किस्मत का चक्कर
तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी भी डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई न उल्फत
अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है
हरी घास जब सूखने लग गयी है,
लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा का ये कैसा करम है
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी भी डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई न उल्फत
अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है
हरी घास जब सूखने लग गयी है,
लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा का ये कैसा करम है
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'