मैं कौन हूँ ?
मैं दुबली पतली और छरहरी हूँ
क्षीणकाय जैसे कनक की छड़ी हूँ
बाहर से होती नरम बड़ी हूँ
लेकिन अंदर से मैं बहुत कड़ी हूँ
मेरा दिल भले ही काला है
पर हर कोई मुझे चाहने वाला है
क्योंकि जब मैं चलती हूँ अपनी चाल
मेरा हर चाहनेवाला भावना में बहता है
कोरा कागज भी कोरा नहीं रहता है
आप जैसा भी चाहें ,
मुझको नचायें
क्योंकि मेरी लगाम आपके हाथ है
जीवन के हर पल में ,मेरा आपका साथ है
गिनती में ,हिसाब में
लाला की किताब में
दरजी की दूकान पर
मिस्त्री के कान पर
बनिये के खातों में
मुनीमजी के हाथों में
कविता की पंक्तियों में
चित्रकार की कृतियों में
सब जगह है मेरा वास
सबके लिए हूँ मैं ख़ास
सबकी चहेती हूँ
बार बार मरती हूँ ,बार बार जीती हूँ
जब मैं गुस्से में चलती हूँ ,लोग डरते है
उनके काले कारनामे उभरते है
क्योंकि मैं जोश भरी हुंकार हूँ
बिना धार की तलवार हूँ
ताजा समाचार हूँ
कल का अखबार हूँ
मैं विचारों का स्वरुप हूँ
योजनाओं का प्रारूप हूँ
चित्रकार का चित्र हूँ
कलाकारों की मित्र हूँ
हर विषय का ज्ञान हूँ
गणित हूँ ,वज्ञान हूँ
हिंदी ,अंग्रेजी हो या गुजराती
मुझे हर भाषा है लिखनी आती
कवि के हाथों में कविता बन जाती हूँ
लेखक के हाथों से कहानी सुनाती हूँ
प्रेमियों के दिल के भाव खोलती हूँ
प्रेमपत्र के हर शब्द में बोलती हूँ
ये बड़ी बड़ी इमारतें और बाँध
मेरी कल्पनाओं के है सब उत्पाद
ये रोज रोज बदलते फैशन
सब मेरे ही है क्रिएशन
मैं थोड़ी अंतर्मुखी हूँ
कोई दिल तोड़ देता तो होती दुखी हूँ
पर ये बोझ नहीं रखती दिल पर
बस थोड़ी सी छिलकर
फिर से नया जीवन पाती हूँ
हंसती हूँ,मुस्कराती हूँ
आपके काम आती हूँ
हालांकि मेरी काली जुबान है
फिर भी लोग मुझ पर मेहरबान है
क्योंकि मैं उनके लिए मरती हूँ तिल तिल
दूर करती हूँ उनकी हर मुश्किल
आप खुश होंगे मुझसे मिल
जी हाँ ,मैं हूँ आपकी पेन्सिल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं दुबली पतली और छरहरी हूँ
क्षीणकाय जैसे कनक की छड़ी हूँ
बाहर से होती नरम बड़ी हूँ
लेकिन अंदर से मैं बहुत कड़ी हूँ
मेरा दिल भले ही काला है
पर हर कोई मुझे चाहने वाला है
क्योंकि जब मैं चलती हूँ अपनी चाल
मेरा हर चाहनेवाला भावना में बहता है
कोरा कागज भी कोरा नहीं रहता है
आप जैसा भी चाहें ,
मुझको नचायें
क्योंकि मेरी लगाम आपके हाथ है
जीवन के हर पल में ,मेरा आपका साथ है
गिनती में ,हिसाब में
लाला की किताब में
दरजी की दूकान पर
मिस्त्री के कान पर
बनिये के खातों में
मुनीमजी के हाथों में
कविता की पंक्तियों में
चित्रकार की कृतियों में
सब जगह है मेरा वास
सबके लिए हूँ मैं ख़ास
सबकी चहेती हूँ
बार बार मरती हूँ ,बार बार जीती हूँ
जब मैं गुस्से में चलती हूँ ,लोग डरते है
उनके काले कारनामे उभरते है
क्योंकि मैं जोश भरी हुंकार हूँ
बिना धार की तलवार हूँ
ताजा समाचार हूँ
कल का अखबार हूँ
मैं विचारों का स्वरुप हूँ
योजनाओं का प्रारूप हूँ
चित्रकार का चित्र हूँ
कलाकारों की मित्र हूँ
हर विषय का ज्ञान हूँ
गणित हूँ ,वज्ञान हूँ
हिंदी ,अंग्रेजी हो या गुजराती
मुझे हर भाषा है लिखनी आती
कवि के हाथों में कविता बन जाती हूँ
लेखक के हाथों से कहानी सुनाती हूँ
प्रेमियों के दिल के भाव खोलती हूँ
प्रेमपत्र के हर शब्द में बोलती हूँ
ये बड़ी बड़ी इमारतें और बाँध
मेरी कल्पनाओं के है सब उत्पाद
ये रोज रोज बदलते फैशन
सब मेरे ही है क्रिएशन
मैं थोड़ी अंतर्मुखी हूँ
कोई दिल तोड़ देता तो होती दुखी हूँ
पर ये बोझ नहीं रखती दिल पर
बस थोड़ी सी छिलकर
फिर से नया जीवन पाती हूँ
हंसती हूँ,मुस्कराती हूँ
आपके काम आती हूँ
हालांकि मेरी काली जुबान है
फिर भी लोग मुझ पर मेहरबान है
क्योंकि मैं उनके लिए मरती हूँ तिल तिल
दूर करती हूँ उनकी हर मुश्किल
आप खुश होंगे मुझसे मिल
जी हाँ ,मैं हूँ आपकी पेन्सिल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '