नारी जीवन
कितना मुश्किल नारी जीवन
उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन
कितना मुश्किल नारी जीवन
जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया बचपन
उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन
माता,पिता,भाई बहनो की , यादें आकर बहुत सताए
एक पराया , बनता अपना , अपने बनते ,सभी पराये
नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन
कितना मुश्किल नारी जीवन
कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट जाती
नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत आती
कभी पतिजी बात न माने , कभी सास देती है ताने
कुछ न सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने
कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन
कितना मुश्किल नारी जीवन
इसी तरह की उहापोह में ,थोड़े दिन पड़ता है तपना
फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ लगने लगता अपना
बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन
कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन
किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन
कितना मुश्किल नारी जीवन
बेटा ब्याह, बहू जब आती ,पड़े सास का फर्ज निभाना
तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना
बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती
पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती
यूं ही बुढ़ापा काट जाता है ,पढ़ते गीता और रामायण
कितना मुश्किल नारी जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'