Monday, January 28, 2019

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अनमना मन 

स्मृतियों के सघन वन में ,
छा रहा कोहरा घना है 
आज मन क्यों अनमना है
 
नहीं कुछ स्पष्ट दिखता 
मन कहीं भी नहीं टिकता 
उमड़ती है भावनायें ,
मगर कुछ कहना मना है 
आज मन क्यों अनमना है 

है अजब सी कुलबुलाहट 
कोई अनहोनी की आहट 
आँख का हर एक कोना ,
आंसुवों से क्यों सना है 
आज मन क्यों अनमना है 

बड़ा पगला ये दीवाना 
टूट ,जुड़ जाता सयाना 
पता ही लगता नहीं ये ,
कौन माटी से बना है 
आज मन क्यों अनमना है 

रौशनी कुछ आस की है 
डोर एक विश्वास की है 
भावनाएं जो प्रबल हो ,
पूर्ण होती  कामना है 
आज मन क्यों अनमना है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तिल 

ये मनचले तिल 
होते है बड़े कातिल
 यहाँ,वहां ,
जहां मन चाहा ,बैठ जाते है 
कभी गालों पर ,
कभी होठों पर ,
उभर कर ,इतराते हुए ,ऐंठ जाते है 
इन तिलों में तेल नहीं होता है ,
फिर भी ये ललनाओं की लुनाई बढ़ा देते है 
भले ही ये दिखने में छोटे और काले होते है ,
पर सोने पे सुहागा बन कर ,
हुस्न पर चार चाँद चढ़ा देते है 
ये पिछले जन्म के आशिक़ों की ,
अधूरी तमन्नाओं  के दिलजले निशान है  
जो माशूकाओं के जिस्म की ,
मन चाही जगहों पर ,हो जाते विराजमान है
कोई चुंबन का प्यासा प्रेमी ,
अगले जन्म में प्रेमिका के होठों पर ,
तिल बन कर उभरता है 
कोई रूप का दीवाना ,
प्रेमिका के गालों से चिपट ,
ब्यूटीस्पॉट बन कर सजता है 
ये   तिल ,माचिस की तीली की तरह ,
जरा सा घिस दो ,ऐसी लपट देते  है 
कि दीवानो के दिल को भस्म कर देते  है 
तीली हो या तिल ,
दोनों माहिर होते है जलाने में 
पर असल में ,
तिल  काम आते है खाने में 
गजक रेवड़ी आदि के रूप में,
 बड़े प्रेम से खाये जाते है   
और काले तिल तो पूजन,हवन 
और अन्य कर्मकांड में काम में लाये जाते है 
ये वो तिल है जिनमे तेल होता है 
वरना जिस्म पर उगे तिलों का तो ,
बस दिल जलाने का खेल होता है 
तो जाइये 
सर्दी में किसी के जिस्म पर ,
तिलों को देख कर ,
सर्द  आहें न भरिये ,
तिल की गजक रेवड़ी खाइये 
और मुस्कराइये  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा 

ठोकर खाखाऔर संभल संभल ,
                  अनुभव में इजाफा होता है 
होता है हमें नुक्सान कभी 
                   ,तो कभी मुनाफा  होता है 
खट्टे ,मीठे,कड़वे ,खारे ,
                    कितने ही तजुर्बे  होते है ,
बूढ़े होंगे तब समझोगे ,
                   क्या चीज बुढ़ापा  होता है 

घोटू 
श्री पत्नी आराधना मंत्रं  

 या देवी सर्वभूतेषू ,पत्नी रूपेण  संस्थिता  
नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै ,नमोनमः 

सर्व मंगलमांगल्ये ,प्रिये सर्वार्थ साधिके 
शरण्ये पत्नीम देवी ,प्राणबल्लभे ,नमोस्तुते 

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं पत्नीम हृदयेश्वरी  प्रसीद: , 
प्रसीद:श्रीं ह्रीं श्रीं प्रियतमे  देवी नमः 
:

कर मध्ये रचितम मेंहंदी ,कराग्रे नैलपोलिशम 
कर मूले स्वर्ण कंगनम च ,करोति पत्नी कर दर्शनम 

पत्नी देवी यदि प्रसन्नम ,प्रसन्नम ,प्रसन्नम सर्व देवता 
मिष्ठान प्राप्तिं नित्यं , शान्ति व्याप्तं  सर्वथा 


मदनमोहन बाहेती 'घोटू '  

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