अलग अलग मापदंड
सत्तासीनों का दम्भ ,रौब ,स्वाभिमान हमारा, है घमंड
अलग अलग लोगों खातिर ,क्यों अलग अलग है मापदंड
कान्हा माखनचोरी करते ,वो बचपन क्रीड़ा कहलाती
हम करें जरा सी भी चोरी ,तो जेल हमे है हो जाती
वो गोपी छेड़े ,चीर हरे ,तो वह होती उसकी लीला
हम वैसा करें मार डंडे ,पोलिस कर देती है ढीला
उनके तो है सौ खून माफ़ ,हम गाली भी दें ,मिले दंड
अलग अलग लोगो खातिर क्यों अलग अलग है मापदंड
है मुर्ख ,भोगती पर सत्ता ,सत्तरूढ़ों की संताने
हो रहे उपेक्षित बुद्धिमान ,कितने ही जाने पहचाने
कितने लड्डू प्रसाद चढ़ते ,मंदिर में पत्थर मूरत पर
और हाथ पसारे कुछ भूखे ,भिक्षा मांगे मंदिर पथ पर
कोई को मट्ठा भी न मिले ,कोई खाता है श्रीखंड
अलग अलग लोगो खातिर क्यों अलग अलग है मापदंड
कोई प्रतियोगी अधिक अंक ,पाकर भी जॉब नहीं पाते
कुछ वर्गों को आरक्षण है ,कुर्सी पर काबिज़ हो जाते
लायक होने की कद्र नहीं ,जाती विशेष आवश्यक है
कितने ही प्रतिभावानों का ,मारा जाता यूं ही हक़ है
कोई उड़ता है बिना पंख ,कोई के सपने खंड खंड
अलग अलग लोगों खातिर ,क्यों अलग अलग है मापदंड
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '