भारत सोने की चिड़िया था
प्रगति में सबसे अगुवा था
हरा भरा खुशहाल देश था
है इतिहास पुराने दिन का
कुछ तो धन ले गए विदेशी
भ्रष्टाचारी नेता देशी
सबने मिल कर इतना लूटा
बचा नहीं कोई भी तिनका
इसे निकले सत्ताधारी
काला धन करतूते काली
बेईमानी, घूस ,कमीशन
खाकर पेट भरा न जिनका
आओ इसे कदम उठाये
कोशिश कर के वापस लाये
स्विस बैंकों में जमा किया धन
उनका था या शायद इनका
कुछ अपनों के राज़ खुलेगे
मैले कपडे मगर धुलेगे
फिर से उजियाला फैलेगा
वो पायेगे हक़ है जिनका
महगाई की आग थमेगी
साँस चैन की जनता लेगी
जन गन मन की शान बढेगी
इंतजार है बस उस दिन का
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Saturday, January 15, 2011
दहक बाकी है
छलकते जाम पर इतराए तू क्यों साकी है
बुझे हुए इन शोलो में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है
बुझे हुए इन शोलो में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है
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