Wednesday, November 30, 2011

तो समझ लो आ गयी है सर्दियाँ

तो समझ लो आ गयी है सर्दियाँ
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बदन ठिठुराती हवा चलने लगे
और सूरज जल्द ही ढलने  लगे
छुओ पानी,तो बदन गलने  लगे
प्रियतमा की जुदाई  खलने लगे
वक़्त की रफ़्तार कुछ थमने लगे
तेल नारियल का अगर  जमने लगे
शाम होते धुंधलका छाने लगे
कोहरा भी कहर  बरपाने लगे
ठण्ड बाहर निकलना मुश्किल करे
रजाई में दुबकने को दिल करे
मन करे,लें जलेबी का जायका
साथ में हो गरम प्याला चाय का
गर्म तलते पकोड़े,ललचाये मन
गाजरों का गर्म हलवा खायें हम
शाल ,स्वेटर से सुनहरा तन ढके
धूप में तन सेकना अच्छा  लगे
तेल की मालिश कराओ  लेट कर
मुंगफलियाँ गरम खाओ, सेक कर
लगे जलने गर्म हीटर,सिगड़ीयां
तो समझ लो,आ गयी है सर्दियाँ

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मै-घोटू

मै-घोटू
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घोटू हूँ,घोट मोट ,घोट घोट खूब पढ़ा ,
      बड़ा हुआ,घाट घाट का पिया  पानी है
प्रेम किया घट घट से,गौरी के घूंघट से,
       घूँट घूँट रस पीकर, काटी   जवानी है
घटी कई घटनायें,पर घुटने ना टेके,
       कभी लाभ  कभी घाटा,ये ही जिंदगानी है   
घाटा बढ़ा कद मेरा,घुटन ने भी आ घेरा,
      घुट घुट कर जिंदगानी ,यूं ही  बितानी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 28, 2011

विरोधाभास

विरोधाभास
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तैलीय पदार्थ,जैसे अखरोट,तिल,आदि,
और तले हुए नमकीन,
जब पुराने पड़ जाते है,
उन पर तेल चढ़ जाता है
उनका स्वाद बिगड़ जाता है
कोई नहीं खाता है 
इसके विपरीत,
जब किसी की शादी होती है,
तो एसा रिवाज है,
कि शादी के पहले,
दूल्हा या दुल्हन पर तेल चढ़ाया जाता है
कहते है कि एसा करने पर,
उनके रूप में निखार आता है
पर ये विरोधाभास है,
जो मेरी समझ में नहीं आता है

घोटू

Sunday, November 27, 2011

याद आती है हमें वो सर्दियाँ....

याद आती है हमें वो सर्दियाँ....
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गर्म गुड के गुलगुलों के दिन गये
बाजरे के  खीचडों  के  दिन गये
अब तो पिज़ा और नूडल चाहिये,
हाथ वाले  सिवैयों के   दिन गये
सर्दियों में आजकल हीटर जलें,
संग तपते अलावों के दिन गये
तीज और त्योंहार पर होटल चले,
पूरी  ,पुआ ,पुलाओं के  दिन गये
बिना चुपड़ी तवे की दो चपाती,
आलुओं के परांठों के दिन गये
गरम रस की खीर या फिर लापसी,
उँगलियों से चाटने के दिन गये
बैठ छत पर तेल की मालिश करे,
धूप में तन तापने के दिन गये
बढ न क्लोरोस्टाल जाये,डर कर इसलिए,
जलेबियाँ उड़ाने के दिन गये
गरम हलवा गाजरों का याद है,
रेवड़ियाँ चबाने के दिन गये
धूप  खाती थी पड़ोसन छतों पर,
उनसे नज़रें मिलाने के दिन गये
याद आती है हमें वो सर्दियाँ,
वो मज़ा अब उड़ाने के दिन गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल -- तकियों के क्या करें दोस्ती.......

         ग़ज़ल
तकियों के क्या करें दोस्ती.......
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तकियों से क्या करें दोस्ती,आये पास सुला देतें है
शीशे के प्याले अच्छे है,भर कर जाम,पिला देते है
बहुत मुश्किलें,जीवनपथ पर,पत्थर,कंकर है,कांटे है,
पर जूते है सच्चे साथी,रास्ता पार करा देते है
एक बार जो तप जाए तो,बहुत उबाल दूध में आता,
लेकिन चंद दही के कतरे,सारा दूध जमा देते है
अरे इश्क करने वालों का,ये तो है दस्तूर पुराना,
मालुम है कलाई थामेंगे,बस ऊँगली पकड़ा देते है
दो बुल (bull )अगर प्यार से मिलते,बन जाते नाज़ुक बुलबुल से,
चार प्यार के बोल तुम्हारे,पत्थर भी पिघला देते है
सुना केंकड़ों की बस्ती में,यदि कोई ऊपर उठता है,
कई केंकड़े टांग खींच कर,नीचे उसे गिरा देते है
मारो अगर  किसी हस्ती को,पब्लिक में जूता या थप्पड़,
ब्रेकिंग न्यूज़ ,मिडिया वाले,हीरो तुम्हे बना देते है
यही नियम होता प्रकृति का,कि चिड़िया के बच्चे बढ़  कर ,
उड़ना  सीख,अधिकतर देखा,अपना नीड़ बना लेते है
सुनते धरम,दान,पूजा से,अगला जनम सुधर जाएगा,
इस चक्कर में कई लोग ये,जीवन यूं ही गवां देते है
जीवन चुस्की एक बरफ की,समझदार कुछ खाने वाले,
चूस चूस कर,घूँट घूँट कर,इसका बड़ा मज़ा लेते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 26, 2011

अनकही बातें--खर्राटे

अनकही बातें--खर्राटे
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रजनी की नीरवता में स्तब्ध मौन  सब
और नींद से बेसुध सी तुम, सोयी रहती  तब
तुम्हारे नथुनों से लय मय  तान निकलती
कैसे कह दूं कि तुम हो खर्राटे    भरती
दिल के कुछ अरमान पूर्ण जो ना हो पाते
वो रातों में है सपने बन कर के आते
उसी तरह  बातें जो दिन भर  ना कह पाती
तुम्हारे  खर्राटे बन कर  बाहर  आती
बातों का अम्बार दबा जो मन के अन्दर
मौका मिलते उमड़ उमड़ आता है बाहर
  'फास्ट ट्रेक 'से
जल्दी बाहर आती बातें
साफ़ सुनाई ना देती, लगती खर्राटे
दिन  की सारी घुटन निकल बाहर आती है
मन होता है शांत,नींद गहरी आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 24, 2011

छा रहा इस देश पर कोहरा घना है

दिख हर आदमी कुछ अनमना है
छा रहा इस देश पर कोहरा घना है
व्यवस्थाएं देश की बिगड़ी पड़ी है
जिधर देखो,गड़बड़ी ही गड़बड़ी है
लूट कर के देश नेता भर रहे घर
बेईमानी और रिश्वत को लगे  पर
कोष का हर द्वार चाटा  दीमकों ने
नींव कुरदी,देश की कुछ मूषकों ने
दीवारें इस दुर्ग की पोली पड़ी है
कभी भी गिर पड़ेगी,ऐसे  खड़ी है
लग गया घुन बेईमानी का सभी को
देश सारा खोखला सा है तभी तो
हो गए हालात कुछ ऐसे बदलते
रत्न गर्भा धरा से  पत्थर निकलते
स्वर्ण चिड़िया कहाता था देश मेरे
कर लिया है उल्लूओं ने अब बसेरा
ढक लिया है सूर्य को कुछ बादलों ने
बहुत दल दल दिया फैला कुछ दलों ने
समझ ना आये हुई क्या गड़बड़ी है
लहलहाती फसल थी,उजड़ी पड़ी है
परेशां हर आदमी आता नज़र है
हो रहे इलाज सारे बेअसर  है
पतंगों की तरह बढ़ते दाम हर दिन
और सांसत में फसी है जान हर दिन
हो रहे निर्लिप्त सब इस खेल में है
थे कभी राजा,गए अब जेल में है
दिख रहा ईमान अब दम तोड़ता है
साधने को स्वार्थ हर एक दोड़ता है
त्रसित हर जन,कुलबुलाहट हो रही है
क्रांति  की अब सुगबुगाहट  हो रही है
देश ऐसी स्तिथि में आ खड़ा है
धुवाँ सा है,आग पर पर्दा   पड़ा  है
और भीतर से सुलगता  हर जना है
छा रहा इस देश पर कोहरा  घना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 23, 2011

राजनीति-सेवा या मेवा

राजनीति-सेवा या मेवा
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एक नेताजी थे काफी खुर्राट
हमने कहा, सिखा दो हमें भी राजनीति का पाठ
कैसे कर जनता की सेवा
मिले हमें खाने को मेवा
नेताजी मुस्कराए और बोले,
तुमने मेवों की बात कही है सो है ठीक
राजनीति का पहला पाठ,
मेवों   से ही तुम लो सीख
मेवे तीन प्रकार के पाए जाते है
पहले प्रकार के मेवे ,बहार से सख्त ,
और भीतर से नरम होते है,
और इस श्रेणी में ,बादाम और अखरोट आते है
राजनीति में भी कुछ लोग ऐसे मिलते है
जो बाहर से अखरोट की तरह सख्त दिखते है
अखरोट खाने का सब से अच्छा तरीका है
एक अखरोट को दुसरे अखरोट से टकराओ
उनमे से एक टूट जाएगा,
और आप मजे से गिरी खाओ
इसी तरह मैंने कई ओपोजिशन के अखरोटों को टकराया है
और प्रेम से गिरी का मज़ा उठाया है
और दुसरे किस्म का मेवा,
किशमिश,अंजीर जैसा पाया जाता है
जिसे वैसा का वैसा ही खाया जाता है
आम आदमी जैसी पकी हुई अंजीरों को,
आश्वासनों की रस्सी में पिरो कर,
माला बना कर सुखाया जाता है
और चुनाव के समय प्रेम से खाया जाता है
कुछ अंगूरों से तो मदिरा बना कर,
सत्ता की मस्ती का मज़ा लूटते है
और बाकी दूसरी किस्म के अंगूर जो छूटते है
उन्हें सुखा कर किशमिश बनाई जाती है
जो कई मौको प्रसाद स्वरुप चढ़ाई जाती है
तीसरे किस्म का मेवा खुबानी जैसा होता है
जो बाहर से नरम ,भीतर से कठोर होता है
पार्टी के हाईकमांड की तरह,
बाहर की परत पर ,मीठी मीठी बातें तमाम होती है
पर अन्दर की गुठली,बड़ी सख्त जान होती है
और हम जैसे अनुभवी नेताओं को ही ये मालुम है
की इस सख्त गुठली के अन्दर क्या गुण है
इस सख्त गुठली के अन्दर बादाम सी गिरी होती है
जैसे सीप में मोती है
पर उस गुठली से बादाम निकालना भी एक कला है
इसे जो जानता है,होता उसी का भला है
अब तो तुम समझ गए होगे कि राजनीति क्या है
सेवा के मेवा में कितना मज़ा है

मदन मोहन बाहती'घोटू'

तुम बड़ी तेज हो

तुम बड़ी तेज हो
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तुम बड़ी तेज हो
एक दम अंग्रेज हो
गोरी काया अंगरेजों सी,और राज करने का जज्बा
पहले उंगली पकड़ी मेरी और किया फिर दिल पर कब्ज़ा
एक दूसरे को लड़वा कर ,कायम करली अपनी सत्ता
कूटनीति की चालें खेली,रख कर पास तुरुप का पत्ता
 करती हो साकार कहानी,दो बिल्ली एक बन्दर वाली
दिखा,बराबर बाँट रही हूँ,सारी रोटी खुद ही  खा ली
घर के  सभी माल-मत्ते को ,रखती स्वयं सहेज हो
                                         तुम बड़ी तेज हो
                                          एक दम अंग्रेज हो
गाल गुलाबी है तुम्हारे,और आँखें है काली काली
तुम्हारे होठों की रंगत,लाल लाल है और मतवाली
पीत वर्ण की स्वर्णिम आभा लिए तुम्हारी कंचन काया
ओढ़ रंगीन चुनरिया प्यारी,तुमने अपना रूप सजाया
तुम  रंगीन मिजाज़ बड़ा ही,मनमोहक है रूप निराला
मै तो था कोरे कपड़े सा,तुमने निज रंग में रंग डाला
अपने रंग में मुझे रंग लिया ,वो प्यारी रंगरेज हो
                                               तुम बड़ी तेज हो
                                               एक दम रंगरेज हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
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दर्द का क्या भरोसा,आ जाय जब तब
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
है बड़ी अनबूझ  ये जीवन पहेली
है कभी दुश्मन कभी सच्ची सहेली
बांटती खुशियाँ,कभी सबको हंसाती
कभी पीड़ा,दर्द के  आंसू रुलाती
क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
आसमां में जब घुमड़ कर मेघ छाते
नीर बरसा प्यास धरती की बुझाते
तो गिराते बिजलियाँ भी है कहीं पर
धूप,छाँव,सर्द ,गर्मी,सब यहीं पर
कौन जाने,कौन मौसम ,रहे कब तक
मनाते खुशियाँ रहो ,तुम जियो जब तक
कभी शीतल पवन जो मन को लुभाती
वही लू के थपेड़े बन है तपाती
धूप सर्दी में सुहाती बहुत मन को
वही गर्मी में जला देती बदन को
कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, November 22, 2011

