Wednesday, November 4, 2020

प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना
हलवा पूरी गटक सकूं और चबा सकूं मैं चना चबैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मेरे तन की शुगर ना बढे ,रहे मिठास जुबाँ की कायम
तन का लोहा ठीक रहे और मन में लोहा लेने का दम
चलूँ हमेशा ही मैं तन कर ,मेरी कमर नहीं झुक पाये
यारों के संग,हंसी ठिठौली ,मिलना जुलना ना रुक पाये
जियूं मस्त मौला बन कर मैं ,काटूँ अपने दिन और रैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

भले आँख पर चश्मा हो पर टी वी और अखबार पढ़ सकूं
जवाँ हुस्न ,खिलती कलियों का,छुप छुप कर दीदार कर सकूं
चाट पकोड़ी ,पानी पूरी ,खा पाऊं ,लेकर चटखारे
बिमारियां और कमजोरी ,फटक न पाये पास हमारे
सावन सूखा ,हरा न भादौ ,रहे हमेशा मन में चैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मेरी  जीवन की शैली पर ,नहीं कोई प्रतिबंध लगाये
जीवनसाथी साथ रहे और संग संग हम दोनों मुस्काये
नहीं आत्म सन्मान से कभी ,करना पड़े कोई समझौता
बाकी तो फिर ,लिखा भाग्य में ,जो होना है ,वो ही होता
करनी ऐसी करूँ ,गर्व से ,मिला सकूं मैं सबसे नैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
करारापन लिए तन है
भरा मिठास से मन है
सुनहरी इसकी रंगत है
बड़ी माशूक तबियत है
नज़र पड़ते ही ललचाती
हमारे मन को  उलझाती
बहुत ही प्रिय ये सबकी है
गरम हो तो गजब की है
बड़ा इसमें है आकर्षण
लुभा लेती है सबका मन
हसीना ये बड़ी दिलकश
टपकता तन से यौवन रस
बड़ी कातिल ,फरेबी है
मेरी दिलवर ,जलेबी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '