कौन हो तुम
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देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार झंकृत
रूप सुन्दर परी सा धर
आई अम्बर से उतर कर
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन नशीली
भंगिमाएं मन लुभाती
तुम सुरा सी मदमदाती
मोहिनी , सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी हो
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल मन हमारा
रूप का तुम हो खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
खोल कर सब द्वार मन के
तुम्हारे संग मधुमिलन के
स्वप्न प्यारे ,सजाता ,मै
क्योंकि लगता विधाता ने,
तुम्हे फुर्सत से गढा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम,अब बताओ ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार झंकृत
रूप सुन्दर परी सा धर
आई अम्बर से उतर कर
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन नशीली
भंगिमाएं मन लुभाती
तुम सुरा सी मदमदाती
मोहिनी , सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी हो
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल मन हमारा
रूप का तुम हो खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
खोल कर सब द्वार मन के
तुम्हारे संग मधुमिलन के
स्वप्न प्यारे ,सजाता ,मै
क्योंकि लगता विधाता ने,
तुम्हे फुर्सत से गढा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम,अब बताओ ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'