Monday, July 1, 2013

वादियाँ यूरोप की

    
           वादियाँ  यूरोप की 
आँख को ठंडक मिलीऔर आगया दिल को सुकूँ ,
मुग्ध हो देखा किया मै, वादियाँ  यूरोप की 
कहीं बर्फीली चमकती,कहीं हरियाली भरी,
सर उठा सबको बुलाती,वादियाँ यूरोप  की  
गौरवर्णी,स्वर्णकेशी,अल्पवस्त्रा ,सुहानी,
हुस्न का जैसे खजाना ,लड़कियां यूरोप की 
प्रेमिका से प्यार करने ,नहीं कोना ,ढूंढते ,
प्रीत खुल्ले मे दिखाये ,जोड़ियाँ,यूरोप  की 
हरित भूतल,श्वेत अंबर ,और सुहाना सा है सफर ,
बड़ी दिलकश,गयी मन बस,फिजायें यूरोप की 
शांत सा वातावरण है,कोई कोलाहल नहीं,
बड़ी शीतल,खुशनुमा है ,हवाएँ यूरोप की 
है  खुला  उन्मुक्त जीवन ,कोई आडंबर नहीं,
बड़ी है मन को सुहाती,  मस्तियाँ यूरोप  की 
देखता रहता है दिन भर,अस्त होता देर से,
सूर्य को इतना लुभाती, शोखियाँ  यूरोप की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
  

पुराने दिनो की याद

                   पुराने दिनो की याद 
                 
     दिन मस्ताने,शाम सुहानी,रात दीवानी होती थी 
     हमे याद आते वो दिन ,जब,हममे जवानी होती थी 
तेरी हुस्न,अदा ,जलवों पर,तब हम इतना मरते थे 
जैसे होती सुबह,रात का,   इंतजार हम करते थे  
       छेड़छाड़ चलती थी दिन भर, यही कहानी होती  थी 
       हमे याद आते वो दिन ,जब हममे  जवानी होती थी 
शर्माती थी तो गुलाब से ,गाल तुम्हारे हो जाते 
लाल रंग के होठ लरजते,मधु के प्याले हो जाते 
       और तुम्हारी,शोख अदाएं ,भी मरजानी  होती थी 
       हमे याद आते वो दिन जब ,हममे  जवानी होती थी 
रिमझिम बारिश की फुहारों मे हम भीगा करते थे 
तुम्हें पता है,मुझे पता है,फिर हम क्या क्या करते थे 
        बेकल राजा की बाहों मे,पागल रानी होती थी 
        हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी 
रात चाँदनी मे जब छत पर ,हम तुम सोया करते थे 
मधुर मिलन की धुन मे बेसुध होकर  खोया करते थे 
          चाँद देखता ,तुम शर्मा कर,पानी पानी  होती थी 
          हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी 
पर अब ना वो मधु,मधुशाला ,ना मतवाला साकी है 
उस मयखाने,की रौनक की ,केवल यादें बाकी है 
           जब मदिरा से ज्यादा मादक,तू मस्तानी होती थी 
           हमे याद आते वो दिन जब ,हममे जवानी होती थी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

कहर के बाद

          
          कहर के बाद 
मै तुम्हें मंद मंद मंथर गति से ,
बहने वाली मंदाकिनी कहता था 
तुम्हारे शिखरों की तारीफ करता रहता था 
तुम्हारी जुल्फों को कहता था काली घटायें
और लगती थी बिजली गिराती हुई ,
मुझे तुम्हारी सारी अदायें
पर जब से ,
मन्दाकिनी ने उमड़ कर ,
बादलों ने फट कर ,
पहाड़ों के शिखरों ने ढह कर,
बिजलियों ने कडक कर ,
उत्तराखंड मे ढाया है कहर 
खंड खंड हो गयी है मेरी उपमायें
और मैंने बंद कर दिया है,
तुम्हारी तारीफ मे ये सब कहना 
मुझको तो तुम,
जैसी हो ,वैसी ही अच्छी लगती हो,
और हरदम ,एसी ही रहना 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   ,