आपदा से अवसर
कहते है हरेक बुराई में ,छिप रहती कोई भलाई है
हम कठिन दौर से गुजरें है ,तब बात समझ में आयी है
जब जब हमने ,ठोकर खाई ,तब तब आई है ,हमें अकल
हम गिरे ,चोंट घुटने खायी ,तब आई चलाना बाइसिकल
दो चार जीत के दाव पेंच,हर हार हमें सिखला देती
हर भटकन ,टेढ़े रस्ते की ,है सही राह ,दिखला देती
कितनी ही बार ,फ़ैल होना ,ले आता 'पास ' के पास हमे
करना संघर्ष ,सिखा देता ,जब जब भी मिलता ,त्रास हमें
जब आती कभी आपदा तो ,अवसर मिलता कुछ करने का
हम ढूंढ लिया करते उपाय ,संकट से दूर ,उबरने का
इस कोरोना की आफत में ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे
पहले हम धोते हाथ सिरफ ,अब हाथ साफ़ करना सीखे
लोगों से रखी ,बना दूरी ,तब 'इंफेक्शन 'से बच पाये
जब हाथ मिलाना छोड़ दिया ,संस्कार नमस्ते के आये
बीबी बच्चों संग ,इतने दिन ,मस्ती में गुजरे ,संग रह कर
सुख परिवार का क्या होता यह याद रहेगा ,जीवन भर
जब हाथ बंटाया पत्नी के ,गृह कार्यों में सहयोग दिया
इस योगदान ने थोड़े से ,उनको कितना संतोष दिया
खाये नित नए नए व्यंजन ,पत्नी के हाथों ,स्वाद भरे
हम खेले ताश ,गुजारे दिन ,संडे जैसे ,आल्हाद भरे
बच्चों का जंक फ़ूड चस्का ,आलू के परांठे ,भुला दिए
घर की रौनक ने ,कर्फ्यू के ,सारे सन्नाटे ,भुला दिए
बढ़ गया आत्मविश्वास बहुत ,सब मेआया फुर्तीलापन
अब पूरा घर चल सकता है ,बिन नौकर या फिर महरी बिन
बंद मटरगश्तियाँ मॉलों की ,ना कोई सिनेमा या होटल
खर्चे फिजूल के बंद हुए ,घर खर्च रहा ,आधा केवल
अब स्वच्छ हवा ,निर्मल पानी ,दिखते है रातों में तारे
था 'लॉक डाउन 'पर 'मोरल अप 'दुःख में सुख छिपे हुए सारे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कहते है हरेक बुराई में ,छिप रहती कोई भलाई है
हम कठिन दौर से गुजरें है ,तब बात समझ में आयी है
जब जब हमने ,ठोकर खाई ,तब तब आई है ,हमें अकल
हम गिरे ,चोंट घुटने खायी ,तब आई चलाना बाइसिकल
दो चार जीत के दाव पेंच,हर हार हमें सिखला देती
हर भटकन ,टेढ़े रस्ते की ,है सही राह ,दिखला देती
कितनी ही बार ,फ़ैल होना ,ले आता 'पास ' के पास हमे
करना संघर्ष ,सिखा देता ,जब जब भी मिलता ,त्रास हमें
जब आती कभी आपदा तो ,अवसर मिलता कुछ करने का
हम ढूंढ लिया करते उपाय ,संकट से दूर ,उबरने का
इस कोरोना की आफत में ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे
पहले हम धोते हाथ सिरफ ,अब हाथ साफ़ करना सीखे
लोगों से रखी ,बना दूरी ,तब 'इंफेक्शन 'से बच पाये
जब हाथ मिलाना छोड़ दिया ,संस्कार नमस्ते के आये
बीबी बच्चों संग ,इतने दिन ,मस्ती में गुजरे ,संग रह कर
सुख परिवार का क्या होता यह याद रहेगा ,जीवन भर
जब हाथ बंटाया पत्नी के ,गृह कार्यों में सहयोग दिया
इस योगदान ने थोड़े से ,उनको कितना संतोष दिया
खाये नित नए नए व्यंजन ,पत्नी के हाथों ,स्वाद भरे
हम खेले ताश ,गुजारे दिन ,संडे जैसे ,आल्हाद भरे
बच्चों का जंक फ़ूड चस्का ,आलू के परांठे ,भुला दिए
घर की रौनक ने ,कर्फ्यू के ,सारे सन्नाटे ,भुला दिए
बढ़ गया आत्मविश्वास बहुत ,सब मेआया फुर्तीलापन
अब पूरा घर चल सकता है ,बिन नौकर या फिर महरी बिन
बंद मटरगश्तियाँ मॉलों की ,ना कोई सिनेमा या होटल
खर्चे फिजूल के बंद हुए ,घर खर्च रहा ,आधा केवल
अब स्वच्छ हवा ,निर्मल पानी ,दिखते है रातों में तारे
था 'लॉक डाउन 'पर 'मोरल अप 'दुःख में सुख छिपे हुए सारे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '