Saturday, December 1, 2018

कम्बोडिया का अंगकोर वाट मंदिर देख कर 


सदियों पहले ,
दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशो में ,
हिन्दू धर्म का विस्तार था 
आज का 'थाईलैंड 'तब 'स्याम 'देश था 
यहाँ भी हिंदुत्व का प्रचार प्रसार था 
बैंकॉक में कई मंदिर है व् पास ही ,
;अयुध्या 'नगर में ,कई मंदिर विध्यमान है 
वहां के हवाईअड्डे 'स्वर्णभूमि 'में ,
'अमृत मंथन 'का विशाल सुन्दर स्टेचू ,
उनके हिंदुत्व प्रेम की पहचान है 
यद्यपि अब वहां बौद्ध धर्म माना जाता है 
पर वहां के पुराने मंदिरों के टूर में ,
गणेशजी ,शिवजी आदि देवताओं की ,
पुरानी मूर्तियों का दर्शन हो जाता है  
आज का इंडोनेशिया ,
प्राचीन जावा ,सुमात्रा और बाली है 
वहां भी मंदिरों में हिन्दू देवताओं की प्रतिमाये सारी  है  
वहां अब भी रामायण और महाभारत के पात्र ,
मूर्तियों में नज़र आते है 
बाली में तो अब भी ,
कई हिन्दू धर्मावलम्बी पाए जाते है 
वहां के लगभग सभी घरों के आगे और दुकानों में ,
अब भी छोटे छोटे मंदिर पाए जाते है 
जिनमे देवताओ को लोग रोज 
फूल और प्रसाद चढ़ाते है 
तब का मलय देश अब मलेशिया है 
पर यहाँ से हिन्दू धर्म बिदा  हो गया है
तब का 'कम्बोज ' देश अब कम्बोडिया है और 
यह हिन्दू धर्म का पालक एक बड़ा राज्य था 
यहां राजा सूर्यवर्मन का साम्राज्य था 
बारहवीं सदी में राजा सूर्यवर्मन ७ ने 
तीस वर्षो में पांच सौ एकड़ क्षेत्र में फैला 
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर बनवाया था 
जहाँ विष्णु और ब्रह्मा जी की मुर्तिया स्थापित है 
रामायण और महाभारत की कथाये दीवारों पर चित्रित है 
काल  के गाल में दबा यह विशाल मंदिर 
जब से फिर से खोजा गया है 
दुनिया भर के दर्शको के लिए 
एक आकर्षण का केंद्र बन गया है 
दुनिया भर के पर्यटकों की भीड़ ,
हमेशा ही लगी रहती है 
और इसे सराहते हुए कहती है 
कि जब खण्हर इतने बुलंद है तो इमारत जब बुलंद होगी 
तो इसकी सुंदरता कितनी प्रचंड होगी 
आज कम्बोडिया की अर्थव्यवस्था का 
पन्दरह प्रतिशत (!५ %)पर्यटन से आता है 
जहाँ विष्णु  पूजे जाते है वहां मेहरबान होती लक्ष्मी माता है 
इस मंदिर के दर्शन कर मेरे मन में एक बात आयी 
हमारे देश के कई मंदिरों में है ढेरों कमाई 
क्या वो कभी देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के काम आयी 
जब दूसरे देश मंदिरों के भग्नावेश दिखा कर करोड़ों कमा सकते है 
तो क्या हम हमारे मंदिर कुछ समय के लिए,
 विदेशी पर्यटकों को दर्शन के  लिए छोड़ कर कितना कमा सकते है 
और मंदिरों की इतनी कमाई देश की अर्थ व्यवस्था 
सुधारने के काम में ला सकते है 
फिर मन बोला छोडो यार ,ये सब बातें है बेकार 
हिन्दू राष्ट्र के हिन्दू देवभक्तों ने ,हिंदुत्व की महिमा के कितने गीत गाये 
पर बाबरी मस्जिद के गिरने के छब्बीस वर्ष बाद भी, 
राम की जन्मभूमि पर राम का मंदिर नहीं बना पाए 
फिर भी हम हिंदुत्व का दावा करते है बार बार 
हमारी इस असफलता पर हमें है धिक्कार 
ये हमारी आज की ओछी राजनीती और सोच का परिणाम है 
वर्ना यहाँ तो जन जन के दिलों में बसते  राम है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वक़्त गुजारा खुशहाली में 

जीवन की हर एक पाली में 
वक़्त गुजारा खुशहाली  में 

होती सुबह ,दोपहर ,शाम 
यूं ही कटती उमर  तमाम 
हर दिन की है यही कहानी 
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी 
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में  बँटी  उमर  है 
बचपन यौवन और बुढ़ापा 
सबके ही जीवन में आता 
मुश्किल से  मिलता यह जीवन  
इसका सुख लो हरपल हरक्षण 
 रिश्ता बंधा  चाँद संग  ऐसा 
सुख दुःख  घटे बढे इस जैसा 
हर मुश्किल से लड़ते जाओ 
शीतल  चन्द्रकिरण  बरसाओ 
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं  हरियाली में 
जीवन की हरेक पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 
बचपन की पाली 
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जब मैं था छोटा सा बच्चा 
सबके मन को लगता अच्छा 
सुन्दर सुन्दर सी  ललनाये 
गोदी रहती  मुझे  उठाये 
चूमा करती थी गालों को 
सहलाती मेरे बालो को 
ना चिंताएं और ना आशा 
आती थी बस दो ही भाषा 
एक रोना  एक हंसना प्यारा 
काम करा देती थी सारा 
हर लेती थी सारी  पीड़ा 
मोहक होती थी हर क्रीड़ा 
भरते हम,हंस हंस किलकारी 
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी 
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं 
इस जूवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं खुशहाली में 
जवानी की पाली 
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बचपन बीता ,आई जवानी 
जीवन की यह उमर सुहानी 
खुशबू और बहार का मौसम 
मस्ती और प्यार का मौसम 
देख कली तन,मादक,संवरा 
मेरे मन का आशिक़ भंवरा 
उन पर था मँडराया  करता
अपना प्यार लुटाया  करता 
जुल्फें सहला ललनाओं की 
चाह रखी  ,बंधने बाहों की 
साथ किसी के  बसा गृहस्थी 
थोड़े दिन तक मारी मस्ती 
फिर प्यारे बच्चों का पालन 
वो ममत्व और वो अपनापन 
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में 
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में 
बुढ़ापे की पाली
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साठ  साल का रास्ता नापा 
गयी  जवानी,आया बुढ़ापा 
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने 
बची सिर्फ अनुभव की केसर 
बच्चे उड़े ,बसा अपने  घर 
अब न पारिवारिक चितायें 
मस्ती में बस  वक़्त  बितायें 
समय ही समय खुद के खातिर 
पर अब ना  उतना चंचल दिल 
धुंधली नज़रों से  अब  यार
कर न पाए उनका दीदार 
ललना बूढ़ा बैल ना  पाले 
अंकल कहे ,घास ना डाले 
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में 
इस जीवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '