Thursday, January 19, 2012

गुल से गुलकंद

गुल से गुलकंद
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पहले थी तुम कली
मन को लगती भली
खिल कर फूल बनी
तुम खुशबू से सनी
महकाया  जीवन
हर पल और हर क्षण
पखुडी पखुडी खुली
मन में मिश्री  घुली
गुल,गुलकंद हुआ
उर आनंद   हुआ
असर  उमर का पड़ा
दिन दिन प्यार बढ़ा
कली,फूल,गुलकंद
हरदम रही   पसंद
खुशबू प्यार भरी
उम्र यूं ही गुजरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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