सर्दी का आगाज
कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी सी धूप थी मन को भाई
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से पूरे बदन में कुछ खुश्की सी छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा ठिगना था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब सब पसीना था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन ठिठुराने लगा है
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी सी धूप थी मन को भाई
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से पूरे बदन में कुछ खुश्की सी छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा ठिगना था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब सब पसीना था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन ठिठुराने लगा है
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'