Thursday, July 30, 2015

शहजादे से

         शहजादे से

ओ बिन गद्दी के शहजादे
हो बड़े अधूरे,तुम आधे
ना तो कुर्सी पर चढ़ पाये
ना ही घोड़ी पर चढ़ पाये
जनता ने दिया नकार तुम्हे
और किया नहीं स्वीकार तुम्हे
इसलिए की तुम नाकारा हो
एक फूला सा गुब्बारा हो
पर गयी हाथ से जब सत्ता
 जनता ने काट दिया  पत्ता
तो तुम उनके घर जाते हो
और हमदर्दी दिखलाते हो
ये कर दूंगा ,वो कर दूंगा
मैं साथ तुम्हारा पर दूंगा
लेकिन जब तुम थे पॉवर में
बस बैठे रहते  थे घर  में
पर जब कुछ करवा सकते थे 
तो कुछ करने से भगते थे
जब मिली हार ,हो बेकरार
अब भी भगते हो बार बार 
हो जाते  लुप्त अचानक हो
सचमुच तुम नन्हे बालक हो
कोई दुर्घटना हुई कहीं
जाते दलबल के संग वहीँ
निज सहानुभूती दिखलाते हो
पब्लिसिटी  करवाते हो
खाते खाना गरीब के घर
कुछ चमचे ,कुछ गुर्गे लेकर
पदयात्राएं  करते  रहते 
कुछ रटे  हुए जुमले कहते
तुम्हारी ये जो कसरत  है
केवल फिजूल की मेहनत है
संसद में जा चिल्लाते हो
अपना मखौल उड़वाते हो 
जनता ने तुमको जाना  है
अब मुश्किल वापस आना है

घोटू

मैं ढूंढ रहा उस लड़की को

               मैं ढूंढ रहा उस लड़की को

मैं कल अपनी पत्नी जी को,था बड़े गौर से ताक रहा
उनकी आँखों में आँख ड़ाल ,उनके अंतर में झांक रहा
वो बोली क्या करते हो जी,क्यों देख रहे हो घूर घूर
मैं वो ही तुम्हारी बीबी हूँ  ,ना कोई  अप्सरा, नहीं हूर
अब नहीं हमारी उमर रही ,ऐसे यूं आँख लड़ाने की
धुँधली आँखे,ढलता चेहरा ,जरुरत क्या नज़र गड़ाने की 
मैं बोला ढूंढ रहा हूँ मैं ,एक लड़की, बदन छरहरा था
जिसकी आँखों में लहराता ,उल्फत का सागर गहरा था
जब हंसती थी तो गालों पर ,डिम्पल पड़ जाया करते थे
जिसके रक्तिम से मधुर अधर,मुझको तड़फ़ाया करते थे
रेशम से बाल बादलों से,हिरणी सी आँखें चंचल थी
जो भरी हुई थी मस्ती से ,मदमाती,प्यारी ,सुन्दर थी
हंसती थी फूल खिलाती थी,वह भरी  हुई थी यौवन से
मैं ढूंढ रहा वह प्रथम प्यार,जिसको मैंने चाहा  मन से
जिस यौवन रस में डूब डूब ,मैंने जीवन भरपूर जिया
वह कहाँ खो गयी इठलाती , मनभाती मेरी प्राणप्रिया
क्या वो तुम ही थी,नहीं,नहीं,वो लड़की तुम ना हो सकती
नाजुक पतली कमनीय कमर ,ऐसा कमरा ना हो सकती
वह कनकछड़ी इतनी थुल थुल ,ना ना ये है मुमकिन नहीं
क्या सचमुच वो लड़की तुम हो, ये आता मुझे यकीन नहीं
तुम तो कोई की नानी माँ,  कोई की लगती दादी हो
अम्मा हो या फिर किसी बहू की सासू सीधी  सादी हो
उलझी इस तरह गृहस्थी में ,तुमको अपना ही होश नहीं
तुम अस्त व्यस्त और पस्त रहो,तुममे वो वाला जोश नहीं
सेवा में पोते पोती की  ,तुम पति की सेवा भूल गयी
अपना कुछ भी ना ख्याल रखा ,तुम दिन दिन दूनी फूल गयी
मैं ढूंढ रहा उस लड़की को ,मैं जिसे ब्याह कर लाया था
जिसने तन मन से प्यार किया ,अपना सर्वस्व लुटाया था
क्या बतला सकती तुम मुझको,खो गयी कहाँ,वो कहाँ गयी
पत्नीजी हंस कर यूं बोली, मैं वही ,सामने  खड़ी ,यहीं
ये सब करतूत तुम्हारी है ,जो मेरी  है ये  हालत कर दी
आहार प्यार का खिला खिला ,इतनी खुशियां मुझ में भरदी
मेरा स्वरूप जो आज हुआ  ,ये  सब  गलती तुम्हारी है
क्या कभी आईने में तुमने,अपनी भी शकल निहारी है
उड़ गए बाल आधे सर के ,ढीले ढाले से लगते हो
पर तुम जैसे भी हो अब भी ,उतने ही प्यारे लगते हो
सच तो ये है ,मैं ना बदली,नज़रें तुम्हारी बदल गयी
 अब भी मुझमे ढूँढा करते ,सकुचाती दुल्हन नयी
ये मत भूलो  बढ़ रही उमर ,यौवन ढलान पर है आया
ना तुममे जोश बचा उतना,मेरा स्वरूप भी कुम्हलाया
,पर मैं ही तो हूँ वो लड़की ,जिससे तुमने की थी शादी
तुम ही वो प्रेमी हो जिन संग,थी जीवन डोर कभी बाँधी
यदि वो ही दिवाने आशिक़ बन ,कर करीब तुम आओगे
तुम वही पुरानी प्यार भरी , लड़की मुझमे  पा जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ईश्वर की मेहरबानी

