तुमने ऐसी आग लगा दी
मै पग पग रख ,धीरे चलती
तुम चलते हो जल्दी ,जल्दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मंद आंच सी, मै हूँ जलती
और तुम तो हो लपट दहकती
तुमने अपनी चिंगारी से ,तन मन में है आग लगा दी
ऊष्मा है तो मेघ उठेंगे
घुमुड़ घुमुड़ कर वो गरजेंगे
रह रह कर बिजली कड़केगी ,
तप्त धरा पर फिर बरसेंगे
बहुत चाह थी मेरे मन की
भीगूं रिमझिम में सावन की
लेकिन तुम तो ऐसे बरसे,प्रेम झड़ी ,घनघोर लगा दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मै हूँ पानी,तुम हो चन्दन
हम मिल जुल ,करते आराधन
तुम घिस घिस इस तरह घुल गये
महक गया तन मन का आँगन
चाहत थी तन में खुशबू भर
चढूँ देवता के मस्तक पर
तुम को अर्पित करके सब कुछ,जीवन की बगिया महका दी
मै बस चार कदम चल पायी ,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Thursday, February 21, 2013
शिशु की भाषा
शिशु की भाषा
नन्हे शिशु की,होती बस दो भाषा है
एक तो वो हँसता है ,एक वो रोता है
इन्ही दो भाषाओँ में वो,सब कुछ व्यक्त किया करता है
इन भाषाओँ की ,कोई लिपि नहीं होती,
और इन्हें समझने के लिए ,
कोई अक्षर या भाषा के ज्ञान की जरुरत नहीं होती
बच्चा जब हँसता है ,
किलकारियां भरता है ,
तो सभी के चेहरे पर खुशियाँ छाती है
उसकी मुस्कान की भाषा ,
सबको समझ में आ जाती है
पर बच्चा जब रोता है,
अपने कोमल से कपोलों को आंसूं से भिगोता है
सारा घर परेशान होता है
क्योंकि ये भाषा ,हर एक को समझ नहीं आती है
सिर्फ एक माँ है ,जो कि समझ पाती है
कि उसे भूख लगी है या पेट में दर्द है
या उसके कपडे गीले हो गए है और सर्द है
अपने कलेजे के टुकड़े की ये दो भाषाएँ
पूर्ण रूप से जिन्हें ,समझ सकती है बस मायें
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नन्हे शिशु की,होती बस दो भाषा है
एक तो वो हँसता है ,एक वो रोता है
इन्ही दो भाषाओँ में वो,सब कुछ व्यक्त किया करता है
इन भाषाओँ की ,कोई लिपि नहीं होती,
और इन्हें समझने के लिए ,
कोई अक्षर या भाषा के ज्ञान की जरुरत नहीं होती
बच्चा जब हँसता है ,
किलकारियां भरता है ,
तो सभी के चेहरे पर खुशियाँ छाती है
उसकी मुस्कान की भाषा ,
सबको समझ में आ जाती है
पर बच्चा जब रोता है,
अपने कोमल से कपोलों को आंसूं से भिगोता है
सारा घर परेशान होता है
क्योंकि ये भाषा ,हर एक को समझ नहीं आती है
सिर्फ एक माँ है ,जो कि समझ पाती है
कि उसे भूख लगी है या पेट में दर्द है
या उसके कपडे गीले हो गए है और सर्द है
अपने कलेजे के टुकड़े की ये दो भाषाएँ
पूर्ण रूप से जिन्हें ,समझ सकती है बस मायें
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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