Thursday, September 22, 2022

प्रकृति प्रेम 

वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
 लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं 
 ईश्वर की कोई सुंदर कृति,
  देखूं,और प्रेम नहीं जागे 
  
  उस परमपिता परमेश्वर ने,
  इतना कुछ निर्माण किया ,
  सौभाग्य मेरा उनके दर्शन,
  यदि मुझे जाए मिल बिन मांगे
  
 इतनी सुंदर प्रभु रचनाएं 
 मैं रहूं देखता मनचाहे 
 बहती नदिया, गाते निर्झर
 हिम अच्छादित उत्तंग शिखर
  तारों से जगमग नीलांबर 
  लहरें उछालते महासागर 
  और उगते सूरज की लाली 
  घनघोर घटाएं मतवाली
   प्रकृति की रम्य छटा सुंदर ,
   कुछ नहीं मनोहर उस आगे 
   वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
   लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं,
    ईश्वर की कोई सुंदर कृति ,
    देखूं ,और प्रेम नहीं जागे 
    
सुंदर सुडोल कंचन सा तन 
और उस पर चढ़ा हुआ यौवन
कोमल कपोल, कुंतल काले 
और अधर रसीले मतवाले 
सुंदर सांचे में ढली देह
दिखलाए मुझ पर अगर नेह
एसी सुंदरता की मूरत 
का अगर रूप रसपान करूं,
 मैं उसे निहारु मंत्रमुग्ध 
 और प्यार मेरे मन में जागे
  वैसे तो मैं अब युवा नहीं 
  लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं
  ईश्वर की कोई सुंदर कृति, 
  देखूं और प्रेम नहीं जागे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पता ही न लगा 

बचपन की खींची ,
आड़ी तिरछी रेखाएं ,
जाने कब अक्षर बन गई 
और अक्षरों का जमावड़ा ,
जाने कब कविता बन गया ,
पता ही न लगा

बचपन की आंख मिचोली ,
बड़े होते होते
कब आंखों का मिलन 
और प्यार में परिवर्तित हो गई ,
पता ही न लगा 

बालपने की चंचलता,
 कब जवानी की उद्दंडता मे बदल गई
 और पंख लगा कर कब समय
  बुढ़ापे की कगार पर ले आया,
  पता ही न लगा

  रोज-रोज ,
  गृहस्थी की उलझनों में उलझे हुए हम,
  उन्हे सुलझाते सुलझाते,
  अपने लिए कुछ भी नहीं कर पाए,
  और विदा की बेला आ गई,
  पता ही न लगा

देखते ही देखते,
हमारी मानसिकता
और लोगों के व्यवहार में
कितना परिवर्तन आ गया,
पता ही न लगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
चांडाल चौकड़ी 

यह सारे उत्दंड तत्व है,
ईर्षा, द्वेष,मोह और माया
इस चंडाल चौकड़ी ने ही,
मिलकर है उत्पात मचाया 
 जग के हर झगड़े की जड़ में 
 हर फसाद में ,हर गड़बड़ में 
 जब भी हमने कारण ढूंढा, 
 छुपा इन्ही तत्वों को पाया 
 
देख फूलता फलता कोई ,
उससे जलना मन ही मन में 
और किसी से द्वेष पालना 
हरदम दुख देता जीवन में

होती प्रगति देख किसी की 
मन लाओ लहर खुशी की 
जिसने भी ये पथ अपनाया  
सच्चा सुख है उसने पाया 
ये सारे उदंड तत्व हैं
ईर्षा, द्वेष मोह और माया

मन जो उलझा अगर मोह में 
तो बिछोह में दुख होता है 
जो फसता माया चक्कर में ,
निज सुखचैन सभी खोता है 

जर,जमीन, जोरू के झगड़े ,
में कितने ही घर है उजड़े
इनमे जो भी कोई उलझा,
होकर दुखी ,बहुत पछताया
ये सारे उदंड तत्व हैं,
ईर्षा, द्वेष, मोह और माया

मदन मोहन बाहेती घोटू