Thursday, April 28, 2011

नारी शक्ति

        नारी शक्ति
       ------------
नारी,शक्ति रूपा प्रचंड होती है
सास रूप में हो या बहू रूप में,
दोनों में करंट होती है
और अक्सर
एक की करेंट पोसिटिव,
और एक की करंट निगेटिव होती है
ये दोनों लाइव वायर ,
जब साथ साथ रहते है
लोगबाग कहते है
इनके टकराने  से,
अच्छे अच्छे अच्छे घरों का फ्यूज उड़ जाता है
कई बार इतनी स्पार्किंग होती है,
कि घर तक जल जाता है
पर जब इन तारों पर
पुत्र प्रेम का ,
और पति प्यार का इन्सुलेशन चढ़ जाता है
तो इनके करंट से,
प्यार का बल्ब जल जाता है
और सारा घर रोशन हो जाता है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


Wednesday, April 27, 2011

मै बदल गया

     मै बदल गया
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मैंने तुमसे जब शादी की ,तब बड़ा मस्त मौला था मै
तुम जैसा कहती ,मै करता ,सचमुच कितना भोला था मै
तुम ये न करो ,तुम यू न करो,ऐसे पियो,यूँ खाओ तुम
ऐसे ऐसे कपडे   पहनो,  और ऐसे   बाल  बनाओ तुम
 ,मै अच्छा भला आदमी था,तुमने क्या से क्या कर डाला
तुम्हारी टोका टाकी ने ,मेरा   व्यक्तित्व   बदल    डाला
आज्ञाकारी पति बन कर जब ,मै हूँ बिलकुल ही बदल गया
अब तुम्ही शिकायत करती हो, मै पहले जैसा नहीं रहा

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

विश्वामित्र

विश्वामित्र
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मै विश्वामित्र हूँ
तपस्वी हूँ
ज्ञानी हूँ ,ध्यानी हूँ
पर मुझे बहुत क्रोध आता है
कोई मेरी अवहेलना करे ,
तो चेहरा तमतमाता है
मेरे क्रोध के कारण,
दुष्यंत शकुंतला को भूल जाता है
पर मै भी हाड मांस का पुतला हूँ,
मुझ में भी कमजोरियां है
अभी तक मेरा तप भंग नहीं हुआ है
कुछ मजबूरियां है
मगर फिर भी आस है
पूरा विश्वास है
कभी तो कोई मधुमास मुस्केरायेगा
जो किसी मेनका को लाएगा
ये तप ,ये ध्यान,
सब बातें है दिखने की
मुझे तो बस प्रतीक्षा है ,
किसी मेनका के आने की

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

एक नारी का अंतरद्वंद

 एक नारी का अंतरद्वंद
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मेरा धृष्ट राज
यदि काम ,क्रोध,लोभ, मोह ,में अँधा है,
तो क्या मै भी गांधारी की तरह,
अपनी आँखों पर पट्टी बांध लूं ?
मेरा लक्ष्मण,
अपने भ्राता की सेवा में,
 वन वन भटके,
और मै उर्मिला की तरह,
अपने यौवन के चौदह वर्ष
विरह के आंसुवों में भीगती रहूँ ?
अगर कोई इन्द्र,
मेरे पति गौतम का रूप धर,
मेरे साथ छल कपट करे,
तो क्या मै पत्थर की अहिल्या बन जाऊ ?
कोई अर्जुन मुझे स्वयंबर में जीते,
और मै अपनी सास के कहने पर,
पांच पांडव भ्राताओं की,
पत्नी बन,बंट जाऊ?
तो मै क्यों नहीं कुंती की तरह,
कवांरेपन में कर्ण की माँ,
या पाण्डु की पत्नी होने पर भी,
धर्मराज ,इंद्र,और पवन का आव्हान कर,
तीन पुत्रों की माँ नहीं बन सकती?

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

मई में

मई में
एक सुरमई आँखों वाली से
सुर मिले
उसकी  प्रेममयी बातों ने
प्रेम का मय पान कराया
फिर आनंदमयी जिंदगी के सपने देखे
परिणाम में  परिणय हुआ
और अगली मई तक
वो प्रेममयी, आनंदमयी,सुरमई आँखों वाली
ममतामयी  बन गयी

Monday, April 25, 2011

जरुरत--शहादत की

    जरुरत--शहादत  की
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राजनीती के गलियारे,
अपनी संकीर्ण  मानसिकता के कारण
बहुत सकड़े रह गए है
और अब आवश्यकता हो गयी है,
उन्हें चोडा करने की
और सड़कों को चोडा करने के लिए
पुराने बड़े बड़े वृक्षों को
शहादत देनी पड़ती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


Sunday, April 24, 2011

बिठोडा

बिठोडा
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गावं के आसपास
या सड़क के किनारे
जब भी देखता हूँ
गोबर के बने ,झोपड़ीनुमा
छोटे छोटे से घर
जिनमे सलीके से,
जमा कर रखे हुए होते है
गोबर के उपले या कंडे
और जिनकी दीवारों पर,
किसी कार्यकुशल गृहणी के
हाथों के छापों की सजावट होती है
वो हाथ ,जिनमे मेहंदी रचती है
वो हाथ ,जो सिहरन पैदा करतें है
वो हाथ,जो रोटियां सकतें है
उन्ही हाथों ने,गोबर को थेप थेप कर
ये उपले या कंडे गढ़ें है
जिन्हें सुखा कर रखती है  वो ,
गोबर के बने इन बिठोड़ो में
ताकि बरसात के मौसम में
इनसे चूल्हा जला कर
सेक सके रोटियां
पेट की आग बुझाने को
और बची हुई राख से
मांझ सके घर के बर्तन
इन बिठोड़ो  को देख कर,
याद आतें है मिश्र देश के पिरेमिड
जिन्हें बनाया गया था,
उपयोग हीन शवों को सुरक्षित रखने के लिए
तब लगता है की लोगों की सोच और संस्कृति में
कितना अंतर होता है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

