Wednesday, September 18, 2013

दक्षिणा के साथ साथ

    दक्षिणा के साथ साथ

अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर  माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको  खाना होगा
पर इतनी सारी  केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया


छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
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मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
 टप्पा खाते रहते,दिन भर
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही मिलती रोटी  है
इसमें दुनिया दिख जाती है ,
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
हरेक सफ़र में नयी खुशबूए ,
नूतन सुन्दर चेहरे अच्छे
ऊपर नीचे आते ,जाते ,
झूले का सुख पाते बच्चे
 एक दूसरे से मिलने पर,
 हल्लो करते हुए पडोसी
न कोई अपनापन,
न कोई गर्मजोशी
बच्चों के स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाटी हुई कन्याये 
अपनी मालकिन की ,बुराइयाँ करती हुये ,
महरियाँ और  नौकर
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
 सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े साहबों के रोबीले चेहरे
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
पूरा हिंदुस्तान नज़र आये
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, बड़े चेन  में
मुझे बताया लिफ्ट मेन ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम नूतन घर में आये है

हम नूतन घर में आये है
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नए पडोसी,नयी पड़ोसन
नया चमकता सुन्दर आँगन
नूतन कमरे और वातायन
      ये  सब मन को अति भाये है
       हम नूतन घर में आये है
कोठी में थे,बड़ी शान में
थे जमीन पर ,उस मकान में
आज सातवें आसमान में
        हमने निज पर फैलायें है
        हम नूतन घर में आये है
प्यारा दिखता उगता सूरज
सुदर लगता ढलता सूरज
धूप,रोशनी,दिन भर जगमग
        नवप्रकाश में मुस्काये है
        हम नूतन घर में आये है
तरणताल में नर और नारी
गूंजे बच्चों की किलकारी
 क्लब,मंदिर,सुख सुविधा सारी
          पाकर के हम हर्शायें है
          हम नूतन घर में आये है

झरने,फव्वारे खुशियों के
शीतल,तेज हवा के झोंके
ताक झांक करने के मौके
        इस ऊंचे घर में पायें है
    
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(यह  कविता मेरे ओरंज काउंटी में
 आने के उपरान्त लिखी गयी है)

विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

 विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
 तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
जब शीतल बयार चल रही होती  थी,
सफ़ेद चादर पर ,हम दो दो चांदो को निहारते ,
तो तन में सिहरन सी होती थी
पड़े रहते थे ,हम तुम ,साथ साथ
और  मधुचंद्रिका सी होती थी,
हमारी हर रात
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़  गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें हो  गयी है
हमारी सारी  आजादी खो गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'