मौसम में बदलाव आ गया

मौसम में बदलाव आ गया
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पहले सड़कों पर, ठेलों पर,आम भरे होते थे पीले
उनकी जगह नज़र आते है,एपल लाल लाल ,चमकीले
सोंधी सी खुशबू महकाते,ठेले गरम मूंगफली वाले
गज़क ,रेवड़ी भर कर सजते,जगह जगह स्टाल  निराले
रस में  डूबी गरम जलेबी,दिखलाती है अपना जलवा
मन को मोहित कर देता है,गरम गरम गाजर का हलवा
गोभी,आलू भरे   परांठे ,रोज रोज मन चाहे खाना
गरम गरम मक्की की रोटी,और सरसों का साग सुहाना
पीयें गरम चाय और कोफ़ी ,बार बार हम ,मन ये करता
मौसम खाने पीने वाला आया, जल्दी खाना  पचता
खुले खुले से तन को ढकते,सुन्दर शाल,कार्डिगन,स्वेटर
शाम हुई,तो आसमान को ,ढक लेती कोहरे की चादर
मन करता है तेज धूप में,,सूरज की ,बैठें,तन सेकें
और रात दुबके बिस्तर में,तन पर गरम रजाई ले के
बच्चे लिए ,उनींदी आँखें,लाद किताबों वाला बस्ता
सपना लिए बड़ा बनने का, नाप रहे स्कूल का रस्ता
थर थर थर तन काँप रहा है,कहर बहुत सर्दी ने ढाया
बिरहन जोहे  बाट पिया की,मधुर मिलन का मौसम आया
अपने प्रियतम से मिलने का,मन में मीता चाव आ गया
मौसम में बदलाव  आ गया

 

 

बदलता हुआ मौसम और तुम

बदलता हुआ मौसम और तुम
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उन दिनों आम का मौसम था,
जब गर्मी से,कुम्हला गए थे गाल तुम्हारे ,
और उनकी रंगत हो गयी थी,
आम जैसी पीली पीली और स्वर्णिम
अब सेवों का मौसम आगया है,
और अब सर्द हवाओं की छेड़छाड़ ने,
तुम्हारे गालों में भर दिया है,
गुलाबी रंग,
और अब तुम्हारे गालों की रंगत है,
सेव जैसी लाल लाल और रक्तिम
मौसमी फलों की तरह,
तुम भी रंग बदलती रहती हो,
गर्मी में गरम लू के थपेड़ों की तरह,
तो सर्दी में शीतल  हवाओं की तरह बहती हो
मेरी हमदम,
नया स्वाद और नूतन रंगत,
मौसम के संग,तुममे हर दम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, November 21, 2011

आओ मम्मी ,पापा खेलें

आओ मम्मी ,पापा खेलें
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बहुत बोर हो गए अकेले
आओ मम्मी पापा खेलें
रोज सवेरे तुम सजधज कर
बेठ कर में जाओ दफ्तर
और शाम को जब घर आओ
ब्रीफकेस भर पैसे लाओ
मै क्लब,किट्टी पार्टी जाऊं
नए नए गहने बनवाऊ
रोज घूमने बाहर जाये
पिक्चर देखें,पीजा खायें
अरे नहीं ये खेल पुराना
अब तो आया नया ज़माना
डेली ब्रीफकेस भर पैसा
है ये खेल बड़े खतरे का
बहुत खेल ये हमने खेले
आओ नेता नेता खेले
मै  नेता बन, बनू मिनिस्टर
दुनिया घूमू,तुमको लेकर
बस दो चार,डील हो जाये
कई करोड़ों ,रूपये आयें
नहीं रखेंगे पैसे घर में
पर स्विस बेंको में,डालर में
इतने पैसे जाये कमाये
अपनी सात पुश्त तर जाये
नहीं नहीं ये खेल  तुम्हारा
तो है बड़े टेंशन वाले वाला
अगर कोई स्केम खुल गया
तो  फिर सारा खेल धुल गया
टी.वी.पर बदनामी  हर दिन
  मंत्री पद से करो रिजाइन
सी.बी.आई, तंग करेगी
जेल तिहाड़ ,तुम्हे भेजेगी
ना बाबा ना ,यूं  घबराकर
तुमसे मिलने,मुंह लटकाकर
मै तिहाड़ में ना आउंगी
सबको क्या मुंह दिखलाउंगी
 इन खेलों में बड़े झमेले
आओ स्कूल स्कूल  खेलें
एंट्रेंस की तैयारी कर
करते रहें पढाई जम कर
तुम आई आई टी ,इंजिनीयर
और मै बन कर बड़ी डाक्टर
करें काम,हो नहीं टेंशन
सुख शांति से काटे जीवन
 काहे  को हम मुश्किल झेलें
आओ स्कूल स्कूल खेलें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

 

Sunday, November 20, 2011

बढ रही है बड़ी ठिठुरन-रूमानी हो जाए हम तुम

बढ रही है बड़ी ठिठुरन-रूमानी हो जाए हम तुम
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सर्दियों  की इस सुबह में,बढ़ रही है बड़ी ठिठुरन
दुबक कर के ,रजाई में,चाय की लें ,चुस्कियां हम
शीत का है सर्द मौसम,और उस पर  घना कोहरा
और फिर ठंडी हवाएं, हो रहा है सितम दोहरा
नहीं सूरज   नज़र आता ,देख ये आलम जमीं पर
ओढ़ चादर कोहरे की,छुप गया है वो कहीं पर
देख  मौसम की रवानी,हो गया उद्दंड  पानी
रचाने को रास मिल कर,हवाओं संग,हो रूमानी
सूक्ष्म बूंदों में विभक्षित हो गया घुल मिल हवा से
और सूरज को छुपाया, देख ना ले,वो वहां से
छा रहा इतना धुंधलका,आज पंछी कम उड़े  है
देख मौसम की नजाकत,नीड़ में दुबके पड़े है
और तुम पीछे पड़ी हो,उठो,अब छोडो  रजाई
और तुम अंगड़ाई लेकर,भर रही हो ,तुम जम्हाई
आओ ना,शरमाओ ना तुम,हो गयी जो सुबह तो क्या
प्यार का है मधुर मौसम,चैन से लो,मज़ा इसका
'अजी छोडो,बुढ़ापे में,चढ़ रही मस्ती तुम्हे है
काम वाली भी अभी तक आई ना ,बर्तन पड़े है
मुझे चिंता काम की है ,और रूमानी हो रहे तुम'
सर्दियों की इस सुबह में,बढ़ रही है ,बहुत ठिठुरन

मदन मोहन बहेती'घोटू'

Saturday, November 19, 2011

माँ के सपनो में बसा-गाँव का पुराना घर

माँ के सपनो में बसा-गाँव का  पुराना घर
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मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की, यादें बार बार आती है
दूर गाँव में कच्चा घर था
फिर भी कितना अच्छा घर था
लीप पोत कर उसे सजाती
माटी की खुशबू थी आती
और कबेलू  वाली छत थी
बारिश में जो कभी टपकती
सच्चा  प्यार वहां पलता था
मिटटी का चूल्हा जलता था
लकड़ी और कंडे जलते थे
राखी से बर्तन मंजते थे
दल भरतिये में थी गलती
अंगारों पर रोटी सिकती
खाने को बिछता था पाटा
घट्टी से पिसता था आटा
शाम ढले फिर दिया बत्ती
चिमनी,लालटेन थी जलती
 सभी काम खुद ही करते थे
कुंए से पानी भरते थे
पीट धोवना,कपडे धुलते
बच्चे सब जाते स्कूल थे
बाबूजी    ऑफिस  जाते  थे
संझा को सब्जी लाते थे
कभी पपीता कभी सिंघाड़े
खाते थे मिल कर के सारे
ना था टी वी,ना ट्रांजिस्टर
बातें करते साथ बैठ कर
बच्चे सुना पहाड़े  रटते
होम वर्क बस ये ही करते
सुन्दर और सादगी वाला
वो जीवन था बड़ा निराला
चलता रहा समय का चक्कर
और हुआ पक्का,कच्चा घर
बिजली आई,नल भी आये
ट्रांजिस्टर,टी.वी. भी लाये
वक़्त लगा फिर आगे बढ़ने
बेटे गए नौकरी करने
और बेटियां गयी सासरे
नहीं कोई भी रहा पास रे
बस माँ थी और बाबूजी थे
संग थे दोनों,बड़े सुखी थे
लेकिन लगा वक़्त का झटका
छोड़ साथ,माँ का,हम सब का
बाबूजी थे स्वर्ग  सिधारे
और हो गया घर सूना रे
जहाँ कभी थी रेला पेली
बूढी  माँ,रह गयी अकेली
बेटे उसे साथ ले आये
पर उस घर की याद सताए
पूरा जीवन जहाँ गुजारा
ईंट ईंट चुन जिसे संवारा
बाबूजी संग ,हँसते गाते
जिसमे बसी हुई है यादे
सूना पड़ा हुआ है वो घर
पर माँ का मन अटका उस पर
और  अब माँ बीमार पड़ी है
लेकिन जिद पर रहे अड़ी है
एक बार जा,वो घर देखूं,आंसू बार बार लाती है
वो यादें,वो बीत गए दिन,बिलकुल भूल नहीं पाती है
मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की,यादें बार बार आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 18, 2011

ख्वाब सुनहरे

ख्वाब सुनहरे
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एश्वर्या सुन्दर बहुत,चेहरे पर है आब
विश्व सुंदरी  का मिला था जब उसे खिताब
था जब उसे खताब,आपको क्या बतलाऊ
मन में आया ख्वाब,गले से उसे लगाऊ
लेकिन ब्याह रचाया उसने ,हुई पराई
ख़ुशी हुई जब उसके घर में बेटी आई
                   २
बेटी हिरोईन बने,बीस बरस के बाद
और मेरा पोता बने,हीरो उसके साथ
हीरो उसके साथ,प्यार उनमे हो जाये
फिर  वो दोनों मिले जुले और ब्याह रचाये
हो सपने  साकार,बहुत रोमांचत है मन
लगे लगाऊ,एश्वर्या हो मेरी समधन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 17, 2011

अब चुनाव है आनेवाला


अब आने वाला चुनाव है
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मरे हुए सपनो को फिर से,
जीवन दिलवाने के खातिर
सपनो का संसार दिखा कर,
फिर से बहलाने के खातिर
पांच साल में,एक बार जो,
मिलकर यज्ञ किया जाता है
राजनीती के इस खेले को,
नाम चुनाव दिया जाता है
इक दूजे को 'स्वाह 'स्वाह' कर,
'इदं न मम' की बातें करते
बार बार इस आयोजन में,
मन्त्र न,झूंठे वादे पढ़ते
मन में भर कर भाव कलुषित,
फैलाते ये घना धुंवां  है
मार पीट और खूनखराबा,
अक्सर कितनी बार हुआ है
समिधा बना खरचते पैसा,
आहुति होती धन और बल की
संचित धन हो जाए कई गुना,
इसी मधुर आशा में कल की
बाहुबली, दबंग सभी तो,
सत्ता सुख का सपना पाले
उजले वसन पहन कर दिखते,
बगुला भगत बने ये सारे
पदासीन फिर सत्ता पाने,
एडी चोंटी जोर लगाते
बढ़ा दाम,फिर सस्ता करते,
घटा रहे मंहगाई ,बताते
अच्छा ,भला,बुरा क्या छांटे,
जिसको देखो वो है नंगा
डुबकी सभी लगाना चाहें,
बहती है सत्ता की गंगा
कोशिश टिकिट जाय मिल सबको,
बीबी ,बेटा,साला,भाई
वंशवाद फैले और विकसे,
पांच साल तक करें कमाई
  भ्रष्टाचार  मिटा देंगे हम,
और विकास का वादा करते
सर्व प्रथम खुद का विकास कर,
अपनी अपनी झोली भरते
एक बार मिल जाए सत्ता,
जीवन में आ जाय उजाला
फेंट रहे सब अपने पत्ते,
अब चुनाव है आनेवाला
 
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 13, 2011

गोल गप्पे

गोल गप्पे
------------
जिंदगी,
पानीपूरी के पानी की तरह,
खट्टी,मीठी,चटपटी,तीखी,
और स्वादिष्ट होती है
और आदमी इसे गटागट पी भी सकता है
पर उसमे इतना मज़ा नहीं आता
अगर उसका असली स्वाद लेना हो,
तो गोलगप्पे की तरह,
एक जीवनसाथी की जरुरत पड़ती है,
जिसमे भर भर कर,
घूँट घूँट पीने से,
जिंदगी का असली मज़ा आता है

मदन मोहन बहेती'घोटू'

लेटना

लेटना
-------
लेटना,एक शारीरिक प्रक्रिया है,
जिसमे  आदमी,
अकेला या किसी के साथ,
पैर फैला कर या सिकोड़ कर,
थका हुआ,या  अनथका ,
 आराम करने के लिए या थकने को,
सीधा,उल्टा या करवट लेकर,
पसर जाता है,
उसे लेटना कहते है
आदमी जब दुनिया में आता है,
तो आते ही लेटता है,
और जब दुनिया से जाता है ,
तो लेट कर ही जाता है
और अपना एक तिहाई से भी ज्यादा जीवन,
लेट कर ही बिताता है
नींद,लेटने की परम मित्र है,
और वो कई बार लेटने के साथ ही आ जाती है,
सुलाती है और सपने दिखाती है
और सोना इंसान को बहुत प्रिय है,
 और किसी के साथ सोने में उसे आनंद मिलता है,
पर  असल में उस समय  ,
वो सोता नहीं,लेटता है
और इस तरह जागते हुए सोने की प्रक्रिया,
आनंद दायिनी होती है,
धन प्रदायिनी होती है,
करियर बढ़ावनी होती है
धन लुटावनी होती है
पर सुहावनी होती है
अक्सर ,इस तरह लेटने से,
शरीर की मांसपेशियों का तनाव दूर हो जाता है
इसलिए लेटना आदमी के लिए जरूरी है
क्योंकि बिना लेटे जिंदगी अधूरी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, November 12, 2011

वृद्ध का सन्मान कर दो

बहुत पूजित वृद्ध जन है
प्यार का ऊंचा गगन है
सफलता की सीढियां है,
संस्कृति का ये चमन है
हमारे बूढ़े ,बड़े  है
मुश्किलों से ये लड़े है
डगमगाए जब कभी हम,
थामने हरदम खड़े  है
आज ये पीढ़ी पुरानी
सफलताओं की कहानी
आज हम जो है,जहाँ है,
ये इन्ही की मेहरबानी
उम्र मत तुम  प्यार देखो
भावना,उपकार देखो
करो सेवा,पाओगे तुम,,
आशीषें  हर बार देखो
जिन्होंने सारी उमर भर
लुटाया,निज नेह तुम पर
मांगते ,प्रतिकार में है,
प्यार और सन्मान केवल
उमर का यशगान  करदो
वृद्ध  का सन्मान कर दो
प्यार की ले पुष्पमाला,
अनुभवों का मान कर दो
हो ख़ुशी मुस्कायेंगे वो
भाव से भर जायेंगे वो
मुदित हो विव्हल ह्रदय से,
अश्रुजल छलकायेंगे वो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'
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लगा कर के टकटकी सब
प्रतीक्षा में   लगे है   अब
जल्द आये वह मधुर क्षण
आएगा  जब 'लिटिल बच्चन'
अमित जी उत्सुक बहुत है
जया जी व्याकुल बहुत है
उल्लसित  अभिषेक जी है
प्रतीक्षा में  ये सभी है
मगन मन बेचेन श्वेता
आएगा  नन्हा चहेता
एश्वर्या दर्द पीड़ित
किये मन में प्यार संचित
राह पर है  प्रसूति की
एक नयी अनुभूति  की
ह्रदय में आनंद ज्यादा
बनेंगे अमिताभ दादा
और 'गुड्डी 'जया  दादी
खबर ने खुशियाँ मचा दी
टिकटिकी कर रही टक टक
धड़कने बढ़ रही   धक धक
प्रतीक्षा में है सभी जन
आएगा कब 'लिटिल बच्चन'
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 11, 2011

एक कबूतर ---

एक कबूतर ---
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एक कबूतर आता जाता
मेरा फ्लेट सातवीं मंजिल पर बिल्डिंग की,
फिर भी ऊपर उड़ कर आता,ना इतराता
वही सादगी और भोलापन
मटकाता रहता है गरदन
अपनी वही गुटरगूं  करना
सहम सहम धीरे से चलना
कभी कभी जब होता प्यासा,
रखे गेलरी में पानी से भरे पात्र में,
चोंच डूबा,कुछ घूंटे भर कर प्यास बुझाता
एक कबूतर आता जाता
एक दिन उसके साथ आई थी एक कबूतरी
सुन्दर सी मासूम ,जरा सी भूरी भूरी
उसकी नयी प्रेमिका थी वो,
ढूंढ रहे थे वो तन्हाई
बैठ गेलरी के कोने में चोंच लड़ाई
इधर उधर ताका और झाँका,
प्यार जताया एक दूजे से
और प्रणय क्रीडा में थे वो लीन हो गए
फिर दोनों ने पंख फैलाये,फुर्र हो गए
देखा कुछ दिन बाद साथ में कबूतरी के,
चोंचे भर भर तिनके लाता
शायद निज परिवार बसाने,नीड़ बनाता
एक कबूतर आता जाता

मादा मोहन बाहेती'घोटू'

सोने की चेन और चैन का सोना

सोने की चेन और चैन  का सोना
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बहुत शिकायत मुझसे तुमको,कि मै बड़ी देर सोता हूँ
होश नहीं रहता सपनो में,मै इतना गाफिल होता हूँ
चिंतामुक्त आदमी होता,नींद उसे आती आती है गहरी
इसीलिए मै सो जाता हूँ,भले रात हो या दोपहरी
सोना नींद चैन कि केवल,किस्मत वालों के नसीब में
तुम भी सोती नीद प्रेम से,भर खर्राटे बीच बीच में
नींद बड़ी गहरी आती है,जब कोई मेहनत कर थकता
पैसे वाला परेशान है,करवट लेता सिर्फ बदलता
सोना तो सचमुच सोना है,सबके मन को प्रिय लगता है
पर जिसके घर ज्यादा सोना,रातों रात सदा जगता है
त्रेता युग में कुम्भकरण जो रावण का भाई होता था
रामायण ये बतलाती है,वो छह छह महीने   सोता था
वो राक्षस था मगर देव भी,चार चार महीने सोते है
रहते प्रेमी दुखी इन दिनों,शादी ब्याह नहीं होते है
राक्षस,मानव,देव सभी को,होती है आदत सोने की
मुझे चैन   से सोने दो, ला दूंगा चेन तुम्हे सोने की
मुझे जगाती ही रहती हो,जब मै सपनो में खोता हूँ
नहीं शिकायत करना अब तुम,कि मै बहुत देर सोता हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, November 10, 2011

लोक- परलोक

लोक- परलोक
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हमारे एक धार्मिक प्रवृत्ति  के दोस्त ने समझाया
उम्र बढती जारही है,
और तुमने ना कोई पुण्य कमाया
थोडा दान धरम कर लो
थोड़ी कथा भागवत सुन लो
ये ही पुण्य बाद में काम आएगा
तुम्हे स्वर्ग दिलवाएगा
देखो आजकल लोगों की प्रवृत्ति में,
धार्मिकता कितनी बढ़ गयी है
मंदिरों और कथा भागवत में भीड़ उमड़  रही है
सबके सब जुटे है पुण्य कमाने में
सीधा स्वर्ग जाने में
मैंने कहा यार तुमको पता है
भीडभाड से मेरा मन डरता है
मंदिरों या सत्संगो की भीड़ से घबराता हूँ
इसीलिए ऐसे आयोजनों में नहीं जाता हूँ
और फिर इतनी सारी जनता,जो पुण्य कमा रही है,
सीधे स्वर्ग जायेगी
तो निश्चित ही स्वर्ग में भी भीड़ बढ़ जायेगी
शांति कहाँ मिल पाएगी
ऐसे स्वर्ग जाने से फायदा ही क्या है यार,
यहाँ भी झेलो भीड़ भाड़ और वहां भी भीड़ भाड़
अगर हम दिल के सच्चे है
तो ऐसे ही अच्छे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

रिटायर हो हम गए है

रिटायर हो हम गए है
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रिटायर हो हम गए है
बदल सब मौसम गए है
थे कभी सूरज प्रखर हम
हो गए है आज मध्यम
आई जीवन में जटिलता
मुश्किलों से वक़्त कटता
थे कभी हम बड़े अफसर
सुना करते सिर्फ 'यस सर'
गाड़ियाँ थी,ड्रायवर थे
नौकरों से भरे घर थे
रहे चमचों से घिरे हम
रौब का था गजब आलम
जरा से करते इशारे
काम होते पूर्ण सारे
सदा रहते व्यस्त थे हम
काम के अभ्यस्त थे हम
आज कल बैठे निठल्ले
रह गए एक दम इकल्ले
हो गए है बड़े बेबस
नौकरों के नाम पर बस
पार्ट टाइम कामवाली
है बुरी हालत हमारी
काम करते हाथ से है
क्षुब्ध अपने आप से है
रौब अब चलता नहीं है
कोई भी सुनता नहीं है
आदतें बिगड़ी हुई है
कोई भी चारा नहीं है
बस जरासी पेंशन है
और हजारों टेंशन है
हो बड़े बेदम गए है
रिटायर हो हम गए है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपेक्षायें

अपेक्षायें
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अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
पूर्ण यदि जो ना हुई तो,तुम्हारे  दिल को दुखायें
किया यदि कुछ,किसी के हित,करो और करके भुलादो
मिलेगा प्रतिकार में कुछ,आस   ये दिल से मिटा दो
तुम्हारा कर्तव्य था यह,जिसे है तुमने निभाया
क़र्ज़ था पिछले जनम का,इस जनम में जो चुकाया
या कि फिर यह सोच करके,रखो यह संतोष मन में
इस जनम के कर्म का फल,मिलेगा अगले जनम में
या किसी के लिए कुछ कर,पुण्य है तुमने कमाये
अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
बीज जो तुम बो रहे हो ,वृक्ष बन कर बढ़ेंगे कल
नहीं आवश्यक तुम्हारे,हर तरु में लगेंगे फल
और यदि फल लगे भी तो,मधुर होगे,तय नहीं है
तुम्हे खाने को मिलेंगे,बात ये निश्चय नहीं है
इसलिए तुम बीज बोओ,आएगी ऋतू,तब खिलेंगे
आस तुम मत करो फल की,भाग्य में होंगे,मिलेंगे
नहीं आवश्यक सजग हो,सब सपन ,तुमने सजाये
अपेक्षायें मत करो तुम, तोडती दिल अपेक्षायें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 8, 2011

आखरी मौका


  आखरी मौका
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मेरी शादी के अवसर पर,
जब मै घोड़ी पर बैठ रहा था,
मेरे शादीशुदा मित्र ने कहा था,
'देखले,कितना शानदार मौका है
एसा मौका बार बार नहीं मिलता'
उस समय तो मै समझ नहीं पाया,
पर अब समझ में आया है  उसका मतलब
दोस्त ने कहा था'घोड़ी भी है,मौका  भी है,
जीवन भर की गुलामी से बचना है ,तो,
एडी दबा,घोड़ी दोड़ा,और भागले अब '
भागने का आखरी  मौका  था
पर मुझे रास्ता न दिखे,इसलिए लोगों ने,
मेरा चेहरा,सेहरे से ढक रखा था
 और मै भाग ना जाऊं ,मुझे रोकने के लिए,
बारातियों ने मुझे घेर कर रखा था
और तो और ,आपको मै क्या बतलाऊं
जब मै शादी के मंडप में पहुंचा,
मेरे जूते छिपा दिए गए,
कहीं मै भाग ना जाऊं
और विवाह  की बेदी के सामने बैठा कर,
दुल्हन के हाथ से मेरा हाथ बाँधा गया
जैसे गुनाहगार को हवलदार  पकड़ता है,
दुल्हन ने मेरा हाथ पकड़ा,
और मेरा भागने का ये मौका भी  हाथ से गया
और हाथ को बांधे बांधे ,
दुल्हन को आगे कर उसके पीछे पीछे,
मैंने अग्नि के चार फेरे भी काटे
और मुझे बहला कर ले लिए सात वादे
तब कहीं अगले तीन फेरों के लिए,
मुझे निकलने दिया आगे
और फिर चांदी के सिक्के से
मैंने उसकी मांग भरी
और एक वो दिन था और एक आज का दिन,
उसकी सभी मांगों को पूरी कर
वो आगे और उसके पीछे पीछे,
काट रहा हूँ मै चक्कर
काश घोड़ी पर बैठते वक़्त ही,
अपने दोस्त की बात समझ में आ जाती
तो आज ये नौबत नहीं आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ढीठ है हम