नमक के खेत

  नमक के खेत
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दूर दूर तक फैले हुए, सफ़ेद सफ़ेद
नमक के खेत
समुन्दर का पानी,
जब छोड़ देता है अपना खारापन
तो बन जाता है श्वेत लवन
जो है जीवन
जब भी मै देखता हूँ
समुद्र के पानी को क्यारियों में रोकती मुंडेर
या चमचमाते श्वेत लवन के ढेर
तो श्रद्धा से बोल पड़ता है मेरा मन
हे!भुवनभास्कर ,तुम्हे नमन
तुम्हारी उष्मा ही,
देती है हमें जीवन
और हे रत्नाकर!
तुम अपना जल
सूरज की ऊष्मा से जला कर
बन जाते हो बादल
और बरसते हो बन कर जीवन
और तुम्हारा अवशेष
अत्यंत विशेष
स्वाद की खान
तुम्हे प्रणाम
गेहूं के लहलहाते खेत
या फूलों के महकते बाग़
हमारी सांसे,हमारा जीवन
और जीवन का स्वाद
सब सूरज और सिन्धु की
जुगल बंदी का है प्रसाद
देखता हूँ जब भी सफ़ेद सफ़ेद
नमक के खेत
तो  मेरा मन
करता है इन्हें शत शत नमन
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

सुबह--सुबह

 सुबह--सुबह
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आने का जिसका सुबह सुबह इंतजार था
 दिल लग नहीं रहा था ,जिया  बेक़रार था
आया  तो उसे प्रेम से  हाथों  में ले  लिया
हमने उलट पुलट  की किया ,उससे प्यार था
चेहरा था  बड़ा बोल्ड ,जिसम था भरा हुआ,
हुस्नो अदा का आगे पीछे इश्तिहार था
सोलह का था या बीस का ,लेकिन हसीन था
नज़रें गड़ा के देखा तो वो खुशगवार था
ली चाय की फिर चुस्कियां,उसके ही साथ में
दिल में समेत लाया वो  बातें हज़ार था
"इससे ही चिपके रहोगे या देखोगे मुझे"
बीबी ने जो फटकारा ,सच ,मै गुनाहगार था
दुनिया ,जहान की सभी ख़बरें लिए हुए,
मैंने पढ़ा ,और रख दिया,वो अखबार था

    मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



                                               

डुगडुगी राजा


      डुगडुगी  राजा
        ---------------
कभी था दुनिया को जीतने का ख्वाब
पर असफलताओ के बाद
जब नहीं दिया तकदीर ने संग
तो बन गए पार्टी के ढपोर शंख
कोई भी हो छोटी मोटी बात
बन जाती है इनके लिए खबर खास
किसी की आलोचना  या करना हो अपमान
हाज़िर है इनका बयान
खबर में रहने को बेसबर
टी वी के कैमरे पर इनकी नज़र
दूसरे ही दिन अपने बयान से पलट जाते है
और फिर टी वी की ख़बरों में नज़र आते है
मिडिया को भी रहती है ख़बरों की तलाश
सुनाती रहती है इनकी बकवास
और ये बजाते रहते है डुगडुगी ,बाजा
अंधेर नगरी ,डुगडुगी राजा
         मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Thursday, April 21, 2011

-गर्मी-

 तेज धुप हो ,बहे पसीना ,तो गर्मी है
पहलू में हो कोई हसीना ,तो गर्मी है
गुस्से से मुहं अगर लाल है,तो गर्मी है
पोकित में जो अगर माल है,तो गर्मी है
तेजी से बढ़ता बाज़ार है,तो गर्मी है
तबियत बिगड़ी है ,बुखार है,तो गर्मी है
राजनीती में चहल पहल है,तो गर्मी है
पद है ,बंगला हैकि महल है ,तो गर्मी है
गर्मी कई तरह की होती, बहुत गरम है
नियम गणित का ,दो ऋण मिल कर होते धन है
पर गर्मी की बीजगणित उलटी होती है
दो गर्मी के मिलने पर सर्दी होती है
मई जून का मौसम बड़ा गरम होता है
धनवानों का पॉकेट बड़ा गरम होता है
लेकिन जब ये दोनों गर्मी मिल जाती है
तो हिलस्टेशन पर जाकर गर्मी आती है
जब सर्दी होती तो कांप कांप हम जाते
गर्म दो बदन,जब आपस में है टकराते
अधर कांपते ,अंग अंग में होती सिहरन
ये सब तो,सर्दी वाले ही होते लक्षण
गर्म खून वाले ,दो ,लड़ते खेल खेल में
 एक वहीँ ठंडा पड़ता है ,एक जेल में
एक राज़ की बात आपको हम बतलाये
जब सर्दी आने को हो ,दीवाली आये
  आने वाली सर्दी सर्दी से हम सब डरते है
इसीलिए तो लक्ष्मी की पूजा करते है
हे लक्ष्मी  मैया! तू साथ हमारे रहना
गर्म तिजोरी,पॉकेट हरदम करती रहना
पॉकेट हो यदि गरम ,सभी कुछ गरम गरम है
सर्दी आये पास ,कहाँ सर्दी में दम है
हीटर,शाल,रजाई,सूट,स्वेटर ,कार्डिगन
पॉकेट गरम,बराबर उसको सारे मौसम
और गर्मी आने के पहले आती होली
मस्ती,मौज,शरारत,होती हंसी ,ठिठोली
ऋतू बसंती होती ही है यूं मदमाती
की गर्मी आने के पहले गर्मी आती
वेतन जीवी लोगों का मौसम बेदर्दी
एक तारीख को गर्मी और तीस को सर्दी
ऊपर वाले अफसर बहुत गरम होते है
तब ही केबिन एयर कंडीशन होते है
ये भी देखा है,कुछ लोग सख्त होते है
लेकिन उनके चमचे बड़े भक्त होते है
गर्मी का नरमी से नजदीकी नाता है
गर्मी पाकर के फौलाद पिघल जाता है
सही जगह पर सही किसम की  गर्मी देना
जब तक अंडे न निकले,अण्डों को सेना
जिसको हो ये ज्ञान,सफलता वो पाता है
धीरे धीरे बड़ा आदमी बन जाता है
तो यह सच है ,गर्मी सबके मन भाती है
गर्मी की गरिमा है ,सबको गरमाती है
गर्म जलेबी,गर्म समोसे ,गर्म पकोड़ी
गरम गरम गाजर का हलवा,गर्म कचोडी
गर्म चाय हो,कोफ़ी या आलू की टिकिया
गर्म चीज सब खाने में लगती है बढ़िया
गर्म देश के लोग भला हम गर्म न होंगे
जाने अब तक ये गर्मी के मर्म न होंगे
इसीलिए तुम छोडो सारी शर्मा शर्मी
मजा उठाओ गर्मी का ,जब तक है गर्मी

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र

 

Wednesday, April 20, 2011

गीत मिलन के हम गाते है



सपन संजोये प्रियदर्शन के,गीत मिलन के हम गाते है
  किस्मत से छींका टूटेगा ,अपने मन को समझाते है
हुए प्यार में अंधे उनके,पर बटेर कब हाथ लगेगी
जो बाँट रही रेवड़ी मीठी ,हमको भी तो कभी मिलेगी
आस लगाये हम बैठे है,छप्पर फाड़ मिलेगा कब धन
कब सूखी बगिया सर्सेगी,फूल खिलेंगे मेरे आँगन
इस अंधियारी सी कुटिया में ,जाने कब उजियारा होगा
कब आशा के दीप जलेंगे,कब दीदार तुम्हारा होगा
सपन मिलन के संजो रखे है,जाने कब वो होंगे पूरे
कब परियां नाचेंगी मन में ,जाने कब आएगी हूरें
मेरे मन के      वृन्दावन में,        रास करेगी राधा रानी
दिल की इस सूखी  धरती पर  कब बरसेगा रिमझिम पानी
सोंधी सोंधी सी खुशबू से,कब महकेगी मन की माटी
कब तुम मुझे सहारा दोगी ,बन कर इस अंधे की लाठी
तिल तिल करके जलते दिल को,ये दूरी मंजूर नहीं है
भटक रहा है बंजारा मन,पर अब दिल्ली दूर नहीं है
कहते लोग ,भोर में देखे ,सब सपने सच हो जाते है
गीत मिलन के हम गाते है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'







Tuesday, April 19, 2011

मजबूरी- गठबंधन की


मजबूरी- गठबंधन की

ये दुनिया कितनी हसीन है,फूल खिले है सुन्दर सुन्दर
जी करता सबकी खुशबू लूं,बनूँ भ्रमर ,रस पियूं जी भर
हिरन जैसी भरूं कुलांछे, खाऊं गुलाटी बन्दर जैसी
खुल कर खेलूँ,मौज मनाऊ,इच्छा दिल के अन्दर ऐसी
मन मलंग मचले मस्ती को,हैं सोये अरमान मचलते
लेकिन टूट टूट जाते हैं ,सारे सपने पलते ,पलते
अरे विवाहित मर्दों की क्या ,होती है सब इच्छा पूरी
जीवन डोर बंधी पत्नी  संग ,गठबंधन की है मजबूरी
पढ़ा लिखा सीधा सादा सा , था मै चलता जीवन पथ पर
पर किस्मत के हालातों ने,खींच लिया सत्ता के रथ पर
जी करता है ,करूं सफाई, सारा भ्रष्टाचार मिटा दूं,
बेईमानी,रिश्वतखोरी, महंगाई को दूर हटा दूं
भ्रष्टों की जमात लगी है ,कई दलों का है  ये दलदल
कैसे मै निपटूं इन सबसे,बहुत हो रही छीछालेदर
सत्ता से दागी चेहरों को,दूर हटाना ,बहुत जरूरी
शंशोपज है,लाचारी है,गठबंधन की है मजबूरी
           मदन  मोहन बहेती 'घोटू'





Sunday, April 17, 2011

कुंती

        कुंती
    -----------
एक आधुनिक कन्या चुलबुली
एक तांत्रिक से मिली
तांत्रिक बोला ,मै भूत भविष्य सब बतला सकता हूँ
किसी  भी मृत आत्मा से ,मुलाक़ात करवा सकता हूँ
कन्या बोली "जो कहते हो करके दिखलाओ
हो सके तो कुंती की आत्मा को बुलवाओ ,
मैंने सुना है उसे एक एसा मन्त्र आता था
जिसे पढ़ कर जिसका भी स्मरण करो
वो सामने आजाता था,
वो मन्त्र अगर मुझे मिल जायेगा
तो शाहरुख़ ,सलमान, जिसका भी स्मरण करो
आपकी बाँहों में आजायेगा"
तांत्रिक ने कुछ मन्त्र पढ़े और क्रियाये की
और थोड़ी देर में आगई आत्मा कुंती की
कन्या ने मन्त्र जानने की अभिलाषा जतलाई
तो कुंती की आत्मा ने ये बात बतलाई
की इस मन्त्र  से स्मरण किये व्यक्ति से,
संतान उत्पन्न होगी ,एसा इस मन्त्र का असर है
कन्या बोली मुझे इसका नहीं बिलकुल भी डर है
मै तो बस दिल बह्लौंगी
और नियम से 'पिल'  खाऊँगी
   मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चिंगारी

चिंगारी
----------
हायड्रोजन हलकी होती है
और ज्वलनशील भी
(हलके लोग जलते और जलाते है)
ओक्सिजन प्राणदायिनी होती है
पर जलने में मददगार है
(शायद यह उसका स्वाभाव है)
जरुरत है  एक ऐसी बिजली की चिंगारी की
जो इन दोनों को मिला कर
इनका स्वभाव बदल दे
इन्हें पानी(H2O)  बना दे
जो प्राणदायक हो
और जलन की आग को बुझा दे
ऐसी चिंगारी
मै कहाँ से लाऊ?
         मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


समाजवाद


आदमी,
जब उतर आता है,
मानसिक धरातल से
शारिरिक धरातल पर
तब औरत रह जाती है सिर्फ मादा,
और आमादा हो जाता है ,
पुरुष पशुता पर
उस समय
राजा और प्रजा में
ज्ञानी अज्ञानी में
धनि और निर्धन में
छोटे और बड़े में
कोई फर्क नहीं रहता
सब एक जैसे होते है
उन्माद के वो क्षण ही
सच्चे समाजवादी क्षण होते है
      मदन मोहन बहेती 'घोटू'

थकी थकी है भोर


रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
आलस के सुख में डूबा है ,तन का एक एक पौर
उर के हर एक स्पंदन में ,मुखरित है आनंद
सूखी माटी ,पा फुहार सुख ,देती सोंधी गंध
प्रणय पुष्प मकरंद प्रफुल्लित,मन आनंद विभोर
रात चांदनी ऐसी महकी,थकी थकी है भोर
पलक उनींदी,मीठे सपने,आकुल व्याकुल नैन
राह चाँद की तके चकोरी ,कब आएगी रैन
चोरी मन का चैन ले गया ,वो प्यारा चितचोर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
एसा खिला  खिला सा सूरज,देखा पहली बार
इतना प्यारा पंछी कलरव ,इतनी मस्त बयार
एसा लगता है धरती पर ,पुष्प खिले चहुँऔर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
           मदन मोहन बहेती 'घोटू'

इलेक्ट्रो सिंथेसिस -

इलेक्ट्रो सिंथेसिस
-------------------
वो बस गएँ है दिन में तो दिल हल्का हो गया,
ज्यों हाइड्रोजन भर गयी ,दिल के बलून में
आने लगी है साँसों से खुशनुमा ताजगी
ज्यों ओक्सिजन समां गयी हो मेरे खून में
उनको छुवा तो बिजली का करंट सा लगा
सूरज की गरमी आगई हो जैसे मून में
हायड्रोजन ,ओक्सिजन को बिजली ने छुवा
दिल पानी पानी हो गया ,इश्क के जूनून में
         मदन मोहन बहेती'घोटू'

भोजन सुंदरी !

      भोजन सुंदरी
-------------------------
तुम कोमल हो,नरम नरम
गुंथे हुए आटे के जैसी श्वेत वरन
काली काली सी जुल्फों में गोरा आनन्
गरम तवे पर सिकती हुई रोटियों जैसा
सुन्दर नाक समोसे जैसी,
दांत तुम्हारे
हैं पनीर के टुकड़े प्यारे
और मटर सी
मटर गश्तियाँ करती आँखे
आलू चापी कान,रूपसी!
 ,पापड़ से परिधान पहन कर जब हंसती हो
,एसा लगता है की किसीने ,
पका दाल अरहर की उसमे,
लहसुन की डाली बघार हो
तुम्हे देख कर भूख लग गयी ,
भूख मिटा दो ! भोजन सुंदरी!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

मैं -----

              मैं -----
अपने सुख दुःख चिंताओं का ,सारा बोझ मुझे दे दो तुम
एक दिवस की बात नहीं है ,ये सब रोज़ मुझे दे दो  तुम
सूनेपन में नींद न आये,तो मुझको बाँहों में ले लो
मै चूं तक भी नहीं करूँगा,जैसे चाहो ,वैसे खेलो
ये मेरा कोमल चिकना तन ,तुमको सुख देने खातिर है
जब भी चाहो,इससे खेलो ,हरदम सेवा में हाज़िर है
भूल जाओ वे सब बातें तुम,जिन्हें भुलाना अति मुश्किल है
मुझ पर सर रख कर सो जाओ ,यदि सुख जो करना हासिल है
रोज रात  सोवो मेरे संग ,सर तुम्हारा सहला ऊँगा
सुन्दर सुन्दर सपने देकर ,मन तुम्हारा बहलाऊँगा
मै साक्षी हूँ सूनेपन का,मै साक्षी हूँ मधुर मिलन का
एक मात्र चाहत हूँ मै ही,थके हुए तन ,भारी मन का
रोज रात रहता हूँ तुम संग ,पर न प्रियतमे ,न ही पिया हूँ
तुम्हारे सपनो का साथी ,मै तो तुम्हारा तकिया हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


मच्छरों ने


 मच्छरों ने
---------------
रात भर मुझको सताया मच्छरों ने
नींद से मुझको जगाया मच्छरों ने
मुहं ढका तो नींद ना आई मुझे,
मुहं उधेडा ,काट खाया मच्छरों ने
आते जाते गाल की ले चुम्मियां,
याद को तेरी दिलाया मच्छरों ने
रात भर मैंने बजाई तालियाँ,
गीत कुछ एसा सुनाया मच्छरों ने
तेरे खर्राटे  भले लगने लगे,
रात भर जब भिनभिनाया मच्छरों ने
सभी मच्छार्नियाँ  उमड़ी टूट कर,
जब अकेला मर्द पाया मच्छरों ने
करवटें ही मै बदलता रह गया
इस तरह कुछ गुदगुदाया मच्छरों ने
नहीं मारो, आपका ही खून हैं
इस तरह कुछ  गिड़ गिडाया मच्छरों ने

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

Saturday, April 16, 2011

रसोई घर में


मायक्रोवेव की तरह
तुम्हारी तरंगें
मेरे मन को इतना उद्वेलित कर देती है
की मेरे रोम रोम में
उर्जा का संचार हो जाता है
मेरे मन के प्रेशर कुकर में
जब तम्हारी ऊष्मा से
रक्त का दबाब बढ़ जाता है
तो सीटी सी बजने लगती है
मै गैस के चूल्हे सा
तुम्हारे प्यार के लायटर की चिंगारियों से
प्रज्वलित होता रहता हूँ
मै नान स्टिक तवे जैसा हूँ
जिससे तुम
कभी परांठा या डोसा बन
मिलती ,छिटकती रहती हो
मै तो चांवल और उड़द का वो घोल हूँ
जिसे तुम्हारे प्यार की स्टीम ने
स्वादिष्ट इडली जैसा बना दिया है
मै जूसर मिक्सर ग्रायिंदर की तरह
ज्यूस,चटनी, और पिसाई के लिए
अत्यंत उपयोगी उपकरण हूँ
तुमने अपने रूप और यौवन को
फ्रीजर में रखे हुए फलों की तरह
तरोताजा बना रखा है
तुम्हारे सुन्दर से मुखड़े पर
जब मुस्कान आती है
तो लगता है ,अरहर की दाल में
देशी घी का तड़का लग गया हो
आज रसोई घर की सब चीजे
तुम्हारी याद दिला रहीं हैं
तुम मैके से कब आओगी?

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

Friday, April 15, 2011

कोई मेरी पत्नी से सीखे

<h2>कोई मेरी बीबी से सीखे
-------------------------------------
बचे साबुन को नए से चिपका कर,
दो साबुनों की खुशबुओं का मजा उठाना
टूटी हुई झाड़ू की सूखी डंडियों  से
घर के फ्लावर पोट को सजाना
रात की बची हुई खिचड़ी से
सुबह स्वादिष्ट कटलेट बनाना
कोई मेरी बीबी से सीखे
घर और कपड़ो की सफाई के साथ
मेरे पर्स की भी सफाई करना
मुझ जैसे शेर पति को डरा कर
खुद एक काक्रोच से डरना
रोंग नंबर के फोन काल पर भी
घंटों तक लम्बी बातचीत करना
कोई मेरी बीबी से सीखे
पुरानी साडी को काट कर
पर्दा  या पेटीकोट  बनाना
सेल के चक्कर में,जरुरत से चौगुना
सामान खरीद कर के ले आना
मीठी मीठी बातें बना कर के
मेरी पॉकेट को ढीली करवाना
कोई मेरी बीबी से सीखे
टीवी पर सीरियल के साथ साथ
क्रिकेट की कमेंट्री सुनना
पुराने स्वेटर को उधेड़ कर
नए डिजाईन  में बुनना
मेरे पड़ोसिन की तारीफ करने पर
इर्षा से जलना ,भुनना
कोई मेरी बीबी से सीखे
खुद रूठ रूठ कर के
रूठे हुए पति को मनाना
चमचागिरी कर कर के
सास और ननद को पटाना
दूध का गिलास पिलाने के लिए
सोये हुए पति को जगाना
        कोई  मेरी पत्नी से सीखे

