है उम्र हमारी साठ पार
तुम हमें बुजुर्ग बता कर के ,अहसास दिलाते बार बार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
कहते हममें न बची फुर्ती ,गायब सब जोश ,गया जज्बा
हम दादागिरी दिखाते है ,लेकिन है अब्बा के अब्बा
कुछ कामधाम न बस दिन भर ,घर में हम बैठ निठल्ले से
बस वक़्त गुजारा करते है ,बंध कर बीबी के पल्ले से
या फिर गपियाते रहते है ,संग बिठा ,कभी उससे ,इससे
ना रहे काम के इसीलिये ,कर दिया रिटायर सर्विस से
तंग करते रहते बीबी को फरमाइश करते है दिन भर
ये ला वो ला ,चल चाय बना ,और गरम पकोड़े ही दे तल
रस्सी जल गयी ,ऐंठ अब भी ,लेकिन है हममें बकरार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
हम नहीं काम के रहे जरा ,ये सोच तुम्हारी नहीं ठीक
है भरे हुए हम अनुभव से ,हमसे सकते तुम बहुत सीख
हम दुर्ग विरासत के,बुजुर्ग ,हमको नाकारा मत समझो
हम अब भी आग लगा सकते ,बुझता अंगारा मत समझो
यह सूरज भले ढल रहा है ,पर उसकी आभा स्वर्णिम है
बारिश हम ताबड़तोड़ नहीं ,लेकिन सावन की रिमझिम है
था जीवन सफर बड़ा मुश्किल ,हम तूफानों से खेले है
कितनी ही ठोकर खाई है ,कितने ही पापड़ बेले है
सब पका पकाया मिला तुम्हे ,फिर है काहे का अहंकार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
तुम बूढा हमको जब कहते ,मन में मलाल छा जाता है
है कढ़ी भले ही बासी पर ,उसमे उबाल आ जाता है
हो कितना ही बूढा बंदर ,लेना न गुलाटी भूले पर
लिखता अच्छी ग़ज़लें,नगमे ,कितना ही बूढा हो शायर
घट गयी भले तन की सुषमा ,पर मन की ऊष्मा बाकी है
नज़रें चाहे कमजोर हुई ,कर सकते ताका झांकी है
उड़ता बूढा पंछी भी है ,माना कि उतना तेज नहीं
गुड़ मना ,गुलगुले से हमको ,लेकिन कोई परहेज नहीं
बस थोड़ा मौका मिल जाए ,हम कर सकते है चमत्कार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम हमें बुजुर्ग बता कर के ,अहसास दिलाते बार बार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
कहते हममें न बची फुर्ती ,गायब सब जोश ,गया जज्बा
हम दादागिरी दिखाते है ,लेकिन है अब्बा के अब्बा
कुछ कामधाम न बस दिन भर ,घर में हम बैठ निठल्ले से
बस वक़्त गुजारा करते है ,बंध कर बीबी के पल्ले से
या फिर गपियाते रहते है ,संग बिठा ,कभी उससे ,इससे
ना रहे काम के इसीलिये ,कर दिया रिटायर सर्विस से
तंग करते रहते बीबी को फरमाइश करते है दिन भर
ये ला वो ला ,चल चाय बना ,और गरम पकोड़े ही दे तल
रस्सी जल गयी ,ऐंठ अब भी ,लेकिन है हममें बकरार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
हम नहीं काम के रहे जरा ,ये सोच तुम्हारी नहीं ठीक
है भरे हुए हम अनुभव से ,हमसे सकते तुम बहुत सीख
हम दुर्ग विरासत के,बुजुर्ग ,हमको नाकारा मत समझो
हम अब भी आग लगा सकते ,बुझता अंगारा मत समझो
यह सूरज भले ढल रहा है ,पर उसकी आभा स्वर्णिम है
बारिश हम ताबड़तोड़ नहीं ,लेकिन सावन की रिमझिम है
था जीवन सफर बड़ा मुश्किल ,हम तूफानों से खेले है
कितनी ही ठोकर खाई है ,कितने ही पापड़ बेले है
सब पका पकाया मिला तुम्हे ,फिर है काहे का अहंकार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
तुम बूढा हमको जब कहते ,मन में मलाल छा जाता है
है कढ़ी भले ही बासी पर ,उसमे उबाल आ जाता है
हो कितना ही बूढा बंदर ,लेना न गुलाटी भूले पर
लिखता अच्छी ग़ज़लें,नगमे ,कितना ही बूढा हो शायर
घट गयी भले तन की सुषमा ,पर मन की ऊष्मा बाकी है
नज़रें चाहे कमजोर हुई ,कर सकते ताका झांकी है
उड़ता बूढा पंछी भी है ,माना कि उतना तेज नहीं
गुड़ मना ,गुलगुले से हमको ,लेकिन कोई परहेज नहीं
बस थोड़ा मौका मिल जाए ,हम कर सकते है चमत्कार
कर गयी जवानी बाय बाय ,है उम्र हमारी साठ पार
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '