यह जाना बुढ़ापे में
कौन पराया कौन है अपना
कौन प्यार करता है कितना
बड़ी स्वार्थी ,दुनिया सारी
है दिखावटी ,रिश्तेदारी
सब है मतलब के यार
यह जाना बुढ़ापे में
बड़ा छलिया है संसार
ये जाना बुढ़ापे में
बीत गए दिन जब जवान था
हर कोई मुझ पर मेहरबान था
कुछ ना कुछ मुझे पाते थे
हरदम मेरे गुण गाते थे
प्रभु कृपा से धन दौलत थी
खुल्ले हाथ मदद की सबकी
स्रोत संपत्ति का सूख रहा अब
हर कोई मुझसे रूठ रहा अब
बदल रहा व्यवहार सभी का
दुनियादारी ,अब मैं सीखा
जब खाई उन्हीं से मार,
यह जाना बुढ़ापे में
बड़ा छलिया है संसार
ये जाना बुढ़ापे में
हुआ कभी गर्वित मैं थोड़ा
कोई का दिल मैंने तोड़ा
मुझ में आया कभी अहम था
अब जाना वो सिर्फ बहम था
भले बुरे सब हालातो में
तुम शालीन रहो बातों में
बिगड़े नहीं किसी से रिश्ते
रहो सभी से मिलते जुलते
कभी किसी पर क्रोध न जागे
टूटे नहीं प्रेम के धागे
सुख के पल हो या दुख मातम
प्रभु का नाम सुमरना हरदम
एक वही करेगा बेड़ा पार
ये जाना बुढ़ापे में
बड़ा छलिया है संसार
ये जाना बुढ़ापे में
मदन मोहन बाहेती घोटू
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