Tuesday, April 12, 2011

धूल में लट्ठ

      धूल में लट्ठ
------------------------
एक नव विवाहिता से पूछा उसकी सहेली ने
कैसी रही तुम्हारी सुहाग रात?
बतलाओ न सब बात
नव विवाहिता बोली शरमा कर
क्या बतलाऊ तुम्हे डियर
उनकी प्यार भरी बातों ने अमृत घोला
मैंने उनसे बस इतना बोला
मै चाहती हूँ,हमारे बेटा आये
बात सुन कर ये थोड़े मुस्काए
बोले बेटा हो या बेटी,
इसकी नहीं होती है गारंटी
इन बातों को अभी से क्या विचारना
ये तो होता है धूल में लट्ठ मारना
मुझे गुस्सा आ गया ,मुझे कहा धूल
ये थी उनकी भूल
और हम में झगडा हो गया
मै करवट बदल कर इधर सो गयी
वो करवट बदल कर उधर सो गया

मदन मोहन बहेती 'घोटू'



,नशे के लिए

 छलकते जाम से है लब तुम्हारे अंगूरी,
           नशीली है तुम्हारे नैन की चितवन चंचल
उम्र भर पीते रहो पर कभी न खाली हो
            तुम्हारा जिस्म है पूरी शराब की बोतल
प्यार से देख भी लेती हो नशा आता है,
             तेरे हाथों की छुवन काफी है नशे के लिए
तुम्हारी बातें नशीली है,साथ मदमाता,
             हमने छोड़ दी पीनी शराब ,नशे के  लिए
  
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ट्वेंटी-ट्वेंटी

    ट्वेंटी-ट्वेंटी
--------------------
विश्व कप के बाद
जब आया  आई पी  एल का ट्वेंटी ट्वेंटी
तो अपने चमचे से, बोले ये नेताजी
ये फिफ्टी फिफ्टी तो समझ में आता है
आधा तुम्हारा और आधा हमारा हो जाता है
पर ये ट्वेंटी ट्वेंटी क्या है?
हमारा बस ट्वेंटी परसेंट ,
तुम्हारा भी ट्वेंटी परसेंट ,
तो फिर ये बाकी सिक्सटी परसेंट किसका है?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र


  ,

Monday, April 11, 2011

नीम के पत्ते

   नीम के पत्ते
-------------------
घूँट कड़वे पी लियें है ,इतने अनजाने
नीम के पत्तों में ,स्वाद लगा है आने
                        १
कभी सुना करते थे ,गानों की मधुर तान
और सोया करते थे ,चैन से खूँटी तन
भूल गये वो  गाने   ,दूर  हुई वो ताने
अब तो बस मिलते है ,सुनने को बस ताने
मधुर सुर की आशा में,जीतें है, मस्ताने
नीम के पत्तो में ,स्वाद लगा है आने
                      2
बड़े बूढ़े सबका ही ,करते थे बहुत मान
कितनेही त्याग  किये,बुजुर्गों का कहा मान
मात पिता भक्ति के,बदल गये अब माने
सुने अपने दिल की या ,बात  उनकी हम माने
हम पर क्या गुजरी है,ये तो बस हम जाने
नीम के पत्तो में ,स्वाद लगा है आने
                      ३
प्रेम का मधुर मधु ,बरसता था बन बादल
था मिठास कुछ एसा ,खुशियाँ थी बस हर पल
बीत गये है बरसों ,प्यार को अब बरसे
अब मधु की मेह नहीं ,हम मिठास को तरसे
एसा है मधुमेह ,  मीठा ना दे खाने
नीम के पत्तो में ,स्वाद लगा है आने

मदन  मोहन  बाहेती 'घोटू'                         
नोयडा  उ.प्र
.

, बुजुर्गों से

 तुम कहते हो ,तुम बुजुर्ग हो,तुम में अनुभव भरा हुआ है
तुमने ही सींचा ,पाला है,वृक्ष तभी यह हरा हुआ है
पर अब तुम सूखे पत्ते हो ,नयी कोंपलों को खिलने दो
हम भी क्या क्या कर सकते है,मौका हमको भी मिलने दो
हम बूढें है, हम वरिष्ठ है,बंद करो, मत रोवो धोवो
खाओ,पीवो;रहो चैन से ,टी वी देख प्रेम से सोवो
खुद भी सोवो ,और चैन से ,अब तुम हमको भी सोने दो
हम निज बलबूते  निपटेंगे,जो भी होता है, होने दो
अरे पुराने कपड़ो के तो,बदले में आ जाते बरतन
और तुम खाली बर्तन जैसे,दिन भर करते रहते ,ठन ठन
बहुत दिनों तक झेल लिया है ,और झेल पाना है भारी
हरिद्वार या वृद्धाश्रम में,रहने की अब उमर तुम्हारी
        

Saturday, April 9, 2011

नेता निवेदन

नेता निवेदन
लोग कहते भ्रष्ट है
हमको ये कष्ट है
हम देश के नेता हैं
चुनाव के विजेता है
आप हमें यहाँ लाये है
वोट देकर जिताये है
चुनाव में जो लुटाएंगे
वो पैसे कहाँ से आयेगे?
कब जाये सत्ता छीन
मौका है जितने दिन
तुमसे ही वसूलेंगे
पद पाकर लूटेंगे
आज अगर ले लेंगे
कल तुमको ही देंगे
घूम घूम गावों में
अगले चुनावों में
बाटेंगे सब धन
वोट खरीदेंगे हम
होता ही है ऐसा
जनता का सब पैसा
फिर पाती है जनता
हम पाते बस सत्ता
सागर का जैसे जल
गर्मी में बन बादल
बारिश बन आता है
सागर में जाता है
ये है कुदरत का चक्कर
तोहमत फिर क्यों हम पर
कि हम निकृष्ट है
हमको ये कष्ट है
लोग कहते भ्रष्ट है
अच्छा इरादा था
चुनावी वादा था
लायेंगे खुश हाली
वो हमने तो पा ली
सुधरेंगे सबके दिन
पर लगता है टाइम
रोकेंगे महंगाई
रोक राखी है भाई
इसको ना हटने देंगे
भाव ना घटने देंगे
वादा था रक्षा का
धन कि सुरक्षा का
हमने निभाया है
जो भी कमाया है
है सुरक्षित हाथों में
स्विस बेंक खातों में
नोजवानो का उत्थान
करने की ली है ठान
नौजवान है बेटा
बनने को है नेता
जब मौका पायेगा
मंत्री बन जायेगा
बढा रहें है कदम
प्रगति के पथ पर हम
लाभ लो अवसर के
क्यों आलोचना कर के
समय करतें नष्ट है
हमको ये कष्ट है
लोग कहते भ्रष्ट है

MADAN MOHAN BAAHETI'GHOTOO'

नेता निवेदन

 लोग कहते भ्रष्ट है
हमको ये कष्ट है
हम देश के नेता हैं
चुनाव के विजेता है
आप हमें यहाँ लाये है
वोट देकर जिताये है
चुनाव में जो लुटाएंगे
वो पैसे कहाँ से आयेगे?
कब जाये सत्ता छीन
मौका है जितने दिन
तुमसे ही वसूलेंगे
पद पाकर लूटेंगे
आज अगर ले लेंगे
कल तुमको ही देंगे
घूम घूम गावों में
अगले चुनावों में
बाटेंगे सब धन
वोट खरीदेंगे हम
होता ही है ऐसा
जनता का सब पैसा
फिर पाती है जनता
हम पाते बस सत्ता
सागर का जैसे जल
गर्मी में बन बादल
बारिश बन आता है
सागर में जाता है
ये है कुदरत का चक्कर
तोहमत फिर क्यों हम पर
कि हम निकृष्ट है
हमको ये कष्ट है
लोग कहते भ्रष्ट है
अच्छा इरादा था
चुनावी वादा था
लायेंगे खुश हाली
वो हमने तो पा ली
सुधरेंगे सबके दिन
पर लगता है टाइम
रोकेंगे महंगाई
रोक राखी है भाई
इसको ना हटने देंगे
भाव ना घटने देंगे
वादा था रक्षा का
धन कि सुरक्षा का
हमने निभाया है
जो भी कमाया है
है सुरक्षित हाथों में
स्विस बेंक खातों में
नोजवानो का उत्थान
करने की ली है ठान
नौजवान है बेटा
बनने को है नेता
जब मौका पायेगा
मंत्री बन जायेगा
बढा रहें है कदम
प्रगति के पथ पर हम
लाभ लो अवसर के
क्यों आलोचना कर के
समय करतें नष्ट है
हमको ये कष्ट है
लोग कहते भ्रष्ट है


Tuesday, April 5, 2011

जीवन दर्शन -बुढ़ापे का

जीवन दर्शन -बुढ़ापे का
जब जब नयी पीढ़ी
चढ़े सफलता की सीढ़ी
         आओ हम उन्हें  प्रोत्साहन दें
पीढ़ियों का अंतर
तो बना ही रहेगा उमर भर
         उस पर ना ध्यान दें
वो अपने ढंग से
जिंदगी जीना चाहतें है,
         कोई हर्ज नहीं
क्या बच्चों की खुशियों में
सहयोग  देना
       बुजुर्गों का फर्ज नहीं
ये  सच है की उनके रस्ते,
और उनकी सोच
       तुम्हारी सोच से है भिन्न
क्यों लादते हो अपने विचार उन पर,
और न मानने पर,
        क्यों होते हो खिन्न
हर परिंदा,उड़ना सीखने पर,
         अपने हिसाब से उड़ता है
और इसे अपनी उपेक्षा समझ
          तुम्हारा मन क्यों कुढ़ता है?
किसी से अपेक्षा मत रखो ,
वर्ना अपेक्षा पूरी न होने पर ,
            दिल टूट जाता है
तुम्हारी अच्छी सलाहों को,
अपने काम में दखल समझ ,
        अपना रूठ जाता है
तुम अपने ढंग से जियो,
और उन्हें जीने दो,
            उनके ढंग से
तनाव छोड़ ,अपनी बाकी जिंदगी का,
भरपूर मजा लो,
            ख़ुशी और उमंग से
Er मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, April 4, 2011

चोंचले

     चोंचले
एक रेस्तरां में
आया खाना खाने
एक बढती उम्र का कपल
बेयरे ने पूछा 'क्या लाऊं सर'
बुजुर्ग पति ने, एक प्लेट बैंगन का भरता,
और दो तंदूरी मिस्सी रोटी का ऑर्डर दिया
इस पर प्रोढ़ा पत्नी ने की ,ये प्रतिक्रिया
'खाते थे रोज प्रेम  से जो दाल माखनी
अब मांगते है भरता,खुद भरते से हो चले
तन दूरी भी चाहिए,मिस सी भी चाहिए
अच्छे लगे हैं क्या ये बुढ़ापे में चोंचले?

