प्रकृति का चक्र -बुढ़ापा
यह प्रकृति का चक्र बुढ़ापा ,इसको कोई रोक ना पाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ,ये आया
प्राणायाम किया कसरत की ,सुबह शाम ,मैं भागा ,दौड़ा
खान पान पर किया नियंत्रण मीठा और तला सब छोड़ा
रोज रोज जिम में जाकर के ,बहा पसीना ,ये कोशिश की ,
मेरे तन पर ,चढ़ ना पाए ,चर्बी और मोटापा थोड़ा
मैंने सभी प्रयास कर लिए
भूखे रह उपवास कर लिए
तरह तरह के योगआसन कर ,अपने तन को बहुत सताया
लाख कोशिशें की ,ना आये, पर जब आना था ये आया
कामनियों की संगत छोड़ी ,भले कामनाएं ना छूटी
मैं अब भी जवान हूँ,मन को ,देता रहा तसल्ली झूंठी
लेकिन तन में धीरे धीरे ,पैठ बनाता रहा बुढ़ापा ,
किया भले ही च्यवनप्राश का सेवन ,खाई जड़ी और बूटी
मैंने स्वर्ण भस्म भी खाई
खिली न पर काया मुरझाई
किये सभी उपचार लगन से ,लोगों ने जो भी बतलाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ,ये आया
अब जल्दी आती थकान है ,बात बात होती झुंझलाहट
कंचन काया पिघल रही है ,तनी त्वचा में है कुम्हलाहट
तन का जोश हुआ सब गायब ,और व्याधियां आसपास सब ,
याददाश्त कमजोर हो रही ,वृद्धावस्था की ये आहट
मन में रहती सदा विकलता
अब बच्चों पर रौब न चलता
इतनी जल्दी भूल गए सब ,मेरा इतना करा कराया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ये आया
बेहतर होगा खुल्ले दिल से ,करें बुढ़ापे का हम स्वागत
बहुत कर लिया सब के खातिर ,अब अपने से करें मोहब्बत
काम धाम की तज चिंताएं ,मस्ती काटें ,मौज मनाएं
सैर सपाटा करके देखें ,दुनिया में है कितनी रंगत
अपनी मनचाही सब करले
जीवन को खुशियों से भर लें
अपने पर भी खर्च करें हम ,जीवन में इतना जो कमाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ये आया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '