Wednesday, April 27, 2011

मै बदल गया

     मै बदल गया
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मैंने तुमसे जब शादी की ,तब बड़ा मस्त मौला था मै
तुम जैसा कहती ,मै करता ,सचमुच कितना भोला था मै
तुम ये न करो ,तुम यू न करो,ऐसे पियो,यूँ खाओ तुम
ऐसे ऐसे कपडे   पहनो,  और ऐसे   बाल  बनाओ तुम
 ,मै अच्छा भला आदमी था,तुमने क्या से क्या कर डाला
तुम्हारी टोका टाकी ने ,मेरा   व्यक्तित्व   बदल    डाला
आज्ञाकारी पति बन कर जब ,मै हूँ बिलकुल ही बदल गया
अब तुम्ही शिकायत करती हो, मै पहले जैसा नहीं रहा

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

विश्वामित्र

विश्वामित्र
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मै विश्वामित्र हूँ
तपस्वी हूँ
ज्ञानी हूँ ,ध्यानी हूँ
पर मुझे बहुत क्रोध आता है
कोई मेरी अवहेलना करे ,
तो चेहरा तमतमाता है
मेरे क्रोध के कारण,
दुष्यंत शकुंतला को भूल जाता है
पर मै भी हाड मांस का पुतला हूँ,
मुझ में भी कमजोरियां है
अभी तक मेरा तप भंग नहीं हुआ है
कुछ मजबूरियां है
मगर फिर भी आस है
पूरा विश्वास है
कभी तो कोई मधुमास मुस्केरायेगा
जो किसी मेनका को लाएगा
ये तप ,ये ध्यान,
सब बातें है दिखने की
मुझे तो बस प्रतीक्षा है ,
किसी मेनका के आने की

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

एक नारी का अंतरद्वंद

 एक नारी का अंतरद्वंद
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मेरा धृष्ट राज
यदि काम ,क्रोध,लोभ, मोह ,में अँधा है,
तो क्या मै भी गांधारी की तरह,
अपनी आँखों पर पट्टी बांध लूं ?
मेरा लक्ष्मण,
अपने भ्राता की सेवा में,
 वन वन भटके,
और मै उर्मिला की तरह,
अपने यौवन के चौदह वर्ष
विरह के आंसुवों में भीगती रहूँ ?
अगर कोई इन्द्र,
मेरे पति गौतम का रूप धर,
मेरे साथ छल कपट करे,
तो क्या मै पत्थर की अहिल्या बन जाऊ ?
कोई अर्जुन मुझे स्वयंबर में जीते,
और मै अपनी सास के कहने पर,
पांच पांडव भ्राताओं की,
पत्नी बन,बंट जाऊ?
तो मै क्यों नहीं कुंती की तरह,
कवांरेपन में कर्ण की माँ,
या पाण्डु की पत्नी होने पर भी,
धर्मराज ,इंद्र,और पवन का आव्हान कर,
तीन पुत्रों की माँ नहीं बन सकती?

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

मई में

मई में
एक सुरमई आँखों वाली से
सुर मिले
उसकी  प्रेममयी बातों ने
प्रेम का मय पान कराया
फिर आनंदमयी जिंदगी के सपने देखे
परिणाम में  परिणय हुआ
और अगली मई तक
वो प्रेममयी, आनंदमयी,सुरमई आँखों वाली
ममतामयी  बन गयी