Wednesday, December 21, 2011

अनिवासी भारतीय

 अनिवासी  भारतीय
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पहाड़,जंगल और गावों को लांघते हुए,
अपने देश की माटी की खुशबू से महकती नदियाँ,
रत्नाकर  की विशालता देख ,
उछलती कूदती ,ख़ुशी ख़ुशी,
समंदर में मिल तो जाती है
पर उन्हें जब,
अपने गाँव और देश की याद आती है,
तो उनकी आत्मा,
समंदर की लहरों की तरह,
बार बार उछल कर,
किनारे की माटी को,
छूने को छटपटाती है
पर जाने क्या विवशता है,
फिर से समुन्दर में विलीन हो जाती है
विदेशों में बसे,
अनिवासी भारतियों का मन भी,
कुछ इसी तरह लाचार है
जब की उन्हें भी,नदियों की तरह,
अपनी माटी से प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

(ब्राज़ील से यह रचना पोस्ट  कर रहा हूँ-
यहाँ बसे कुछ भारतियों की भावनाये प्रस्तुत करने की
कोशिश है )

Monday, December 19, 2011

रसोई घर-सबसे बड़ी पाठशाला

रसोई घर-सबसे बड़ी पाठशाला
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रसोईघर, सबसे बड़ी पाठशाला है
जहाँ,हर कदम आपको ज्ञान मिलता  निराला है
आपने ,ठीक से गर खाना बनाना सीख लिया
तो समझ लो,सारे जहाँ को जीत लिया
रोटी बनाने की कला,जिंदगी जीने की कला जैसी है  होती
क्योंकि आटे की और पानी की,
 होती है अलग अलग संस्कृती
जैसे सास बहू की या पति पत्नी की
 जब तक पानी  की संस्कृती का,
आटे की संस्कृती से,
सही अनुपात में,
सही ढंग से समावेश नहीं होता
आटा सही ढंग से नहीं गुन्धता है
कई बार जब पानी की संस्कृती ,
ज्यादा जोर मारती है
तो आटा गीला हो जाता है
और किये कराये पर पलीता फिर जाता है
आटा गुथने के बाद,
रोटी बेलना भी एक कला है
प्यार का पलेथन हो,
तो रोटी चकले से नहीं चिपकती
अनुशाशन के बेलन का दबाब,
यदि सब तरफ बराबर हो,
तो रोटियां गोल और समतल बिलती है
और ऐसी गोल रोटियां,फूलती भी अच्छी है
देखने और खाने में भी,बड़ी स्वाद होती है
अगर हम एक तरफ ज्यादा दबाब देंगे ,
और दूसरी  तरफ कम
तो रोटियां ,न तो गोल बनेगी,न फूलेंगी,
बस आपकी फूहड़ता का ही परिचय देंगी
गृहस्थी के गर्म तवे पर,
रोटियां सेकना भी,एक कला जैसी है
समुचित दबाब और हर तरफ बराबर सिकाई,
रोटी को अच्छा फुला देती है
और थोड़ी सी भी लापवाही,
आपके हाथों को,गरम तवे से,
चिपका  कर जला देती है
 जीवन की तरह,रसोईघर में भी,
कई मसाले होते है,
जिनकी सबकी प्रकृति  भिन्न भिन्न है 
कोई तीखा,कोई मीठा,कोई चटपटा या नमकीन है
सही अनुपात में ,सही ढंग से,
मसालों का इस्तेमाल
खाने को बना देता है लज़ीज़ और बेमिसाल
इसी तरह जीवन के रसों का ,सही समन्वय
जीवन को बनाता है,स्वादिष्ट और सुखमय
अगर आपको,आलू की तरह,
हर सब्जी के साथ मिलकर,
उसका स्वाद बढ़ने का आटा है हुनर
तो समझ लो ,गृहस्थी की पाकशाला में,
आपका वर्चस्व कायम रहेगा उम्र भर
और आपका घर ,
सुख और शांति से महकने वाला है
जीवन जीने की यही कला है,
और रसोईघर सबसे बड़ी पाठशाला है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, December 17, 2011

