डर लगता एकाकीपन से
रह गया अकेला जीवन में
डर लगता एकाकीपन से
मैं डरता बहुत बुढ़ापे से,
मुझ पर छाये इस दुश्मन से
रिमझिम रिमझिम कर बरस रहे
इस मुझे चिढ़ाते सावन से
देते हैं व्यर्थ सांत्वना जो,
कुछ अपनों के अपनेपन से
उचटी नींदें,बिखरे सपने,
नैनो से बहते अंसुवन से
मालूम नहीं कब छूटेगा
इस मोह माया के बंधन से
डर लगता एकाकीपन से
मदन मोहन बाहेती घोटू
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