मै क्या करूं
पत्नी की सुनता तो 'जोरू का गुलाम'हूँ,
माँ की सुनता,तुम कहती 'मम्मी के चमचे'
बच्चों को डाटूँ तो कहलाता हूँ 'जालिम',
करूं प्यार तो कहती मै 'बिगाड़ता बच्चे'
घर पर रहता तो कहते मै 'घर घुस्सू'हूँ,
बाहर रहूँ घूमता 'आवारा ' कहलाता
कम खाता तो कहती मै 'कमजोर हो रहा',
'मोटे होकर फूल रहे' यदि ज्यादा खाता
खर्चा करता तो कहती हो 'खर्चीला 'हूँ,
ना करता तो कहती हो 'कंजूस'बहुत मै
मेरी समझ नहीं आता ,क्या करूं ना करूं ,
कोई बताये क्या करना कन्फ्यूज बहुत मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Wednesday, February 13, 2013
वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में
वेलेनटाइन सप्ताह
(चतुर्थ प्रस्तुति)
वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
आप ये क्यों भूलती है
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
सांस मेरी फूलती है
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा ,
हम खुदी टेडी बियर है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै इकहत्तर ,तुम हो पेंसठ ,प्यार अपना जस का तस है
मनायें वेलेन्टाइन ,प्यार का ये तो दिवस है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(चतुर्थ प्रस्तुति)
वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
आप ये क्यों भूलती है
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
सांस मेरी फूलती है
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा ,
हम खुदी टेडी बियर है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै इकहत्तर ,तुम हो पेंसठ ,प्यार अपना जस का तस है
मनायें वेलेन्टाइन ,प्यार का ये तो दिवस है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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