना दुल्हन
रियो की रंगीनियों में खो गया मन
तैरता क्रिसमस ट्री,मन को लुभाता
है शुगर के लोफ सा पर्वत  सुहाता
देख केबल कार से सुन्दर नज़ारा
हरित पर्वत और रियो का शहर सारा
रेल से चढ़ ,पहाड़ पर होता अचंभा
लोर्ड क्राइस्ट का खड़ा स्टेचू लम्बा
बुढ़ापे में जवानी का चढ़ा चन्दन
रियो की रंगीनियों में खो गया मन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

(नव वर्ष पर ब्राज़ील की  यात्रा के दौरान लिखी गयी कविता)

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