Sunday, April 14, 2013

पति पत्नी का रिश्ता

घोटू के छक्के
पति पत्नी का रिश्ता

कितनी ही होती रहे ,भले रार,तकरार
पति पत्नी के बीच में ,हरदम रहता प्यार
हरदम रहता प्यार ,पति पत्नी है ऐसे
जल संग मछली और बादल संग बिजली जैसे
कह 'घोटू'कविराय ,बड़ा ये रिश्ता पावन
एक दूसरे बिन ना सजते ,सजनी ,साजन
घोटू

दरार

           दरार
रिश्ते ,
सीमेंट की छत की तरह होते है ,
जिनमे कई बार ,
अहम् की तपिश से ,
दरारें पड़  जाती है
और फिर जब,
कडवाहट की बारिश होती है ,
तो सपाट छत तो ,
जल्दी से सूख जाती है
पर दरारें सूखने में,
 बड़ा समय लगाती है
इसीलिये रिश्तों को ,
हमेशा सीधा और सपाट रहने दो
खुशियों से भरने  दो
और उनमे दरार मत पड़ने दो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

व्यथा -विवाहित पुरुष की

             व्यथा -विवाहित पुरुष की

मै तुमसे कुछ बोल न पाता
ऐसा बंधा हुआ पहलू से ,इधर उधर भी डोल न पाता 
मै तुमसे कुछ  बोल न  पाता
बंधा तुम्हारे रूप जाल में ,मन्त्र मुग्ध सा ,होकर पागल
भँवरे जैसा आसपास ही , तुम्हारे मंडराता  हर पल
तुम्हारे हर एक इशारे पर मै हरदम  रहूँ  नाचता
शादी कर के लगता है यूं ,कैदी हूँ मै  सजा याफ्ता
बात तुम्हारी ,सर आँखों पर ,वो सब करता ,जो तुम कहती
फिर भी क्यों तुम्हारी भृकुटी ,हरदम तनी  हुई है रहती
तुम्हारे मन के अन्दर क्या ,मै यह  कभी टटोल न पाता
मै  तुमसे कुछ बोल न पाता
क्या सचमुच में ,तुमको आता ,करना कोई जादू टोना
खेलो मेरे जज्बातों से ,जैसे मै हूँ कोई   खिलोना
भूल भुलैया दिल तुम्हारा ,भटक रहा मै इसके अन्दर
अपनी हालत क्या बतलाऊं ,मेरी गति है सांप ,छुछंदर
शादी,लड्डू ,जो खाये ,पछताये,ना खाये ,पछताये  ,
कभी नाव पर गाडी रहती ,कभी नाव गाडी पर आये
बड़ी जटिल ,शादी की ग्रंथि ,मै यह ग्रंथि खोल न पाता
मै तुमसे कुछ बोल न पाता
मेरी क्या ,हर एक पति की ,हो जाती है हालत ऐसी
बाहर भले शेर सा गरजे,घर में होती ,गत चूहे   सी
फिर भी तुम्हारी हर हरकत ,मुझको हरदम लगती प्यारी
दिखते कितने सुन्दर चेहरे, पर तुम लगती सबसे न्यारी
ये रिश्ता ,पति और पत्नी का ,होता ज्यों ,पानी और चन्दन
और ये सप्तपदी के फेरे ,बांधे जनम जनम का बंधन
सुनते ,पति पत्नी की जोड़ी ,ऊपर वाला ,स्वयं बनाता
मै तुमसे कुछ बोल न पाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'