फटा हुआ बनियान न देखा
चेहरे पर मुस्कान भले पर,
कितना घायल है अन्तर तर
अपने मन की पीर छुपाये,
एक टूटा इंसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा,
फटा हुआ बनियान न देखा
सिर्फ आवरण देखा लेकिन ,
अंदर घुटता मन ना देखा
ढोलक की थापों पर नाचे,
उसका खालीपन ना देखा
सुन्दर ,मोहक ,बिछे गलीचे
कितनी गर्द छुपी है नीचे ,
शायद तुम्हे पता भी होगा ,
पर बन कर अनजान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
फटा हुआ बनियान न देखा
सावन की बूंदों में भीजे ,
जब रिमझिम कर बरसा पानी
फटा कलेजा जिस बादल का ,
तुमने उसकी पीर न जानी
जिस तरु से हो पत्ते बिछड़े
जिसका दिल हो टुकड़े टुकड़े ,
तुमको सिर्फ बसंत दिखी पर ,
पतझड़ का अवसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
फटा हुआ बनियान न देखा
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
चेहरे पर मुस्कान भले पर,
कितना घायल है अन्तर तर
अपने मन की पीर छुपाये,
एक टूटा इंसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा,
फटा हुआ बनियान न देखा
सिर्फ आवरण देखा लेकिन ,
अंदर घुटता मन ना देखा
ढोलक की थापों पर नाचे,
उसका खालीपन ना देखा
सुन्दर ,मोहक ,बिछे गलीचे
कितनी गर्द छुपी है नीचे ,
शायद तुम्हे पता भी होगा ,
पर बन कर अनजान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
फटा हुआ बनियान न देखा
सावन की बूंदों में भीजे ,
जब रिमझिम कर बरसा पानी
फटा कलेजा जिस बादल का ,
तुमने उसकी पीर न जानी
जिस तरु से हो पत्ते बिछड़े
जिसका दिल हो टुकड़े टुकड़े ,
तुमको सिर्फ बसंत दिखी पर ,
पतझड़ का अवसान न देखा
तुमने उजला कुरता देखा ,
फटा हुआ बनियान न देखा
मदन मोहन बाहेती'घोटू '