नहीं नामुमकिन कुछ भी

पूजना पाषाण का,पाषाण युग से चल रहा,
पुजते पुजते बन गए ,पाषाण भी है देवता
ये जो नदियाँ बह रही है ,पहाड़ो के बीच से,
चीर  कर पत्थर को पानी ने बनाया रास्ता
आदमी को कोशिशें ,करना निरंतर चाहिये,
रस्सियाँ भी पत्थरो पर ,बना देती है निशां
प्यार का अपने प्रदर्शन,करो तुम करते रहो,
एक दिन तो आप पर ,तकदीर होगी  मेहरबां
नहीं नामुमकिन है कुछ भी,अगर हो सच्ची लगन
आदमी की बाजुओं में ,हो अगर थोडा सा दम
समंदर के पानी पर जब धूप की पड़ती किरण
बादलों में बदल जाता,छोड़ देता खारापन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 15, 2011

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
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करोड़ों  के पास खाने को नहीं,
                 और नेता करोड़ों में खेलते
झूंठे झूंठे वादों की बरसात कर,
                 करोड़ों की भावना से खेलते
करोड़ों की लूट,घोटाले कई,
                  करोड़ों स्विस बेंक में इनके जमा
पेट फिर भी इनका भरता ही नहीं,
                 लूटने का दौर अब भी ना थमा
  सह लिया है बहुत,अब विद्रोह के,
                  लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
क्रांति का तुमने बजाय है बिगुल,
                 करोड़ों, अन्ना,तुम्हारे साथ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

Wednesday, December 14, 2011

शिकवा-शिकायत

शिकवा-शिकायत
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देख कर अपने पति की बेरुखी,
                   करी पत्नी ने शिकायत इस तरह
हम से अच्छे तुम्हारे 'डॉग' है,
                  घुमाते हो संग जिनको हर सुबह
गाजरों का अगर हलवा चाहिये,
                   गाजरों को पहले किस करना पड़े,
इन तुम्हारे गोभियों के फूल से,
                   भला गुलदस्ता सजेगा किस तरह
सर्दियों में जो अगर हो नहाना,
                    बाल्टी में गर्म पानी चाहिये,
छत पे जाने का तुम्हारा मन नहीं,
                   धूप में तन फिर सिकेगा किस तरह
झिझकते हो मिलाने में भी नज़र,
                    और करना चाहते हो आशिकी,
ये नहीं है सेज केवल फूल की,
                    मिलते पत्थर भी है मजनू की तरह
तड़फते रहते हो यूं किस के लिए,
                   होंश उड़ जाते है किस को देख कर,
किसलिए फिर अब तलक ना 'किस' लिए,
                  प्यार होता है भला क्या इस तरह
कर रखी है बंद सारी बत्तियां ,
                  चाहते हो चाँद को तुम देखना,
छूटती तुमसे रजाई ही नहीं,
                   चाँद का दीदार होगा किस तरह

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बदनसीबी

        बदनसीबी
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मुफलिसी की मार कुछ ऐसी पड़ी,
               भूख से बदहाल था सारा बदन
सोचा जाए,धूप खायें,बैठ कर,
               कुछ तो खाया,सोच कर बहलेगा मन
बेमुरव्वत सूर्य भी उस रोज तो,
               देख कर आँखें चुराने लग गया
छुप गया वो बादलों की ओट में,
                बेरुखी ऐसी  दिखाने लग गया   
फिर ये सोचा,हवायें ही खाए हम,
                गरम ना तो चलो ठंडी ही सही
देख हमको वृक्ष ,पत्ते,थम गए,
                 आस खाने की हवा भी ना रही
बहुत ढूँढा,कुछ न खाने को मिला,
                 यही था तकदीर में ,गम खा लिया
प्यास से था हलक सूखा पड़ा ,
                 आसुओं को पिया,मन बहला लिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, December 13, 2011

,फेंका जो पत्थर तो हमने फल दिये

आपने हमको बुलाया,आगये,आपने दुत्कार दी,हम चल दिये
हम तो है वो पेड़ जिस पर आपने,फेंका जो पत्थर तो हमने फल दिये
फलो,फूलो ,और हरदम खुश रहो,हमने आशीर्वाद ये हर पल दिये
भले ही हमको सताया,तंग किया,भृकुटियों पर नहीं हमने बल दिये
सीख चलना,थाम उंगली हमारी,अंगूठा हमको दिखा कर चल दिये
क्या पता था कि ढकेंगे उसी को ,सूर्य ने तप कर के जो बादल दिये
जब तलक था तेल हम जलते रहे,दूर अंधियारे सभी ,जल जल किये
हमको ये संतोष है कि आपने,हमको खुशियों के कभी दो पल दिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



मैंने तो अपने इस घर में---,

मैंने तो अपने इस घर में---,
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मैंने तो अपने इस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा
खुशियों को भी हँसता देखा,तन्हाई को बसता देखा 
उगते सूरज की किरणों से,मेरा घर रोशन होता था
फिर दोपहरी में धूप भरा,सारा घर आँगन होता था  
बगिया में खिलते फूलों की ,खुशबू इसको महकाती थी
हर सुबह पंछियों के कलरव की चहक इसे चहकाती थी
आती थी रोज रसोई से,सोंधी खुशबू पकवानों की
रौनक सी रहती थी हरदम,आते जाते मेहमानों की
उंगली पकडे ,नन्ही पोती,जाती थी स्कूल ,ले बस्ता
फिर नन्हा सा पोता आया,महका घर का ये गुलदस्ता
नन्हे मुस्काते बच्चों की,मीठी बातें,चंचल चंचल
उनकी प्यारी प्यारी जिद्दें,नन्हे क़दमों की चहल पहल
वो दिन कितने मनभावन थे,सुख शांति  से हमने जीये
होली पर रंग बिखरते थे,दीवाली पर जलते दीये
लेकिन फिर इसी नज़र लगी,क्या हुआ किसे,क्या बतलाये
जिस जगह गुलाब महकते थे,केक्टस के कांटे उग  आये
वो प्यार मोहब्बत की खुशबू,नफरत में आकर बदल गयी
हो गयी ख़ुशी सब छिन्न भिन्न,मेरी दुनिया ही बदल गयी
कुछ गलतफहमियां ,बहम और कुछ अहम आ गए हर मन में
अलगाववाद की दीवारें, आ खड़ी हो गयी आँगन में
हो गए अलग ,दिल के टुकड़े,जीवन में और बचा क्या था
जिस घर में रौनक रहती थी,वो सूना  सूना लगता था
उस घर के हर कोने,आँगन में,याद पुरानी बसती थी 
देखें फिर से ,रौनक,मस्ती,ये आँखें बहुत तरसती थी
दो चार बरस तन्हाई में,बस काट दिये  सहमे सहमे
मन मुश्किल से लगता था उस सूने सूने से घर में
तन्हाई देने लगी चुभन,और मन में बसने लगी पीड़
वह नीड़ छोड़ कर मैंने भी ,फिर बसा लिया निज नया नीड़
जब धीरज भी दे गया दगा,आशाओं ने दिल तोड़ दिया
थी घुटन,बहुत भारी मन से,मैंने अपना घर छोड़ दिया
देखी फूलों की मुस्काने, फिर पतझड़ भी होता देखा
मैंने तो अपने उस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

Monday, December 12, 2011

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे
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छोड़ नफरत,बीज बोओ प्यार के,
चमन में कुछ फूल खिल ही जायेगे
पत्थरों के कालेजों में मोम के,
चंद कतरे तुम्हे मिल ही जायेंगे
समर्पण की सुई,धागा प्रेम का,
फटे रिश्ते,कुछ तो सिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी जोर है,,
कलेजे हों सख्त,हिल ही जायेगे 
यग्य  का फल मिलेगा जजमान को,
आहुति में फेंके तिल ही जायेंगे
बेवफा तुम और हम है बावफा,
इस तरह तो टूट दिल ही जायेंगे
अगर पत्थर फेंकियेगा कीच में,
चंद  छींटे तुम्हे मिल ही जायेंगे
करके देखो नेता की आलोचना,
कई चमचे,तुम पे पिल ही जायेगे
कोई भी हो देश कोई भी शहर,
एक दो सरदार मिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी है कशिश,
पत्थरों के दिल पिघल ही जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