ढीठ है हम
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करो तुम रथ यात्राये,और भूख हड़ताल,अनशन
मौन,मुंह पर पट्टियाँ या,मोम बत्ती ले प्रदर्शन
बढ़ रही मंहगाई कोई,इस तरह ना रोक सकता
 जब तलक है पास सत्ता ,कमाएंगे मालमत्ता
घटेगी मंहगाई तब ही,जब घटाएंगे  उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                        ढीठ  है हम
कर रहे उपवास अन्ना,लाओ लोकायुक्त बिल तुम
मिटे भ्रष्टाचार जिससे,साफ़ सुथरा हो प्रशासन
पास जब हो जाएगा  बिल,जाएगी घट कई मुश्किल
कहीं भ्रष्टाचार घटता,पास होने से कोई बिल
भ्रष्टता तब ही मिटेगी,जब मिटायेंगे उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                          ढीठ है हम
देश तब संपन्न होगा,जब विदेशों में जमा धन
देश को मिल जाए वापस,आन्दोलन कर रहे तुम
भला ये भी बात है क्या ,किस तरह स्वीकार करलें
कई वर्षों की कमाई,इस तरह बेकार करलें
चुनावों में खर्च करने,जुटाएंगे कहाँ से धन
नहीं सुधरे थे कभी और नहीं सुधरेंगे कभी हम
                            ढीठ  है हम
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमें भी लगता बुरा है


हमें भी लगता बुरा है

--------------
हमारी हर बात पर ही,
तुम्हे लग जाता बुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है
बहुत है दिल को दुखाती,
तुम्हारी रुसवाईयां  है
ह्रदय में नश्तर चुभोती,
आजकल तनहाइयाँ है
और अपने में मगन तुम,
उड़ रहे ऊंचे गगन में
अरे,हम कुछ है तुम्हारे,
ख्याल आया कभी मन में
अभी भी मन में हमारे,
प्यार का सागर उमड़ता
और तुम भूले पिघलना ,
इस कदर आ गयी जड़ता
तुम्हे करके  के याद अक्सर ,
उभरते है प्यार के स्वर
मगर हर वाणी हमारी,
लौट आती,प्रतिध्वनि कर
तुम वही हो,हम वही है,
बीच में क्यों दूरियां है
बताओ ना क्या हुआ है,
कौनसी मजबूरियां है
बहुत मिलते हम पियाले,
बहुत मिलते हम निवाले
ना मिलेंगे मगर हम से,
चाहने वाले, निराले
कभी हम संग संग चले थे,
साथ हँसते और गाते
डूब यादों के भंवर में,
डुबकियाँ है हम लगाते
साथ हम थे तो ख़ुशी थी,
जिंदगी थी मुस्कराती
बिना सहलाये हमारे,
नींद भी थी नहीं आती
हमारा स्पर्श तुमको,
लगा लगने खुरदुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुझे तडफाया सभी ने

मुझे तडफाया सभी ने
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उम्र की इस बेबसी में
मुझे तडफाया सभी ने
और मुझ पर बीतती क्या,
ये नहीं सोचा किसी ने
तान कर ताने दिए और,
दिल दुखाया दिल्लगी में
कभी थे दावत उड़ाते,
आज है फांकाकशी में
उम्र ऐसे ही गयी कट,
कभी दुःख में या ख़ुशी में
मुझे दीवाना समझ कर,
यूं ही ठुकराया सभी ने
नहीं देखा पीर कितनी,
छुपी है मेरी हंसी में
नेह बांटो,खोल कर दिल,
रंजिशे क्यों आपसी में
आओ फिर से दिल मिलाएं,
क्या रखा तानाकशी में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल

ग़ज़ल
-------
जो कम बालों वाले या गंजे होते है
अक्सर उनकी जेबों में कंघे होते है
अपने घर में वो ताले लटका कर रखते,
जो धनहीन और भूखे नंगे होते है
प्रेम भाव,मिल जुल रहना ,सब धरम सिखाते,
नाम धरम का  ले फिर क्यों दंगे  होते है
जो कुर्सी पर बैठे ,वो ही बतलायेंगे,
कुर्सी के खातिर कितने पंगे होते है
हो दबंग कितने ही कोई,मर जाने पर,
दीवारों पर ,बन तस्वीर ,टंगे होते है
पांच साल तक ,शासन करते,पर चुनाव में,
वोट मांगते,नेता,भिखमंगे  होते है
इनकी सूरत मत देखो,फितरत ही देखो,
होते सभी सियार,मगर रंगे होते है
'घोटू' ज्यादा मत सोचो,मन में दुःख होगा,
वो खुश रहते,जिनके मन चंगे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

ममता तुम कितनी निर्मम हो

ममता,तुम कितनी निर्मम हो
गाहे बगाहे,जब जी चाहे,
हमें डराती रहती तुम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो
तुम्हे पता,कितनी मुश्किल,पर
घेर लिया है सब ने मिल कर
आन्दोलन करते है अन्ना
पत्रकार है,सब चोकन्ना
भ्रष्टाचार और मंहगाई
काबू होती,नहीं दिखाई
रोज फूटते ,कांड नये है
साथी कई तिहाड़ गये है
मंहगाई हद लांघ गयी है
जनता भी अब जाग गयी है
फेल हो रहे,सभी दाव है
और अब तो सर पर चुनाव है
डगमग है कानून व्यवस्था
मै बेचारा,क्या कर सकता?
हालत बड़ी बुरी हम सबकी
ऊपर  से तुम्हारी धमकी
कहती ,गठबंधन छोडोगी
बुरे वक़्त में ,संग छोडोगी
अटल साथ भी यही किया था
बार बार तंग बहुत किया था
क्या है भेद तुम्हारे मन का
धर्म न जानो,गठबंधन का
शायद इसीलिए क्वांरी हो
पर पड़ती सब पर भारी हो
देखो एसा,कभी न करना
अब संग जीना है संग मरना
कोई किसी को ,दगा न देगा
जो चाहो,पैकेज  मिलेगा
मौका देख ,दिखाती दम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

Saturday, November 5, 2011

लेपटोप क्या आया घर में----

लेपटोप क्या आया घर में----
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लेपटोप क्या आया घर में,जैसे  सौत आ गयी मेरी
दिन भर साथ लिए फिरते हो,करते रहते छेड़ा छेड़ी
एक ज़माना था जब मेरी,आँखों में दुनिया दिखती थी
कलम हाथ में  थाम उंगलियाँ,प्यारे प्रेमपत्र लिखती थी
अब तो लेपटोप परदे पर,नज़रें रहती गढ़ी तुम्हारी 
छेड़ छाड़ 'की पेड'बटन से,उंगली करती रहे  तुम्हारी
अब मुझको तुम ना सहलाते,अब तुम सहलाते हो कर्सर
लेपटोप को गोदी में ले,बैठे ही    रहते  हो     अक्सर
कभी कभी तो उसके संग ही , लेटे काम किया करते हो
'मेल' भेजते,'चेटिंग','ट्विटीग' ,सुबहो- शाम किया करते हो
रोज 'फेस बुक' पर तुम जाने किस किस के चेहरे हो ताको
और खोल कर के' विंडो 'को,जाने कहाँ कहाँ तुम झांको
कंप्यूटर था,तो दूरी थी,ये तो मुआ रहे है चिपका
करते रहते 'याहू याहू',फोटो देखो हो किस किस का
मेरे लिए जरा ना टाइम ,दिन है सूना,रात अँधेरी
लेपटोप क्या आया घर में,जैसे सौत आ गयी मेरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऊनी कपड़ों वाला बक्सा

ऊनी कपड़ों  वाला बक्सा
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सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी  कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल  की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर, 
जिसे मैंने अपनी शादी पर  पहना था,
और  शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद  आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों  के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने  बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड  लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के  कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक  के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल  जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 4, 2011

वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला
पश्चिम की संस्कृती ने आकर,सब व्यवहार बदल ही डाला
जब सर ढके पत्नियाँ घर में,पति का नाम नहीं लेती थी
अजी सुनो पप्पू के पापा,या चूड़ी खनका  देती थी
कभी बुलाना हो जो पति को,कमरे की सांकल खटकाना
कभी कोई आ जाये अचानक,शर्मा कर झट से हट जाना
चंदा से मुखड़े को ढक कर,दिन भर घूंघट करके रहना
कितना प्यारा ,मनभाता था,उनका 'ऐ जी'ओ जी'कहना
ले लेने से नाम पति का,उमर पति की कम होती थी
तब पति पत्नी के रिश्ते में,थोड़ी झिझक,शरम होती थी
घर के बूढ़े बड़े बैठ कर,कर देते थे रिश्ता पक्का
पहली बार सुहागरात में,मुंह दिखता था,पति पत्नी का
कैसा होगा जीवन साथी,मन में कितना 'थ्रिल 'होता था
मुंह दिखाई से मन रोमांचित,प्रथम बार जब मिल होता था
इस युग में,शादी से पहले,मिलना जुलना  अब होता है
होती रहती डेटिंग वेटिंग,पिक्चर विक्चर  सब होता है
हनीमून हिल स्टेशन पर,घूंघट,मुंह दिखाई सब गायब
जींस और टी शर्ट पहन कर,नव दम्पति घूमा करते अब
एक दूजे को ,प्रथम  नाम से ,पति पत्नी है अब पुकारते
गया  ज़माना,'सुनते हो जी',का पुकारना बड़े  प्यार से
लेकर नाम बुलाने का तो, होता है अधिकार सभी का
पर 'ऐ जी'ओ जी'कहने का,हक़ था केवल पति पत्नी का
रहन सहन सब बदल गया है,इस युग का है चलन निराला
अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

i

Tuesday, November 1, 2011

दफ्तरी लंच

दफ्तरी लंच
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एक बड़े दफ्तर के आगे,
हम्मर एक खोखा है
जहाँ पर दफ्तरी लंच खाने का,
बड़ा अच्छा मौका है
जैसे घर का खाना खा कर,
आप फील करते है 'होमली'
इसी तरह हमारे यहाँ खाकर,
आप फील करेंगे 'दफ्तरी'
जैसे कागज़ की प्लेटें,लकड़ी के चमचे,
जो  काम निकलने के बाद,
फेंक दिए जाते है
जैसे चाटुकार चमचे,जो अपने 'बॉस 'को,
मक्खन लगाते है और  चाटते है पाँव
उनके लिए मिलते है,
मौजे और जूतों की बदबू रहित,पाव
और वो भी मख्खन लगे,फिर भी सस्ता भाव
चाटुकारों ने ,जब से हमारे पाव खाएं है
एसा टेस्ट बदला है,बार बार आये है
दूसरा आइटम 'सेंडविच आम' है
आम आदमी के लिए,
एक तरफ घर की समस्याओं की स्लाइस है,
और दूसरी तरफ दफ्तर की मुश्किलों की स्लाइस
बीच में ,थोड़ी सी मजबूरी का मख्खन,
टिमटिमाती आस का  टमाटर ,
पत्ते दर पत्ते मुसीबतों से आते हुए,
पत्ता गोभी के चंद कतरे
लोगों के उपहास की नमक मिर्च,
बस बन गयी सेंडविच
आम आदमियों सी कितनी आम साईं
फिर भी सस्ते दाम है
एक बाईट लेने पर लगता है,
सभी समस्याओं का हल हो गया है
मन को बहलाना कितना सरल हो गया है
तीसरा आइटम 'ख्वाईशी दही बड़े 'है
बड़े बनने की इच्छा में,
दलहन को दल कर दाल बनना पड़ता है
फिर रात भर पानी में गलना पड़ता है
बचपन के साथी छिलकों का साथ छोड़ ,
समय के सिल पर पिसना पड़ता है
फिर  दुनियादारी की कढ़ाही में,
उबलते हुए समझोतों के तेल में तले जाना होता है
तब कही जाकर,माखनी दही में,
डुबकी लगाने का आनंद मिलता है
 इन दहिबडों को खाकर ही,
मन का कमल खिलता है
और भी कई आइटम है,
जो यदि आप खायेंगे,
दफ्तरी पायेंगे
जैसे गुलाब जामुन,
जिनमे  ना गुलाब की खुशबू है,
न जामुन का स्वाद,
फिर भी गुलाब जामुन कहाते है
बिलकुल आपके बॉस की तरह,
या आपके जॉब की तरह
जिनके नाम और काम में ,
आप बहुत बड़ा फर्क पाते है
सभी आइटमो का बेसिक सेलरी की तरह,
सस्ता दाम है
और मंहगाई भत्ते की तरह,
पानी पीने का मुफ्त इंतजाम है
क्योकि साहब,बेसिक सेलरी तो,
बेसिक मदों में ही चली जाती है
महीने खर्चा तो डी.ए.से चलता है
उसी तरह सेंडविच ,दहिबडों से,
भूख थोड़े ही मिटती है,
पेट तो पानी से ही भरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिस क्यारी से की यारी,वो क्यारी फिर क्यारी न रही
जिस डाली पे नज़र डाली,वो डाली फिर डाली  न रही
जिस गुलशन में हम पहुँच गये,कुछ गुल न खिले नामुमकिन है,
जिस महफ़िल के मेहमान हुए,वो महफ़िल फिर खाली न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'