Tuesday, June 30, 2015

                   देवी महिमा

जो भागदौड़ करती दिनभर और जिसके बल चलता है घर
छोटी छोटी सब बातों में  ,सारा घर भर ,जिस  पर  निर्भर
वह अन्नपूर्णा  है घर की  ,वह ज्ञानदायिनी , शिक्षक   है
पति की सुखदायक  रम्भा है और सास ससुर की सेवक है
वह रूप लिए कितने सारे ,है दिन भर ही खटती रहती
हर एक सदस्य के मन माफिक ,थोड़ा थोड़ा बंटती रहती
दे ससुर साहब को गरम दूध,सासू घुटनो पर तेल मले
और पतिदेव की फरमाइश पर चाय,पकोड़े गरम  तले
सबके सुख दुःख की साथी है,अपना कर्तव्य निभाती है
कोई को भी हो कुछ  पीड़ा   ,झट भागी भागी  जाती है
बच्चों को करवा होमवर्क, बाज़ार जाए,सौदा  लाये
देखे बिखरा और अस्त व्यस्त ,घर की सफाई में जुट जाए
वह टूटे हुए बटन टाँके ,और फटे  वस्त्र कर ठीक, सिये
दिन भर मशीन सी काम करे ,अपने मुख पर मुस्कान लिये 
वह ममता भरी हुई माँ है ,रक्षाबंधन ले बहना है
वह प्यार लुटाती पत्नी है ,है बहू जो घर का गहना है
वह सरस्वती है ,लक्ष्मी है , देवी दस हाथों वाली है
वह शक्तिशालिनी दुर्गा है,उसकी हर बात निराली है
वह सेवाव्रती  ,सुशीला है ,जिसके मन में है भरा प्यार
उस जग जननी ,माँ,देवी को ,है मेरा शत शत नमस्कार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तेरे संग भगवान है घोटू

  तेरे संग भगवान है घोटू

समय बड़ा  बलवान है घोटू
तू कितना   नादान  है  घोटू
वो ही इसको शांत  करेगा,
लाया जो  तूफ़ान है घोटू
जीवनपथ में कई अड़चने ,
सफर न ये आसान है घोटू
आज यहाँ तक जो तू पहुंचा,
ये उसका  अहसान है घोटू
वही करेगा एक दिन पूरे  ,
तेरे जो अरमान है घोटू
कल क्या होगा ,कोई न जाने ,
हर कोई अनजान है घोटू
उसके आगे सब है   बेबस,
कुछ भी ना इंसान है घोटू 
साथ नहीं कुछ भी जाएगा ,
दिखा रहा क्यों शान है घोटू 
तेरी  नैया पार करेगा ,
तेरे संग भगवान है घोटू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'






पहली बरसात

              पहली बरसात

है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में
उस भीगे भीगे मौसम में भी आग लग गयी थी तन में
लहराता आँचल पागल सा था तेरे तन  से  चिपक गया
थे भीगे भीगे  श्वेत वस्त्र ,तेरा निखरा था  रूप नया
उस मस्त मचलते  यौवन ने,  कुछ ऐसा जादू ढाया था
तू भी थोड़ी पगलाई थी,मैं भी थोड़ा   पगलाया था
तू अमृतघट ले पनघट पर आयी थी प्यारी पनिहारन
मैंने निज प्यास बुझाई थी ,कर घूँट घूँट रस आस्वादन
तेरे गालों को सहला कर ,लब चूम रहे थे  जो मोती
मैंने हौले से निगल लिए थे एक एक कर सब मोती
और जी भर रसपान किया  ,बौराये दीवानेपन में
है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बरसात के रंग

            बरसात के रंग
                     १
रसिकलाल बरसात में तर होकर  घर जाय
पत्नी जी चिंता करे  ,  सर्दी  ना  लग जाय
सर्दी ना लग जाय  ,वस्त्र  जब  भीगे सारे
अपने हाथों झट  पत्नी जी  उन्हें   उतारे,
पोंछे उनका बदन  ,अगन तन में सुलगाये
तभी भीगने में आनन्द ,दोगुना   आये 
               २
उस भीगी बरसात में ,कितनी गर्मी आय
गरम गरम हो पकोड़े ,गरम गरम हो चाय
गरम गरम हो चाय ,हाल कुछ बिगड़े ऐसे
हो ऐसा  माहोल , कोई  फिसले  ना  कैसे
कह घोटू कविराय ,लगे हर चीज  सुहानी
रोज रोज यूं ही  बरसो ,तुम बरखा  रानी
                     ३
दुखीराम कहने लगे ,बड़े तुम्हारे ठाट
हम भीगें ,घर पर मिले ,पत्नीजी की डाट
पत्नीजी की डाट,बड़ी होती है फजीहत
बीबी कहती क्यों करते हो बच्चों सी हरकत
बड़े हो गए इतने   ,अकल ज़रा  ना आई
आज सुबह ही कपड़ों पर थी प्रेस  कराई

घोटू
 

काटा काटी

             काटा काटी
                      १
चाकू से फल सब्जियां ,काटकाट सब खाय
कैंची  टांगों  बीच जो ,  आये सो  कट  जाय
आये सो कट जाए ,  काटते दांत   कटीले
काटे कटे न रात ,काट मच्छर  खूं    पीले
कह घोटू कविराय ,जानता है मेरा  दिल
तनहाई की रात काटना कितना मुश्किल
                       २
कहते है जो  भौंकता , ना काटे  वो  'डॉग'
बुरा शकुन यदि जाय जो,बिल्ली रस्ता काट  
बिल्ली रस्ता काट  ,कटीले उनके  नयना
समय न कटता ,पड़े दूर जब उनसे रहना
'घोटू' उन संग सात ,अगन के काटे चक्कर
आगे पीछे काट रहे ,  चक्कर  जीवन भर
                           ३
मुफलिसी में कट रहे ,जनता के दिन रात
नेता  चांदी    काटते ,जब सत्ता  हो   हाथ
जब सत्ता हो हाथ  , काटते दिन मस्ती में
सर कढ़ाई में और उँगलियाँ  पाँचों घी में
कह 'घोटू'कविराय ,चरण तुम्हारे छूता
पदरक्षक कहलाय,,काट लेता पर जूता
                        ४
खाते थे जो   दांत  की काटी रोटी , मित्र
अब है कन्नी काटते ,क्या व्यवहार विचित्र
क्या व्यवहार विचित्र ,रहे आपस में कट कर
एक दूसरे  के  जो  रोज  काटते  चक्कर
कह घोटू जब स्वार्थ आदमी पर है छाता
तो फिर भाई से भाई भी है कट  जाता
                           ५
चूना ज्यादा पान में ,खाओ ,कटे जुबान
पत्नीजी की बात ना ,काट सके  श्रीमान
काट सके श्रीमान, बात कर प्यारी प्यारी
पति की काटे जेब ,पत्नियां बड़ी निराली
प्यार जता कर ऐसा काटे और फुसलाये
अब तक उसका काट ,देव तक जान न पाये
                       ६
'घोटू' तुम उड़ते रहो ,बंधे डोर के संग
वरना कट हो जाओगे ,जैसे  कटी पतंग
जैसे कटी पतंग  ,कटे ना जीवन  रस्ता
कटे कटे से रह कर होगी हालत   खस्ता
कह घोटू कविराय ,उमर भर काटा स्यापा
संकट काटो प्रभू ,चैन से    कटे  बुढ़ापा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, June 25, 2015

      विवाह की वर्षग्रन्थि पर-जीवनसंगिनी से

उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
 मैं हूँ छांछट ,तुम हो पेंसठ
 इकतालीस वर्षों से संग है,
हम इक सिक्के के दोनो पट
      सीधे सादे ,मन के सच्चे   
      पर दुनियादारी में कच्चे
     बंधे भावना के बंधन में,
    पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
 नहीं किसी से है कोई घट
       पलपल जीवन ,घटता जाता
      भावी कल ,गत कल बन जाता
       कभी चांदनी है पूनम की,
      कभी  अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के  महासमर में
हरदम हार जीत के डर  में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन
      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
      अब तो ऐसे लगता जैसे ,
      देने लगा  बुढ़ापा   आहट

आदित्य साबू

बदरंगी भाईजान

                बदरंगी भाईजान

इतने बरसों थे सत्ता में ,तब नहीं किसी का रखा ख्याल
बस लिप्त रहे घोटालों में, और रहे कमाते  खूब माल
अब उतर गए जब कुर्सी से ,तो बदल गयी है चाल ढाल
कोई की फसल खराब हुई,पूछा करते हो ,दौड़, हाल
इस हालचाल के तामझाम में जितने पैसे लूटा रहे
पेपर और टी वी वालों की,तुम भीड़ ढेर सी जुटा रहे
यदि उसका पांच प्रतिशत भी,तुम उस गरीब के घर देते
उसकी सब चिंता हर लेते,उसको निहाल  तुंम कर देते
उस त्रसित दुखी के बच्चों को ,मिलती दो रोटी खाने को
तुम बहा रहे हो घड़ियाली ,ये आंसू सिर्फ दिखाने को
हर जगह दौड़ कर जाते हो तुम सहानुभूति दिखलाने को
ये सारा नाटक करते हो तुम अपनी छवि  चमकाने   को
सात आठ साथ में चमचे है ,दो चार रट  लिए है जुमले
जनता का हिती बता खुद को ,सत्तादल पर करते हमले
ये फल है सभी कुकर्मों का ,जनता ने मारी तुम्हे लात
नाकारा समझ नकार दिया ,हर जगह करारी मिली मात
जब हार गए तो भाग गए ,कितने दिन तक लापता रहे
खुद को मुश्किल के मारों का ,तुम आज मसीहा बता रहे
जनता ने काफी झेल लिया ,अब और झेल ना पाएगी
 झूंठे वादों ,आश्वासन के ,बहकावे में ना  आएगी
अब है  तूणीर में तीर नहीं ,और पड़ी हुई ढीली कमान
कल थे बजरंगी भाईजान,अब  हो बदरंगी  भाईजान

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बरसात-तेरे साथ

         बरसात-तेरे साथ
                     १
जब भी   बारिश की  बूँदें छूती  मेरा तन
मुझको आता याद तुम्हारा पहला चुम्बन
ऐसे भिगो दियां करती है ये मेरा तन
जैसे मन को भिगो रहा तेरा अपनापन
                         २
जब जब भी ये मौसम होता है बरसाती
साथ  हवा के होती ,  हल्की  बूंदा बांदी
हाथ पकड़ कर ,तेरे साथ भीगता हूँ जब ,
तब रह रह कर ,ये मन होता है उन्मादी
                           ३
भीगी अलकों से बूँदें ,टपके ,बन मोती 
मधुर कपोलों  पर आभा है दूनी होती
आँचल भी चिपका चिपका जाता है तन से ,
जब ये बूँदें बारिश की  है तुम्हे  भिगोती
                             ४
मौसम ,भीगा भीगा ,आग लगाता तन में
कितने ही अरमान ,भड़क जाते है मन में
मदिरा से ज्यादा मादक ,बारिश की बूँदें ,
रिमझिम रिमझिम जब बरसा करती सावन में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अच्छे दिन

             अच्छे दिन
                     १
प्रगति का पैमाना है जो अगर ऊंचाई
तो फिर हमने बहुत प्रगति कर ली है भाई
सब चीजों के दाम छू  रहे आसमान को ,
दिन  दिन दूनी बढ़ती जाती है  मंहगाई 
                         २
ग्राफ कीमतों का निश दिन है ऊपर चढ़ता
पानी भी अब तो ख़रीद कर  पीना पड़ता 
परिवार का पेट पालना अब मुश्किल है,
क्या ऐसे ही देश प्रगति के पथ पर बढ़ता
                            ३
दालें मंहगी ,अब सूखे पड़  गए निवाले
जीना हुआ  मुहाल ,पड़े  खाने के लाले
फिर भी हम है मन में बैठे आस लगाए ,
आज नहीं कल, अच्छे दिन है आने वाले

घोटू

Monday, June 22, 2015

थोड़ा सा खुदगर्ज होना चाहिए

     थोड़ा सा खुदगर्ज होना चाहिए

ख्याल रखना ,अपना और परिवार का,
                     आदमी का फ़र्ज़  होना  चाहिए
किन्तु अपनों के भले के वास्ते ,
                         औरों का ना हर्ज़ होना  चाहिए
तरक्की हर एक जो अपनी करे,
                        तभी तो होगी तरक्की कौम की,
अपना अपना ख्याल जो रख्खें सभी,       
                            दूर सारे मर्ज़ होना चाहिए
 है हसीना ,खूबसूरत,नाज़नी ,
                              अगर अपनी जो बनाना है उसे
मिलेगी ,पर पटाने के वास्ते ,
                              कुछ तरीके,तर्ज  होना चाहिए
आप अपना फायदा जो सोचते ,
                                तो  बुराई इसमें है  कुछ भी नहीं,
तरक्की के वास्ते इंसान को ,
                               थोड़ा सा खुदगर्ज  होना चाहिए

मदन मोहन बाहेती  'घोटू'

संगीत

          संगीत

संगीत ,स्वरों की साधना है
संगीत ,ईश्वर की आराधना है
संगीत की सरगम ,सारे गम भुला देती है
संगीत भरी लोरी,रोते बच्चे को सुला देती है
संगीत के सुरों का जादू जब चलता है
तो दीपक राग से ,बुझा दीपक भी जलता है
संगीत  का साज जब सजता है 
तो मेघ मल्हार से जल भी बरस सकता है
पवन की सन सन में ,बादल की गर्जन में
पंछी के कलरव में ,भंवरों की गुंजन में
वर्षा की रिमझिम में ,नदिया के कलकल में
साँसों की सरगम में,जीवन के पलपल में
अगर आप गौर से देंगे ध्यान
पाएंगे ,संगीत है विद्यमान
संगीत में सुर होता है,
 और सुर का मतलब देवता होता है
सुरों का माधुर्य हम में देवत्व संजोता है
संगीत से ओतप्रोत ,प्रकृति का कण कण है
आओ हम संगीत सुने,संगीत ही जीवन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

योगदिवस और पप्पू जी

        योगदिवस और पप्पू जी
                        १
योगदिवस का देख कर ,जनता में उन्माद
 पप्पू जी झट उड़  लिए ,मम्मीजी के  साथ
मम्मी जी के साथ ,हुई तक़दीर निकम्मी
याद आएगी ,पांच बरस,मम्मी की मम्मी
 पदयात्राएं कर कर ,तन में थकन छा गयी
या इटली की छोरी ,मन को कोई भा गयी
                          २
पप्पू से कहने लगी, मम्मी जी समझाय
पेंतालिस का हो गया ,अब तू कर ले ब्याह
अब तू कर ले ब्याह,बढे  बूढ़े   बतलाते
पड़े बहू के पाँव, बुरे दिन भी फिर जाते
शादी कर तेरा भी भाग्य  बदल सकता है
घोड़ी चढ़,तू कुर्सी पर भी   चढ़  सकता है

घोटू

Monday, June 15, 2015

अग्नि और जलन

      अग्नि और जलन

हमारी ये काया , तत्वों से है बनी
जिनमे से एक तत्व है अग्नी
अग्नि की तपिश से चेतना है तन में
और रोज रोज की हलचल है जीवन में
जब तक तपिश है,तन में प्राण है
वरना आदमी,मुर्दे के समान है
जलना एक रासायनिक क्रिया है,
जिस में होता है ऊर्जा का विसर्जन
जलना एक मानसिक क्रिया भी है,
जिसमे लोगों को होती है मन में जलन
 भले ही धुंवा और लपट
दोनों नहीं होते है प्रकट
पर अंदर ही अंदर सब सुलगते रहते है
गौर  से  देखोगे तो सब जलते रहते है   
कोई किसी की चाह में जलता है
कोई प्यार की राह में जलता है
कोई सौतिया डाह में जलता है
कोई ख्वामख्वाह में जलता है
किसी को जलाती है मन की चिंताएं
किसी को विरह की आग है जलाये  
कोई किसी की खुशनसीबी से जलता है
कोई किसी की सुन्दर बीबी से जलता है
कोई किसी की तरक्की देख जलता है
जलन का खेल जीवन भर चलता है
अग्नि ही भोजन पकाती है
और जठराग्नि ,भोजन से ही बुझ पाती  है
कामाग्नि जब तन में भड़कती है ,
तो कामाग्नि ही उसे बुझा पाती है
मतलब आग से सिर्फ आग लगाई ही नहीं जाती ,
बुझाई भी जाती है
मंदिरों में भगवान की आरती ,आग से ही उतरती है
हवन कर्म आदि में आग ही जलती है
अग्नि के सात  फेरे ,
जनम भर का बंधन बाँध देते है
और अंतिम संस्कार में भी आग ही देते है
हमारे दो प्रमुख त्योंहार
होली और दिवाली मनाये जाते है हर साल
होली में होलिका दहन होता है
दीवाली को दीप का पूजन होता है
दीपक जल कर उजाला देते है ,रास्ता बताते है
चाहे ख़ुशी हो या गम,
अग्नि देवता हमेशा पूजे जाते है
लकड़ी जलती है तो देती है लपट
फिर कोयला बनता है जो देता है दहक
और इस तरह सबको  जलाती आग है
पर उसकी अंतिम नियति ,केवल राख है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

      कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

लेडीज वस्तुएं छोटी सी ,अक्सर औरत के मन भाती
छोटी छतरी,छोटा रुमाल,लेडीज आइटम  कहलाती
छोटी होती लेडीज घड़ी ,छोटी चोली ,छोटी बिकनी
या छोटी छोटी 'हॉट पेंट'पहना करती स्कर्ट मिनी 
खुश छोटे छोटे वस्त्र पहन ,जिससे तन अधिक उजागर हो
पर चाहे बड़ी बड़ी आँखें,और बड़े बाल,जो सुन्दर हो
वो कमर चाहती पतली सी ,पर उन्नत उभरा वक्षस्थल
लम्बी नाजुक ,पतली बाहें,और हाथ कमल जैसे कोमल
कुछ छोटी चीजें उन्हें रुंचें ,कुछ चीजें बडी ,उन्हें भाये
छोटी छोटी सी बातों पर ,वो  मोटे आंसूं ढलकाये
थोड़ा सा छोटा प्यार दिखा ,वो लूट लिया करती मन है 
छोटा या बड़ा पसंद उन्हें ,कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है

घोटू

क्या बेलेंस बनाता भगवन

        क्या बेलेंस बनाता भगवन

कैसा तू बेलेंस बना कर रखता भगवन
चिंताएं भी दे  देता, जिसको देता धन
परेशान ,बैचैन  हमेशा वो होता  है
निर्धन टांग पसार चैन से पर सोता है
कोई निपट गंवार,लक्ष्मी उस पर बरसे
कोई अति विद्वान मगर पैसों को तरसे
कोई अति बेडौल,प्रिया पर स्वर्ण सुंदरी
कोई सुगढ़,सुडौल,मिले बेमेल सहचरी
कोई की पत्नी नाटी  है तो पति  लम्बा
कोई संत ,फ़कीर,उसे मिल जाती रम्भा
कर देता है दोनों का 'एवरेज ' बराबर
कर 'एडजस्ट ',साथ रहते दोनों जीवनभर
अरे और तो और गढ़ी जब मानव काया
पंच तत्व का इतना सुन्दर मेल बिठाया
अगन तत्व को यदि भड़काता तत्व पवन है
तो जल तत्व ,तुरंत कर देता अग्नि शमन है
अग्नि लपटें ,यदि आकाश तत्व में उड़ती
बुझ जाती जब धरा तत्व की माटी पड़ती
एक दूसरे पर करते  है ,सभी नियंत्रण
कैसा तू बेलेंस बना कर रखता भगवन

घोटू

मचा भूचाल देती है

       मचा भूचाल देती है

हवा में सांस हम लेते , हवा ही प्राण होती है
मगर जब उग्र हो जाती ,तो वो तूफ़ान होती है 
काम आता है हरेक पल ,है जल जीवन ही कहलाता
मगर ढाता कहर सब पर,वो जब सैलाब बन जाता
तपस अग्नि की जीवन है,पका देती,पचा देती
मगर जब वो ,दहकती है,सभी कुछ भस्म कर देती 
बीबियाँ होती है प्यारी ,पति को प्यार  देती है
मगर नाराज जब होती,मचा भूचाल  देती है

घोटू 

बीबी आगे कौन टिका है ?

