हर दिन होली
खाना पीना ,मौज मनाना,मस्ती और ठिठौली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
रोज सुबह जब आँखें खुलती,तो लगता है जनम हुआ
रात बंद जब होती आँखें,तो लगता है मरण हुआ
यादों के जब पत्ते खिरते,लगता है सावन आया
अपनों से मिलना होने पर ,ज्यों बसंत हो मुस्काया
ऐसा लगता फूल खिल रहे ,जैसे कोयल बोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
दुःख के शीत भरे झोंकों से,ठिठुर ठिठुर जाता तन है
और जब सुख की उष्मा मिलती ,पुलकित हो जाता मन है
जब आनंद फुहार बरसती,लगता है सावन आया
दीप प्रेम के जला किसी ने,होली का रंग बरसाया
लगता जीवन के आँगन में,जैसे सजी रंगोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Friday, March 1, 2013
सबसे बड़ा सत्संग -पति के संग
सबसे बड़ा सत्संग -पति के संग
मै तो चाहूं ,संग तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में
तुम्हारे इस धरम करम से ,बहुत हो गया हूँ अब तंग मै
जब देखो तुम ,भाग भाग कर ,
कथा भागवत सुनने जाती
सात दिनों का लंबा चक्कर ,
पर फिर भी तुम नहीं अघाती
सोचा करती,स्वर्ग मिलेगा,
मै तो चाहूं ,संग तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में
तुम्हारे इस धरम करम से ,बहुत हो गया हूँ अब तंग मै
जब देखो तुम ,भाग भाग कर ,
कथा भागवत सुनने जाती
सात दिनों का लंबा चक्कर ,
पर फिर भी तुम नहीं अघाती
सोचा करती,स्वर्ग मिलेगा,
व्यासपीठ पर दान चढ़ा कर
और रहती हो,भूखी दिन भर,
एक वक़्त बस खाना खाकर
पत्नी के कर्तव्य भुला कर,
घर गृहस्थ की जिम्मेदारी
पुण्य कमाने के चक्कर में ,
भटक रही हो ,मारी मारी
एक बार सुनना काफी है ,
वही भागवत ,वही कथा है
बार बार तुम सुनने जाती ,
मे्रे मन में यही व्यथा है
चन्द भजनियों ने खोली है,
कथा भागवत की दूकाने
दे जनता को पुण्य प्रलोभन ,
लगे हुए है भीड़ जुटाने
सुनो भागवत,मोक्ष मिलेगा ,
टिकिट स्वर्ग का बाँट रहे है
भोली जनता को फुसला कर ,
अपनी चाँदी काट रहे है
कुछ बूढी,अधेड़ सी सासें ,
बचने घर की रोज कलह से
कथा भागवत के चक्कर में ,
घर से जाती,निकल सुबह से
कुछ बूढ़े ,बेकार निठल्ले,
आ जाते है ,समय काटने
अपने ही हमउम्र साथियों ,
से अपना दुःख दर्द बांटने
कुछ परसादी भगत और कुछ,
श्रोता ,देखा देखी वाले
यही सोच कर ,आ जुटते है ,
हम भी थोड़ा ,पुण्य कमालें
और कथा वाचक पंडितजी ,
पहले हैं ,खुद को पुजवाते
कुछ पढ़ते,कुछ गढ़ते और कुछ,
प्रहसन और प्रसंग सुनाते
लगता श्रोता ,लगे ऊंघने ,
भजन कीर्तन ,चालू करते
दान दक्षिणा ,हर प्रसंग पर ,
चढवा अपनी झोली भरते
ये आयोजन ,लाखों के है ,
अब ये सब ,दुकानदारी है
ये सब चक्कर ,छोड़ो मेडम ,
इसमें बड़ी समझदारी है
ध्यान लगाओ ,परमेश्वर में ,
और पति परमेश्वर होता है
पत्नी के कर्तव्य निभाना ,
सब से बड़ा धरम होता है
अपने ढंग से जीवन जी लें,तुम रंग जाओ ,मेरे रंग में
मै तो चाहूं ,संग तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
और रहती हो,भूखी दिन भर,
एक वक़्त बस खाना खाकर
पत्नी के कर्तव्य भुला कर,
घर गृहस्थ की जिम्मेदारी
पुण्य कमाने के चक्कर में ,
भटक रही हो ,मारी मारी
एक बार सुनना काफी है ,
वही भागवत ,वही कथा है
बार बार तुम सुनने जाती ,
मे्रे मन में यही व्यथा है
चन्द भजनियों ने खोली है,
कथा भागवत की दूकाने
दे जनता को पुण्य प्रलोभन ,
लगे हुए है भीड़ जुटाने
सुनो भागवत,मोक्ष मिलेगा ,
टिकिट स्वर्ग का बाँट रहे है
भोली जनता को फुसला कर ,
अपनी चाँदी काट रहे है
कुछ बूढी,अधेड़ सी सासें ,
बचने घर की रोज कलह से
कथा भागवत के चक्कर में ,
घर से जाती,निकल सुबह से
कुछ बूढ़े ,बेकार निठल्ले,
आ जाते है ,समय काटने
अपने ही हमउम्र साथियों ,
से अपना दुःख दर्द बांटने
कुछ परसादी भगत और कुछ,
श्रोता ,देखा देखी वाले
यही सोच कर ,आ जुटते है ,
हम भी थोड़ा ,पुण्य कमालें
और कथा वाचक पंडितजी ,
पहले हैं ,खुद को पुजवाते
कुछ पढ़ते,कुछ गढ़ते और कुछ,
प्रहसन और प्रसंग सुनाते
लगता श्रोता ,लगे ऊंघने ,
भजन कीर्तन ,चालू करते
दान दक्षिणा ,हर प्रसंग पर ,
चढवा अपनी झोली भरते
ये आयोजन ,लाखों के है ,
अब ये सब ,दुकानदारी है
ये सब चक्कर ,छोड़ो मेडम ,
इसमें बड़ी समझदारी है
ध्यान लगाओ ,परमेश्वर में ,
और पति परमेश्वर होता है
पत्नी के कर्तव्य निभाना ,
सब से बड़ा धरम होता है
अपने ढंग से जीवन जी लें,तुम रंग जाओ ,मेरे रंग में
मै तो चाहूं ,संग तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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