अपनी अपनी किस्मत
यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़ जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़ जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा मेवा बन जाता
कोई फूल डाल पर बैठा इठलाता है
कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता ,
कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर जाता है
कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर ,
और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के वह सूखा मेवा बन जाता
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा मेवा बन जाता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़ जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़ जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा मेवा बन जाता
कोई फूल डाल पर बैठा इठलाता है
कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता ,
कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर जाता है
कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर ,
और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के वह सूखा मेवा बन जाता
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा मेवा बन जाता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'