         बीबी आगे कौन टिका है ?

टिक टिक कितना कहती घड़ियाँ ,
                 किन्तु समय क्या कभी टिका है
कोई कभी भी बदल न पाया ,
                  जो कि भाग्य में गया लिखा है
अच्छे दिन हो या कि बुरे दिन,
                      सबके ही जीवन में आते ,
गिर गिर उठना और संभलना ,
                     सब कुछ देता वक़्त  सिखा है  
 एक दिन की छुट्टी ले लेता,
                     चतुर चन्द्रमा  अम्मावस को ,
पर सूरज  ड्यूटी का पक्का ,
                        छुट्टी लेते   नहीं दिखा है
 कोई कितना तीसमारखां ,
                      बने , दबदबा हो दफ्तर  में,
पर भीगी बिल्ली है घर में ,
                       बीबी आगे कौन  टिका  है ?

घोटू

Thursday, June 11, 2015

राम मिलाई जोड़ी

            राम मिलाई जोड़ी

कुछ जोड़ी घरवाले  जोड़े, कोई संग टांका जुड़ जाता
पर कहते है सभी जोड़ियां  ,ऊपरवाला ,स्वयं बनाता
कुछ बेजोड़ ,स्वर्ण आभूषण में ज्यों हीरा जाय जड़ाया
ऐसा लगता ,ईश्वर ने खुद,एक दूजे के लिए   बनाया
कुछ जोड़ी बेमेल इस तरह ,जैसे ऊँट गले में बिल्ली
किन्तु मजे से जीवन जीते,चाहे लोग उड़ाएं खिल्ली
कुछ बनती है मजबूरी में ,और कुछ 'शार्टटर्म 'होती है
और किसी के लिए रीत ये ,सबसे बड़ा  धर्म होती है
एक दूजे के गुण अवगुण से ,एडजस्ट है सब हो जाते
और जिंदगी कट जाती है,यूं ही  हँसते,रोते , गाते  
कोई करे कदर बीबी की ,मोटी  लाये ,दहेजी पेटी
कोई पत्नी से डरता है ,क्योंकि बड़े  बाप की  बेटी
कोई का पति दब्बू होता ,कोई की पत्नी दबंग है
पर चढ़ जाता धीरे धीरे ,उन पर एक दूजे का रंग है
पत्नी होती जादूगरनी ,पति पर ऐसा करती जादू
देता भूला ,बाप माँ सबको,पति आता ,पत्नी के काबू
कुछ को रुचे न घर का खाना ,इधर उधर मुंह मारा करते
पर कैसे भी,किसी तरह भी ,जीवन साथ  गुजारा करते
पति पत्नी के बीच हमेशा ,होती रहती खटपट  थोड़ी
किन्तु समर्पित एक दूजे पर ,राम मिलाता सबकी जोड़ी

घोटू

टी.वी. न्यूज़ चैनल

       टी.वी. न्यूज़ चैनल

मैं आत्मउल्झनानन्द 'बेखबर'
आपकी पसंदीदा न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर
आपका स्वागत करता है
आपका यह पसंदीदा चैनल ,
देश में होनेवाली हर हलचल पर,
अपनी पैनी नज़र रखता है
और हर खबर सबसे पहले ,
आप तक पहुंचा दिया करता है
कोई भी खबर को तोड़ मरोड़ कर ,
यानि कि ब्रेक करके ,हम ब्रेकिंग न्यूज़ बनाते है
और उसके बाद ,एक लम्बे ब्रेक में ,
विज्ञापन दिखाते है
और उसीसे हम कमाते है
कोई भी  करेंट टॉपिक पर,
विपरीत विचारधाराओं के लोगों की ,
पैनल बनवा कर ,लेते है उनके व्यूहज
और  लोगों को करते है कन्फ्यूज
हम लोगो को चने के झाड़ पर चढ़ाते है
और  तिल का ताड़ बनाते है
 पर कभी कभी ताड़ का तिल भी बना देते है
और इससे अच्छा कमा लेते है
हमने जिसकी भी डुगडुगी बजाई है
उसने ही सत्ता पाई है
 कुछ ज्योतिषी भी है हमारे पेनल पर
जो रोज बताते है भविष्यफल
पर कई बार जब वो बतलाते है,
कि आज आपका लाभ का योग है
तो पेट्रोल के दाम बढ़ जाते उसी रोज है
कई बाबा लोगों की पोल भी हम खुलवाते है
तो दूसरे दिन ,उनके स्पोन्सर्ड ,
प्रोग्राम भी  दिखलाते है 
क्योंकि बाबा लोगों की सच्चाई बताना ,
हमारा सामाजिक कर्तव्य है
और स्पोंसर्ड प्रोग्राम दिखाना ,
हमारा बिजनेस है ,जिससे मिलता द्रव्य है
हम ख़बरें सुनाते रहते है दिनभर
और बड़े बड़े घोटाले करते है उजागर
और कभी कभी बड़े बड़े घोटाले दबा देते है
और इससे भी कुछ कमा लेते है
हम लोगों को सबकी खबर देते है
और हम सबकी खबर भी  लेते है
और अब थोड़ी देर के लिए ,
एक कमर्शियल ब्रेक लेते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू ' 
 

भगवान क्यों हुआ पत्थर का

          भगवान क्यों हुआ पत्थर का

भगवान ने दुनिया को बनाया
उसे नदी,पर्वत और झरनो से सजाया
वृक्ष विकसाये ,पुष्प महकने  लगे
तितलियाँ उड़ने लगी,पंछी चहकने लगे
और इसके बाद जब उसने इंसान को गढ़ा
तो उसे देख कर वह खुश हो गया बड़ा
उसके बाद उसने कुछ दिन तक विश्राम किया
और फिर अपनी सर्वोत्तम कृति ,
औरत का निर्माण किया
और उसे देख कर खुद मुग्ध हो गया विधाता था
बहुत कोशिश करता था उसे समझने की ,
लेकिन समझ न पाता था
पर एक दिन अचानक,ऐसी कुछ बात हो गयी
उसके बनाये आदमी की ,
उस औरत से मुलाक़ात हो गयी
और उनके बीच हो गया कुछ ऐसा आकर्षण
कि वो दोनों मिल कर ,तोड़ने लगे,
भगवान के बनाये हुए सब नियम
उन्होंने उसके बगीचे से तोड़ कर ,
खा लिया एक वर्जित फल
और उनमे आ गयी अकल
और फिर यह देख कर ईश्वर हो गया परेशान
जब वो दोनों मिल कर करने लगे,
खुद ही नर नारी का निर्माण
अपने कार्यक्षेत्र में इंसान की घुसपैठ देख ,
सर घूम गया ईश्वर का
उसको इतना झटका लगा ,
कि हो गया वो पत्थर का

घोटू
 

राजनीति

               राजनीति

राजनीति तो है एक गहरा समन्दर
लोग  मोती  ढूंढते  है  इसके  अंदर
कभी भी स्थिर नहीं रहता यहाँ जल
तरंगे उठती , सदा है  यहाँ हलचल
है बड़ा खारा यहाँ का मगर पानी
कभी आता ज्वार भाटा  या  सुनामी
हुआ करते नित निराले खेल भी है
बहुत सारी शार्क भी है,व्हेल  भी है
दांत जिनके तीखे है और बड़े जबड़े
रोज ही करते  घोटाले और लफ़ड़े
कई  मछुवारे यहां रोजी चलाते
डालते है जाल और मछली फंसाते
कुछ किनारे पर खड़े कुछ कर न पाते
कुशल गोताखोर मोती ढूंढ  लाते
मगर इसमें लोग घुस पाते तभी है
नंगे होकर ,खोलते कपडे  सभी  है
जो है नंगे ,दांत जिनके शार्क से है
रत्नाकर ये बस उन्ही के वास्ते है

घोटू

Wednesday, June 10, 2015

जवानी के वो दिन

      जवानी के वो दिन

है याद जवानी के वो दिन ,था रूप तुम्हारा मायावी
मैं था दीवाना जोश भरा,अब उम्र हुई मुझ पर हावी
लेकिन मेरे दीवानेपन, का अब भी है वो ही आलम
है प्यार बढ़ गया उतना ही,जितना कि जोश हुआ है कम
अपनी धुंधलाई आँखों से ,तुम मुझे देखती मुस्का कर
मैं तब भी होता था पागल,मैं अब भी होता हूँ पागल
जब जब  भी हाथ पकड़ता हूँ  ,स्पर्श तुम्हारा मैं  पाता
बिजली सी दौड़ा करती है ,तन भी सिहरा सिहरा जाता
ये वृक्ष अभी भी खड़ा तना ,पर हरे रहे अब पान  नहीं
 फिर भी देते है मंद पवन ,माना लाते  तूफ़ान  नहीं
ये पुष्प भले ही सूख गए ,पर खुशबू अब भी है बाकी
मदिरा उतनी ही मादक है ,वो ही प्याला ,वो ही साकी
ये बात भले ही दीगर है,पीने की उतनी  ललक नहीं
गरमी अब भी अंगारों में ,माना की उतनी दहक नहीं
क्या हुआ अगर मै झुर्राया ,और त्वचा तुम्हारी है रूखी
उतना ही दूध गाय देती,हो घास हरी या   फिर  सूखी
सब जिम्मेदारी निपट गयी ,बच्चे खुश अपने अपने घर
अब बचे हुए बस हम और तुम,अवलम्बित एक दूसरे पर
अब भूल गए सब राग रंग,जीवन के बदले रंग ढंग
अब शिथिल हो रहे अंग अंग,और रूठ गया हमसे अनंग
ढल गयी जवानी,जोश गया ,मस्ती का मौसम बीत गया
आओ हम फिर से शुरू करें ,जीवन जीने का दौर  नया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

Tuesday, June 2, 2015

जल कितना नायाब हो गया

           जल कितना नायाब हो गया

 ये क्या  आज जनाब हो गया ,मिले शुद्ध जल,ख्वाब हो गया
  आबो हवा इस तरह बदली ,जीवन बड़ा , खराब हो गया
             बिकता आज ,बंद बोतल में ,जल कितना नायाब हो गया
मिला दूध संग ,दूध बन गया ,बहा गंदगी संग बन नाली
जिस रंग मिलता,उस रंग रंगता ,इस पानी की बात निराली
                मीठा कभी,कभी खारा है, मादक कभी शराब हो गया
सत्तर प्रतिशत पानी तन में ,फिर भी तन ,पानी को तरसा
उड़ा ग्रीष्म में बादल बन कर,बारिश में रिमझिम कर बरसा
             बहा ले गया कितनो को ही ,उग्र हुआ ,सैलाब हो  गया
पानी मिला ,लहू के संग तो,दौड़ गया ,तन की नस नस में
पानी ने ,खाना पचवाया ,  मिल कर आमाशय  के  रस में        
                 थोड़ा बन कर बहा पसीना ,बचा हुआ पेशाब हो गया
सुख में आँखों को पनियाया ,दुःख में आंसू बनकर टपका
कभी बहा बन गंगा ,जमुना ,सागर से मिलने को लपका
            सहमा रहा कभी कूवे में,और कभी तालाब हो  गया
खेतों में ,बीजों को सींचा ,तो वह फसल बना ,लहलाया
बगिया में जब गया घूमने ,क्यारी क्यारी को महकाया
             नाचा कभी,जूही बेला संग ,तो फिर कभी गुलाब हो  गया
कोई पीता  चुल्लू  भर कर,कोई डूबता चुल्लू भर में
कोई होता पानी पानी,कभी शरम में,या फिर डर में
                 पानी अगर ,चढ़ा चेहरे पर ,तो वह रूप,शबाब हो  गया
पूजा में ,स्नान ध्यान में ,खानपान में जल का सम्बल
मंदिर में चरणामृत बनता ,शिवशंकर को चढ़ता है जल
              देख चाँद को उछला करता ,विष्णु का  आवास  हो गया
मैल दूसरों  का  हर लेता ,चाहे  खुद  हो  जाता  मैला
जल है अमृत ,जल है जीवन ,जलन मिटाता है अलबेला
            जम कर बरफ,वाष्प ऊष्मा से ,नारियल में छुप,डाब हो गया
             बिकता  आज बंद बोतल में ,जल कितना ,नायाब हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

हवा हवाई

              हवा हवाई

हवा कुछ इस तरह से आजकल बदली जमाने की
हवा सब हो गयी है  संस्कृति , रिश्ते  निभाने  की
कमाए चार  पैसे क्या ,  हवा में   लोग उड़ते है
हवा सारी  निकल जाती ,हक़ीक़त से जो जुड़ते है 
बनाते है हवाई  जो किले ,और कुछ  नहीं  करते 
हवा थोड़ी सी भी बदली ,   पतंगों की तरह कटते 
हवाबाजी दिखाते है ,बने अफसर जो  दफ्तर में
हवा उनकी खिसकती है ,पत्नी के सामने ,घर में
हवा के रुख के संग चलना ,समझदारी है कहलाता
हवा में जो उड़ा देता ,बड़ो की सीख,  पछताता
हवा जब तेज चलती है ,तो सब कुछ है उड़ा देती
हवा जब मंद बहती है तो मौसम का मज़ा देती
दर्द होता हवा मुंह से ,आह बन कर निकलती है 
उदर का दर्द, जाता जब, हवा नीचे  खिसकती  है
हवा में सांस हम लेते ,न जी सकते ,हवा के बिन
हवा है खुश्क ,हम सबकी,बढे मंहगाई है हर दिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

लाल मिर्च और तुम

         लाल मिर्च और तुम

हरी ना ,काली ना वो लाल लाल मिर्ची थी ,
   और बस एक ही चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा,
  पता ना मुंह तुम्हारा इतना क्यों लगा जलने
कहीं कल पान जो खाया था मुंह रचाने को,
   किसी ने उसमे अधिक चूना लगाया होगा
काट ली होगी जुबां और मुंह , चूने ने,
   स्वाद जो तेरे हसीं होठों का पाया  होगा 
या कि फिर तुमने ही काटी जुबान खुद होगी ,
    बड़े चटखारे ले के खा रही थी कल खाना
या कमी तुममे हो गयी  विटामिन डी की,
      रही हो 'ए 'क्लास ही तो तुम ,जाने जाना
ये भी हो सकता है कि लाल लाल होठों ने ,
      जलन के मारे की हो सारी ये नाकाबंदी
घुसे जो लाल कोई चीज जो मुंह के अंदर ,
     लगे मुंह जलने,लगी मिर्च पे यूं पाबंदी
समझ के गोलगप्पा मुझको प्यार करती हो ,
   और रह रह के जब भरती  हो मुंह से सिसकारी
मेरा दिल बावला सा उछल उछल जाता है,
      तुम्हारी ये अदा ,लगती मुझे बड़ी  प्यारी 
इसलिए चाहता था ,चटपटा सा कुछ खाकर ,
     मिलन की आग सी लग जाए तुम्हारे दिल में
हरी ना,काली ना वो लाल लाल मिरची थी,
     और बस एक ही  चुटकी तो डाली थी हमने
सोच कर ये कि तुमको स्वाद ये सुहायेगा ,
      न जाने मुंह तुम्हारा ,इतना क्यों लगा जलने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये ग़ालिब हो नहीं सकता