थोड़ी सी तुम भी पहल करो

थोड़ी सी तुम भी पहल करो
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शृंगार
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यह मधुर मिलन की प्रथम रात,ऐसे ही बीत नहीं जाये
तुम्हारे मधुर अधर का रस,मै पी न सकूँ,मन ललचाये
ये झिझक निगोड़ी ना जाने,क्यों खड़ी बीच में बन बाधा
चन्दा सा मुखड़ा घूंघट से,बस दिखता है आधा आधा
जो ललक ह्रदय में है मेरे,तुम्हारे मन में भी होगी
तुमको छू  लूं ,मन करे,झिझक,तुम्हारे मन में भी होगी
यदि ये सब यूं ही बना रहा,तो कैसे होगा मधुर मिलन
जाने फिर कैसे टूटेंगे,ये शर्मो हया के सब बंधन
जब मेहंदी लगे हाथ की ही,छुवन है इतनी उन्मादक
जब तन तुम्हारा छू लूँगा,तो क्या होगी मेरी हालत
तुम्हारे चन्दन से तन की,है खुशबू ने बेचैन करा
मन में उमंग,तन में तरंग,है अंग अंग में जोश भरा
तुम मौन सिमट कर बैठी हो,मै भी कुछ शरमाया सा हूँ
कैसी होगी प्रतिक्रियाये,तुम्हारी,घबराया सा हूँ
ये मन बेचैन मचलता है,इसको मत ज्यादा विकल करो
मै भी थोड़ी सी पहल करूं,तुम भी थोड़ी सी पहल करो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ग़ज़ल-प्यार की

ग़ज़ल-प्यार की
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भावना में ज्वार होना चाहिये
तब किसी से प्यार होना चाहिये
ये नहीं वो चीज जो बंटती फिरे,
एक से ,एक बार होना चाहिये
जिधर भी जाए तुम्हारी  ये नज़र,
यार का दीदार होना  चाहिये
बुढ़ापा हो या जवानी उम्र की,
ना कोई दीवार होना चाहिये
एक दूजे के लिए ही है बने,
सोच ये हर बार होना चाहिये
आग जब दोनों तरफ ही हो लगी,
समर्पण,अभिसार होना चाहिये
महोब्बत के फूल खिलते ही रहें,
जिंदगी गुलजार होना  चाहिये
चाहे डूबो या रहो तुम तैरते,
रस भरा संसार होना चाहिये
प्यार का लम्बा चलेगा ये सफ़र,
आपसी एतबार होना चाहिये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हे जगदीश ,चतुर्भुज धारी

हे जगदीश ,चतुर्भुज धारी
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हे जगदीश,चतुर्भुजधारी,
आपका ये रूप ,अनूप है
औउर बड़ी प्रेरणा दायक  है,
ये छवि तुम्हारी
आप जो हाथों में धारण किये हुए है,
शंख,चक्र,गदा और पद्म
जीवन की राजनीती में,
सफलता के है ये ही मूल मन्त्र
सबसे पहले शंख बजाओ
अपनी उपस्तिथि का अहसास कराओ
जितनी बुलंद आप जन जन तक पहुँचाओगे
आप उतनी ही बुलंदी तक पहुँच पाओगे
और फिर जरुरत पड़ने पर,
अपने विपक्षी पर,
अपने दूसरे हाथ में धारण किया हुआ,
चलाओ चक्कर (चक्र)
ये चक्र बड़ा शक्तिशाली है
और शिशुपाल जैसे विरोधी,
जो देते तुम्हे गाली है
उनकी गर्दन काट देता है,
जब ये चल जाता है
और 'गज' जैसे भक्तों को,
'ग्राह' से बचाता है
और फिर भी यदि आवश्यकता पड़े
हाथ में गदा लेकर हो जाओ खड़े
ये गदा,
शक्तिशाली रही है सदा
त्रेता युग में ये हनुमान जी के हाथ थी
और द्वापर में भीम के पास थी
और राम रावण युद्ध और महाभारत में,
इसकी भूमिका खास थी
बस एक बार लहरा दो
अपनी कीर्ति ध्वजा फहरा दो
और फिर सफल्रा चूमेगी आपके कदम
और आपके हाथों में होगा पदम
पद्म याने कमल,प्रतीक है सम्पन्नता का
कोमलता का,सुन्दरता का और सफलता का
इसकी महिमा सर्वत्र है
इस पर लक्ष्मी जी विराजती है,
सुख समृद्धि का ये ही मूल मन्त्र है
यदि आपके हाथ में शंख,चक्र और गदा है
तो समझो,पद्म भी सदा है
और उस पर लक्ष्मी जी भी निवास करेगी
और जनता आपकी जय जय कार करेगी
प्रभु, आपके इस चतुर्भुज रूप से प्रेरणा पाकर,
हम सब आपके ऋणी है
अब हमारी समझ में आ गया,
कि आपके पुरुष पुरातन होते हुए भी,
लक्ष्मी जी ,क्यों आपकी वामंगिनी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

एक थैली के चट्टे बट्टे

एक थैली के चट्टे बट्टे
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बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस
सब दल जनता को भरमाते,
है बदल बदल कर अलग भेष
मन बहलाते इनके वादे,
भाषण लम्बे लम्बे
पर हमने देखा ये सब है,
एक बेल के तुम्बे
सत्ता मिलते ही ये देखा,
सब करते है ऐश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये कर देंगे,वो कर देंगे,
दिखलाते है ख्वाब
रंग बदलने में ये सब है,
गिरगिट के भी बाप
रंग बिरंगी टोपी,झंडे,
रंग बिरंगी ड्रेस
बी जे पी हो या कांग्रेस
सभी बढ़ाते है मंहगाई,
सब चीजों के भाव
एक गली में भों भों करते,
जब होता टकराव
पर खुद का मतलब होने पर,
हो जाते है एक
बी जे पी हो या कांग्रेस
एक थैली के चट्टे बट्टे,
कुछ है नाग,संपोले
इस हमाम में सब नंगे है,
अब किसको क्या बोलें
नेताओं ने लूट लूट कर,
किया खोखला देश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 6, 2011

हुंकार

                        हुंकार
                      ---------
हम भी थोड़ी सी पहल करें,तुम भी थोड़ी सी पहल करो
यदि परिवर्तन लाना है तो,क्रांति ध्वज लेकर  निकल पड़ो
अब अर्थ व्यवस्था पिछड़ी है,क़ानून व्यवस्था बिगड़ी है
प्रगति की गति हुई क्षीण,कुछ चाल हो गयी लंगड़ी है
मंहगाई सुरसा के जैसी,नित है अपना मुख बढ़ा रही
हो रहे त्रस्त,सब अस्त व्यस्त,जीवन की गति गड़बड़ा रही
सत्ता सुंदरी के मोहपाश में कुछ एसा आकर्षण है
स्केमो,फर्जिवाड़ो में ,हो रहे लिप्त नेता गण है
सब मनोवृत्तियां कुंठित है,हो रहा प्रशासन खंडित है
जिनने चुन कर सत्ता सौंपी ,वो जनता होती दण्डित है
हमको आपस में लड़ा भिड़ा,नेता निज रोटी सेक रहे
हम बने मूक दर्शक केवल,ये खेल घिनोना देख रहे
हम मौन ,शांत और बेबस से,क्यों सहन कर रहे उत्पीडन
अधिकारों का हो रहा हनन,क्यों स्वाभिमान कर रहा शयन
क्यों पड़े हुए हम लुंज पुंज,क्यों पौरुष पड़ा हुआ है मृत
यह समय नहीं है सोने का,होना होगा हमको जागृत
ये भ्रष्टाचार हटाना है,ये बन्दर बाँट मिटानी है
सत्ता के चंद दलालों की, हमने कुर्सी खिसकानी है
कर लिया सहन है बहुत दलन,अब आन्दोलन करना होगा
आमूल चूल परिवर्तन का,अब हमको प्रण करना होगा
आओ अपना बल दिखला दो ,सब के सब  मिल कर उबल  पड़ो
  हम भी थोड़ी सी पहल करें,तुम भी थोड़ी सी पहल करो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'












Sunday, December 4, 2011

कभी धूप-कभी छाँव

कभी धूप-कभी छाँव
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कभी छाँव है,कभी धूप है
जीवन का ये ही स्वरूप है
पग पग हमें दिग्भ्रमित करती,
मृग तृष्णा ये तो अनूप है
कभी गेंद से टप्पा खाते,
छूकर धरा ,पुनह उठ जाते
कभी  सहारा लिए डोर का,
बन पतंग ऊपर लहराते
कभी हवा के रुख के संग हम,
सूखे पत्ते से उड़ते है
कभी जुदाई की पीड़ा है,
कभी नये रिश्ते जुड़ते है
इस जीवन में,हर एक क्षण में,
होते अनुभव खट्टे,मीठे
फेंका कीचड में जो पत्थर,
तो तुम तक  आते हैं छींटे
कभी फूल है,कांटे भी है,
कोई भिखारी, कोई भूप है
जीवन का ये ही स्वरुप है,
कभी छाँव है ,कभी धूप है
तुमने जिसकी ऊँगली थामी,
नहीं जरूरी,राह दिखाये
अक्सर लेते पकड़ कलाई,
ऊँगली तुम थे,जिन्हें थमाये
सबके अपने अपने मतलब ,
कोई किस पर करे भरोसा
पहरेदार ,लूटते है घर,
अपने ही दे जाते धोका
जीवन वही सफल कर पाता,
जो अपने बल पर जीता है
नहीं गरल देता दूजों को,
वो जीवन अमृत पीता है
इस जीवन की थाह नहीं है,
यह तो गहरा,एक कूप है
कभी छाँव है,कभी धूप है,
जीवन का ये ही स्वरुप है
 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
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तुम भी  स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
भैया ये    तो  है    प्रजातंत्र
अपने अपने ढंग से जीयो,
सुख शांति का है यही मन्त्र
तुम वही करो जो तुम चाहो,
हम वही करे ,जो हम चाहे 
फिर इक दूजे के कामो में,
हम टांग भला क्यों अटकाएं
जब अलग अलग अपने रस्ते,
तो आपस में क्यों हो भिडंत
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम गतिवान खरगोश और,
हम मंथर गति चलते कछुवे
तुम  प्रगतिशील हो नवयुगीन,
हम परम्परा के पिछ्लगुवे
हम है दो उलटी धारायें,
तुम तेज बहो,हम बहे मंद
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम नव सरिता से उच्श्रंखल ,
हम स्थिर, भरे सरोवर से
तुम उड़ते बादल से चंचल,
हम ठहरे है,नीलाम्बर से
है भिन्न भिन्न प्रकृति अपनी,
हम दोनों का है भिन्न  पंथ
हम भी स्वतंत्र,तुम भी स्वतंत्र
फिर आपस में क्यों हो भिडंत

मदन मोहन बहेती'घोटू'





Saturday, December 3, 2011

जैसे जैसे दिन ढलता है------

जैसे जैसे दिन ढलता है------
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जैसे जैसे दिन ढलता है ,परछाई लम्बी होती है
जब दीपक बुझने को होता,बढ़ जाती उसकी ज्योति है
सूरज जब उगता या ढलता,
                            उसमे होती है शीतलता
इसीलिए वो खुद से ज्यादा,
                             साये को है लम्बा करता
और जब सूरज सर पर चढ़ता,
                              उसका अहम् बहुत बढ़ता है
दोपहरी के प्रखर तेज के,
                               भय से  साया भी  डरता है
परछाई बेबस होती  है,और डर कर  छोटी होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है
आसमान में ऊँची उड़ कर,
                               कई पतंगें इठलाती है
मगर डोर है हाथ और के,
                            वो ये बात भूल  जाती है
उनके  इतने ऊपर उठने ,
                            में कितना सहयोग हवा का
जब तक मौसम मेहरबान है,
                            लहराती है विजय पताका
कब रुख बदले हवा,जाय गिर,इसकी सुधि नहीं होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, December 2, 2011

औरतें ,फूल जैसी होती है

औरतें ,फूल जैसी होती है
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औरतें फूलों की तरह होती है,
कभी जूही सी नाजुक,
कभी चमेली सी अलबेली,
कभी मोगरे सी मादक,
कभी गेंदे सी गठीली,
कभी गुलाब की रंगत लिए महकती,
मगर  कांटे वाली डालियों पर पलती,
सबकी अपनी अपनी खुशबू होती है
और जब शबाब पर होती है,
मादक महक फैलाती है
सबको लुभाती है
पर जब किसी देवता पर चढ़ जाती है
तो  सूरजमुखी की तरह,
सिर्फ अपने उसी देव,
सूरज को निहारती है
उसी पर सारा प्यार बरसाती है
और अपने बीजों को,
स्निग्धता से सरसाती है
और फिर बड़ी होकर,
गोभी के फूल की तरह,
सिर्फ खाने पकाने के काम में आती है
पहले भी फूल थी,
और फूल अब भी कहलाती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'