Monday, August 15, 2011

कौन हो तुम ?

     कौन हो तुम
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देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार झंकृत
रूप सुन्दर परी सा धर
आई अम्बर से उतर कर
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन नशीली
भंगिमाएं मन लुभाती
तुम सुरा सी मदमदाती
मोहिनी , सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी हो
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल मन हमारा
रूप का तुम हो खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
खोल कर सब द्वार मन के
तुम्हारे संग मधुमिलन के
स्वप्न प्यारे ,सजाता ,मै
क्योंकि लगता विधाता ने,
तुम्हे फुर्सत से गढा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम,अब बताओ ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

भ्रम

     भ्रम
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भ्रमर  को भ्रम था कली को प्यार उससे,
                   मगर कलिका सोचती थी भ्रमर काला
जिंदगी में मिले साथी कोई सुन्दर,
                   चाह थी यह और भ्रमर को त्याग डाला
और पवन संग रही भिरती,डोलती, वह,
                     मिलन के सपने सजाये, बड़ी आतुर
और आवारा पवन सब खुशबू चुरा कर,
                     मौज लेकर जवानी की हो गया फुर
और अब वह सोच कर के यह दुखी है,
                      पवन से तो भ्रमर ही ज्यादा भला था
दिये उसने कई चुम्बन के मधुर क्षण,
                     भले काला और थोडा मनचला था
 भ्रमर भ्रम में था की वो कलिका भ्रमित थी,
                     चाह में रंग रूप के उलझी  रही वो
क्योंकि काला था रसिक प्रेमी भ्रमर वो,

                       त्याग कर के अब बहुत पछता रही वो
देख कर रंग रूप केवल बाहरी तुम,
                        अहम निर्णय जिन्दगी  के नहीं लेना
कई प्रेमी मिलेंगे,रस चूस लेंगे,
                         मगर सच्चे प्यार को ठुकरा न देना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'