अनोखी दोस्ती
कैसे मित्र बने हम बहनी
मैं शाखामृग ,तू मृग नयनी
मैं प्राणी, बेडोल शकल का
हूं थोड़ी कमजोर अकल का
लंबी पूंछ , मुंह भी काला
मैं हूं चंचल पशु निराला
मैं तो पुरखा हूं मानव का
मेरा भी अपना गौरव था
मुख जो देखे सुबह हमारा
उसको मिलता नहीं आहारा
तेरा सुंदर चर्म मनोहर
तीखे नैन बड़े ही सुंदर
तू मित्रों के संग विचरती
हरी घास तू वन में चरती
तेरे जीवन का क्या कहना
मस्त कुलांचे भरते रहना
और मैं उछलूं टहनी टहनी
मैं शाखामृग, तू मृग नयनी
नहीं समानता हमें थोड़ी
कैसे जमी हमारी जोड़ी
हम साथी त्रेतायुग वाले
रामायण के पात्र निराले
मैं मारीच, स्वर्ण का मृग बन
चुरा ले गया सीता का मन
सीता हरण किया रावण ने
राम ढूंढते थे वन वन में
मैं हनुमान , रूप वानर का
मैंने साथ दिया रघुवर का
किया युद्ध ,संजीवनी लाया
लक्ष्मण जी के प्राण बचाया
और गया फिर रावण मारा
रामायण में योग हमारा
याद कथा ये सबको रहनी
मैं शाखामृग, तू मृगनयनी
मदन मोहन बाहेती घोटू