विश्व पत्र लेखन दिवस पर विशेष
लाल डब्बे की पीर
ख़ून के आंसू लाल डब्बा रो रहा है
जुल्म उसके साथ क्या-क्या हो रहा है
था जमाना रौब जब उसका बड़ा था
चौराहों पर शान से रहता खड़ा था
उसकी लाली करती आकर्षित तभी तो
खोल कर मुख करता आमंत्रित सभी को
अपने सारे सुखऔर दुख पत्र में लिख
मेरे मुंह में डाल मुझको करते अर्पित
बुरे या अच्छे तुम्हारे हाल सारे
पहुंचाता था सभी अपनों को तुम्हारे
प्रेमी अपने प्यार के सारे संदेशे
डालते थे लिफाफे में बंद करके
मेघदूतों की तरह उड़ान भर के
पहुंचा देता पास में लख्ते जिगर के
खबर दुःख की जैसे कोई के मरण की
या खुशी नवजात कोई आगमन की
कोई अर्जी भेजता था नौकरी की
मेरी झोली संदेशों से ही भरी थी
सुहागन सा लाल वस्त्रों से सजा था
चिट्ठियों से हमेशा रहता लदा था
वक्त ने लेकिन किया ऐसा नदारद
कहीं भी आता नजर ना किसी को अब
अपनी सारी अहमियत वह खो रहा है
ख़ून के आंसू लाल डब्बा रो रहा है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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