                                          

उम्मीद

   उम्मीद
कहते है ,उम्मीद के सहारे
 दुनिया चल रही है
और ये भी कहा जाता है
किसी से कोई उम्मीद मत रखो,
क्योंकि उम्मीद पूरी नहीं होने पर
दिल टूट जाता है
कुछ भी हो,मैंने अपनी उम्मीदों को,
एक गमले में,
खिले हुए फूलों के संग सजा रखा है
इस उम्मीद से ,
की कभी न कभी तो
मेरी उम्मीदें विकसेगी ,पूरी होंगी
पर शायद मै गलत हूँ,
क्योंकि उम्मीद पूरा करने के लिए
सिर्फ आस ही नहीं ,
करना पड़ता है प्रयास
और प्रयास करने पर ही
मेरी उम्मीदें पूरी होंगी,
एसा है मेरा विश्वास
   मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


तेरा मेरा प्यार नया है

तेरा मेरा प्यार नया है
अपना ये अभिसार नया है
यूँ तो हम मिलते रहते है
मिलना पर हर बार नया है
गुन गुन गुंजन करता भंवरा
देता रहता कली पर पहरा
कली को जब विकसा पता है
रस पीता,चुप हो जाता है
प्रेम भरा संसार नया है
तेरा मेरा प्यार नया है
सूर्य रश्मियों ने चमकाया
पुरवैया ने आ थपकाया
तुमने ज्यों ही आँखें खोली ,
तो सारा कानन महकाया
यौवन का उपहार नया है
तेरा मेरा प्यार नया है
मधुमख्खी सा चुम्बन मेरा
घूंट घूंट रस पीता तेरा
मधुकोष में कर मधु संचन
रसमय रहता सारा जीवन
सपनो का आकार नया  है
तेरा मेरा प्यार नया है
       Er  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, April 1, 2011

कृष्ण प्रश्न-यक्ष प्रश्न

        
प्यारे कान्हा
सच बतलाना
याद कभी तो आता होगा,
वो राधा का साथ सुहाना
राधा, वो बरसाने वाली
प्रेमसुधा बरसाने वाली
पहला पहला प्यार तुम्हारा
बचपन  वाला
हे मनमोहन
तुमने चोरी करते करते दधी और माखन
चुरा लिया था माखन जैसी राधा का मन
हे गिरधारी
जब भीगी थी मसें तुम्हारी
पहली बार देख कर जिसको,
उठी प्यार की थी चिंगारी
क्या तुम्हारा बांकापन था
जिसे देख कर फिसल गया राधा का मन था
रास बिहारी
वो थी मुरली तान तुम्हारी
सुन कर जिसे चली आती थी
बेसुध सी राधा बेचारी
धीरे धीरे बीज प्यार का पनपा होगा
तुम दोनों का ह्रदय साथ में धड़का होगा
राधा के कोमल कपोल को,
जिस दिन तुमने छुआ होगा
सहम गयी होगी बेचारी
मन में कुछ कुछ हुआ होगा
और शरद पूनम के दिन जब
तुमने रास रचाया होगा
राधा का तनमन कितना हर्षाया होगा
कहते पहला प्यार भुलाया ना जा पाता
तुम्हे अभी भी याद कभी आती है राधा?
नटवर नागर!
काहे फोड़ा करते थे गोपी के गागर?
और एक दिन जमुना तीरे से
पानी में स्नान कर रही सभी गोपियों ,
के थे वस्त्र चुराए चुपके से ,धीरे से
ये तुम्हारी  क्रीडा थी या उत्कंठा थी
या फिर थी नैनों की तृष्णा?
प्यारे कृष्णा
अधर तुम्हारे लगी हुई जून्ठी मुरली को
जब राधा ने अपने अधरों से छुआ था
तुमको ख़ुशी हुई थी या फिर द्वेष हुआ था?
हे ब्रजेश इतना बतलाना
था स्वादिष्ट कौनसा खाना?
राधा की मटकी को तोड़ चुराया मख्खन
या फिर पटरानी के हाथ बनाये व्यंजन?
हे नन्द नंदन !सच सच बात बताना मन की
कहाँ शांति मिलती थी तुमको सबसे ज्यादा,
रानी के संग राजमहल में
या राधा संग ,कुञ्ज गली में ,वृन्दावन की?
हे मथुरेश्वर!
कौन मधुर था सबसे प्यारा?
उन सोलह हजार एक सौ आठ
,रानियों के संग करना रमण तुम्हारा
या बंशी वट,जमुना तीरे,
राधा के संग रास रचना प्यारा प्यारा
हे गोपाला!
जिस दिन गोकुल छोड़ अचानक,
चले गए थे तुम जब मथुरा
गोप गोपियाँ, नन्द यशोदा,सखियाँ, राधा
सभी दुखी थे ,
क्या तुमको भी लगा था बुरा?
और फिर जहाँ बिताया बचपन
वापस कभी नहीं लौटे तुम
माता पिता प्रेमिका ,सारे संगी साथी
कोई तुमको याद ना आया
सारे रिश्ते नाते जैसे  झूठीं माया
बेगानापन निष्ठुरता थी या फिर क्या था?
क्या गीता का ज्ञान यहीं से शुरू हुआ था?
हे योगेश्वर!
मै मानव हूँ,और तुम थे अवतार धरे
लेकिन कितनी हे बातें हैं,
जो हैं मेरी समझ से परे
समय मिले तो सुलझा देना मेरी शंका
ताकि दूर हो जाए सब भ्रम मेरे मन का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'