अजब सिलसिले
जमाने के देखो अजब सिलसिले है
मोहब्बत में जिनकी ,हुए पिलपिले है
बहारों में लूटी थी खुशबू जिन्होंने ,
शिकायत वो ही आज करते मिले है
हमें जिंदगी के सफर की डगर में ,
कहीं फूल ,कांटे ,कहीं पर मिले है
न ऊधो का लेना न माधो का देना,
इसी राह पर हम हमेशा चले है
किसी न किसी को तो चुभते ही होंगे ,
भले ही सभी को ,पटा कर चले है
अकेले चले थे ,भले इस सफर में ,
मगर आज हम बन गए काफिले है
किसी ने करी है ,बुराई बहुत सी,
किसी ने कहा आदमी हम भले है
मगर जब भी पाया ,किसी ने भी मौका
सभी ने तो अपने पकोड़े तले है
कभी हम चमकते प्रखर सूर्य से थे ,
हुई सांझ ,पीले पड़े और ढले है
बहुत कीच था इस सरोवर में फैला,
मगर हम यहाँ भी ,कमल से खिले है
जले हम भी पर हमने दी रौशनी है ,
हुए खाख है वो जो कि हमसे जले है
पड़ी झेलनी हमको कितनी जलालत ,
जीवन में आये कई जलजले है
हमें है यकीं 'घोटू' पूरा करेंगे ,
दिलों में हमारे ,जो सपने पले है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'