डोर मेरी है तुम्हारे हाथ में
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मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
नाव कागज की बना मै,तुम मचलती धार हो
जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी हालात में
उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
नाव कागज की बना मै,तुम मचलती धार हो
जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी हालात में
उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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