उमर का हमारी ये कैसा है आलम
सत्तर का है तन और सत्रह का मन
रंगे बाल हमने,किया फेशियल है
छुपाये न छुपती,मगर ये उमर है
होता हमारा ये दिल कितना बेकल
हसीनाएं कहती,जब बाबा या अंकल
करे नाचने मन,मगर टेढ़ा आँगन
उमर का हमारी ये कैसा है आलम
बहुत गुल खिलाये ,जवानी में हमने
उबलता था पानी,लगी बर्फ जमने
भले ही न हिम्मत बची तन के अन्दर
गुलाटी को मचले है ,मन का ये बन्दर
कटे पर है ,उड़ने को बेताब है मन
उमर का हमारी ,ये कैसा है आलम
सत्तर का है तन और सत्रह का मन
रंगे बाल हमने,किया फेशियल है
छुपाये न छुपती,मगर ये उमर है
होता हमारा ये दिल कितना बेकल
हसीनाएं कहती,जब बाबा या अंकल
करे नाचने मन,मगर टेढ़ा आँगन
उमर का हमारी ये कैसा है आलम
बहुत गुल खिलाये ,जवानी में हमने
उबलता था पानी,लगी बर्फ जमने
भले ही न हिम्मत बची तन के अन्दर
गुलाटी को मचले है ,मन का ये बन्दर
कटे पर है ,उड़ने को बेताब है मन
उमर का हमारी ,ये कैसा है आलम