           ये ग़ालिब हो  नहीं सकता

तुम्हारे गाल अच्छे है और लब भी खूबसूरत है ,
      मगर ग़ालिब तुम्हे कह दूँ ,ये मुझ से हो नहीं सकता
मियां ग़ालिब का अंदाजे बयां सब से निराला था,
     मगर अंदाज तुम सा भी ,किसी का हो नहीं सकता
बड़ा बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकला हूँ ,
      मैं  कितनी बार ही लेकिन ,तुझे मैं  खो नहीं सकता
दिले नादाँ के दर्दों की ,दवाई पूछता सबसे,
       इश्क़ पर जोर ग़ालिब का भी देखो  हो नहीं सकता
गालिबन रोज तुम गाली ,मुझे देती हो शेरों सी,
        मैं कुत्ते सा हिलाता दुम ,शरम  से रो नहीं सकता 
हमारी फांकामस्ती ने,रंग क्या क्या दिखाये  है ,
       पकाता ,माँजता बर्तन पर कपडे  धो नहीं  सकता

घोटू

राहुल के -मन की बात -मोदीजी से

             राहुल के -मन की बात -मोदीजी से

मुझे मालूम  स्विज़रलैंड है इंग्लैंड ,अमरीका,
     पता है इटली का,थाईलैंड का बैंकॉक है मालूम
और तुम घूमते ही रहते हो ,देशों,विदेशों में,
    न जाने साल भर में देश कितने घूम आये तुम
कहीं बच्चों के संग खेलो ,कहीं तबला बजाते हो ,
    जिधर भी जाते हो,होता उधर मोदी ही मोदी है 
न जाने कौन सा जादू चलाते हो तुम लोगों पर,
    मुझे ना पूछता कोई, मेरी लुटिया  डुबो दी  है
अभी तक देश की सत्ता ,हमारे हाथों में ही थी ,
      हमारे पुश्तैनी धंधे पे , तुमने सेंध  मारी  है
मैं तपती धूप में,गाँवों में सड़कों पर रहूँ फिरता,
    करूं पदयात्राएं ,तुमने वो  हालत  बिगाड़ी  है
मैं भी पीएम बन सकता था पर अम्मा खिलाड़ी है,
  अपने रिमोट से दस साल तक सत्ता चलाई है
बना कर सबको कठपुतली ,नचाया उँगलियों पर था,
   घोटाले करवा हमने की ,करोड़ों की कमाई है
मगर हम ये समझते थे कि हिन्दुस्थान की जनता ,
  बड़ी भोली है,बहकावे में ,आ जाएगी  वादों पर
मगर तुमने दिखा सपने कि अब आएंगे अच्छे दिन,
   पलीता ही लगा डाला, हमारे सब इरादों पर
जो वादे इतने सालों से ,किये हमने चुनावों मे ,
    हमारे उन ही वादों को,चुरा ,जीते इलेक्शन तुम
अगर इनमे से आधे भी ,जो वादे पूर्ण कर दोगे ,
  तो फिर अगले इलेक्शन तक,हमारी हस्ती होगी गुम
घूम कर इतने देशों में,छवि अपनी निखारी है,
   हमारे देश की छवि को भी ,कुछ  तुमने सुधारा  है
मगर मैं और मेरी पार्टी आ जाए हाशिये पर,
   कभी भी बात ये मुझको ,नहीं होती गंवारा    है
मुझे मालूम है कि कुछ पुराने मेरे चमचे है,
    चने के झाड़ पर मुझको ,चढ़ाते  रहते है अक्सर
भले ही कुछ भी दूँ भाषण,मगर ये जानता हूँ मैं ,
    कि ये सरकार तुम्हारी ,कर रही काम है बेहतर
मगर मजबूरी मेरी है,तभी आलोचना करता,
     मुझे अस्तित्व अपना भी तो रखना देश में कायम
इसलिए रोज हंगामा,ये पदयात्रायें  और ड्रामा,
       प्रदर्शन  ,मोरचेबाजी ,रोज ही करते रहते हम
भले तुम सूट पहनो या कि आधी बांह का कुरता ,
     पहनना वस्त्र मरजी के,सभी को है ये आजादी
हम पिछले साठ  सालों से ,सिर्फ वादे रहे करते ,
     मगर तुमने,बरस भर में तरक्की करके दिखलादी
     
   मदन मोहन बाहेती'घोटू'