     ईश्वर की मेहरबानी

चलाया ए.सी.तो कमरा ,एक  ही ठंडा हुआ,
                    चलाई तूने हवा,ठंडक भी आयी साथ में
नलों में पानी नहीं था ,हर तरफ सूखा पड़ा,
                     लगे बहने नदी नाले ,एक ही बरसात में
बल्ब बिजली के कई ,जल एक घर रोशन करे,
                    तेरा एक सूरज उजाला ,करता कायनात में
लाख कोशिश करले इन्सां ,तेरे आगे कुछ नहीं ,
                      बात ही कुछ और है ,ईश्वर तेरी हर बात में

घोटू

चाय और बिस्किट

             चाय और बिस्किट

रिश्ता मेरा तुम्हारा ,बिस्किट और चाय का है
चाय के  साथ  बिस्किट     ,देते बड़ा मज़ा  है
तुम चाय सी गुलाबी ,बिस्किट मैं  कुरकुरा हूँ
तुम गर्म गर्म मीठी ,   मैं  स्वाद से भरा  हूँ
अलबेली,नित नवेली तुम हो,न  मैं भी कम हूँ
तुम्हारा प्यार  रस  पी,  होता नरम नरम हूँ
आता है स्वाद दूना ,  जब होता ये मिलन है
चाय के साथ बिस्किट ,सबका लुभाते मन है
ये दोस्ती हमारी  ,कायम  सदा सदा  है
चाय के साथ बिस्किट ,देते बड़ा मज़ा है

घोटू

चाय और बिस्किट

             चाय और बिस्किट

रिश्ता मेरा तुम्हारा ,बिस्किट और चाय का है
चाय के  साथ  बिस्किट     ,देते बड़ा मज़ा  है
तुम चाय सी गुलाबी ,बिस्किट मैं  कुरकुरा हूँ
तुम गर्म गर्म मीठी ,   मैं  स्वाद से भरा  हूँ
अलबेली,नित नवेली तुम हो,न  मैं भी कम हूँ
तुम्हारा प्यार  रस  पी,  होता नरम नरम हूँ
आता है स्वाद दूना ,  जब होता ये मिलन है
चाय के साथ बिस्किट ,सबका लुभाते मन है
ये दोस्ती हमारी  ,कायम  सदा सदा  है
चाय के साथ बिस्किट ,देते बड़ा मज़ा है

घोटू

लम्हों ने खता की थी

        लम्हों ने खता की थी

पहले मैं सोचता था,कि 'एकला चालो रे '
                  जीवन का सफर तन्हा ,लगने लगा दुखदायी
शादी के लेने फेरे ,कुछ लम्हे ही लगे थे ,
                   लम्हों ने खता की थी,सदियों ने सज़ा  पायी
जैसे ही सर मुंडाया ,ओले लगे बरसने ,
                    घर के न घाट के अब , हालत है ये बनायी
ना तो रहे इधर के ,ना ही रहे उधर के ,
                    ना चैन ही मिला और ना शांति ही मिल पायी

घोटू