Thursday, September 29, 2022

रावण दहन 

हे प्रभु तू अंतर्यामी है 
बदला मुझ में क्या खामी है 
ताकि समय रहते सुधार दूं,
जितनी अधिक सुधर पानी है 

मानव माटी का पुतला है 
अंतर्मन से बहुत भला है 
काम क्रोध लोभ मोह ने 
अक्सर इसको बहुत छला है 

कई बार लालच में फंसकर 
पाप पुण्य की चिंता ना कर
कुछ विसगतियां आई होगी, 
भटका होगा गलत राह पर 

और कभी निश्चल था जो मन 
पुतला एक गलतियों का बन 
ज्ञानी था पर अहंकार ने, 
उसको बना दिया हो रावण 

प्रभु ऐसी सद्बुद्धि ला दो 
अंधकार को दूर भगा दो 
आज दशहरे का दिन आया 
उस रावण का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती घोटू
तब और अब 

पहले जब कविता लिखता था 
रूप बखान सदा दिखता था 

रूप मनोहर ,गौरी तन का 
चंदा से सुंदर आनन का 
मदमाते उसके यौवन का 
बल खाते कमनीय बदन का 
हिरनी सी चंचल आंखों का 
उसकी भावभंगिमाओं का 
हर पंक्ति में रूप प्रशंसा 
उसको पा लेने की मंशा 
मन में रूप पान अभिलाषा 
रोमांटिक थी मेरी भाषा 
मस्ती में डूबे तन मन थे 
वे दिन थे मेरे योवन के 
रहूं निहारता सुंदरता को, 
ध्यान न और कहीं टिकता था 
पहले जब कविता लिखता था

अब जब मैं कविता लिखता हूं 
कृष काया , बूढ़ा दिखता हूं

बचा जोश ना ,ना उमंग है 
बदला जीवन रंग ढंग है 
तन और मन सब थका थका है 
बीमारी ने घेर रखा है 
अब आया जब निकट अंत है
मेरा मन बन गया संत है 
याद आते प्रभु हर पंक्ति में 
डूबा रहता मन भक्ति में 
बड़ी आस्था सब धर्मों में 
दान पुण्य और सत्कर्मों में 
उम्र बढ़ रही ,बदला चिंतन 
पल-पल ईश्वर का आराधन 
पुण्य कमा लो इसी भाव में ,
हरदम मैं खोया दिखता हूं 
अब जब मैं कविता लिखता हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, September 26, 2022

देवी वंदना 

1
नवरात्रि में पूज लो, माता के नव रूप 
सुंदर प्यारे मनोहर, सब की छवि अनूप 
सब की छवि अनूप, देख कर श्रद्धा जागे मनोकामना पूर्ण करें, मैया बिन मांगे 
आशीर्वाद मांगता , घोटू भक्त तुम्हारा 
बिमारी से मुझे ,दिला दो मां छुटकारा 
2
माता तू ही देख ले, तेरा भक्त बीमार 
दृष्टि कृपा की डालकर ,कर दे तू उपचार
 कर दे तू उपचार, प्यार अपना बरसा दे 
 फिर से नवजीवन की मन में आस जगा दे 
सुमरूं तेरा नाम ,काम पूरण सब कर लूं
और करूं सत्कर्म,पुण्य से झोली भर लूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मातृ वंदना

1
 हे माता यह वंदना , है अब की नवरात्र 
 अपने आशीर्वाद का, मुझे बना ले पात्र 
 मुझे बना ले पात्र ,देवी ममता की मूर्ती 
 मुझे स्वस्थ कर ,भर दे पहले जैसी फुर्ती 
 माता तेरी कृपा दृष्टि का मैं हूं प्यासा 
 करूं तेरा गुणगान ,पूर्ण कर दे अभिलाषा
 2
 माला लेकर हाथ में , जपूं तुझे दिन रात 
 मेरी जीवन डोर है , मईया तेरे हाथ 
 मईया तेरे हाथ, ज्ञान बल धन की दाता 
 सरस्वती दुर्गा लक्ष्मी ,तू भाग्य विधाता 
 तू सबकी मां, मैं भी तो हूं तेरा बेटा 
 कर दे स्वस्थ मुझे ,मैं आस लगाए बैठा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 22, 2022

प्रकृति प्रेम 

वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
 लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं 
 ईश्वर की कोई सुंदर कृति,
  देखूं,और प्रेम नहीं जागे 
  
  उस परमपिता परमेश्वर ने,
  इतना कुछ निर्माण किया ,
  सौभाग्य मेरा उनके दर्शन,
  यदि मुझे जाए मिल बिन मांगे
  
 इतनी सुंदर प्रभु रचनाएं 
 मैं रहूं देखता मनचाहे 
 बहती नदिया, गाते निर्झर
 हिम अच्छादित उत्तंग शिखर
  तारों से जगमग नीलांबर 
  लहरें उछालते महासागर 
  और उगते सूरज की लाली 
  घनघोर घटाएं मतवाली
   प्रकृति की रम्य छटा सुंदर ,
   कुछ नहीं मनोहर उस आगे 
   वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
   लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं,
    ईश्वर की कोई सुंदर कृति ,
    देखूं ,और प्रेम नहीं जागे 
    
सुंदर सुडोल कंचन सा तन 
और उस पर चढ़ा हुआ यौवन
कोमल कपोल, कुंतल काले 
और अधर रसीले मतवाले 
सुंदर सांचे में ढली देह
दिखलाए मुझ पर अगर नेह
एसी सुंदरता की मूरत 
का अगर रूप रसपान करूं,
 मैं उसे निहारु मंत्रमुग्ध 
 और प्यार मेरे मन में जागे
  वैसे तो मैं अब युवा नहीं 
  लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं
  ईश्वर की कोई सुंदर कृति, 
  देखूं और प्रेम नहीं जागे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पता ही न लगा 

बचपन की खींची ,
आड़ी तिरछी रेखाएं ,
जाने कब अक्षर बन गई 
और अक्षरों का जमावड़ा ,
जाने कब कविता बन गया ,
पता ही न लगा

बचपन की आंख मिचोली ,
बड़े होते होते
कब आंखों का मिलन 
और प्यार में परिवर्तित हो गई ,
पता ही न लगा 

बालपने की चंचलता,
 कब जवानी की उद्दंडता मे बदल गई
 और पंख लगा कर कब समय
  बुढ़ापे की कगार पर ले आया,
  पता ही न लगा

  रोज-रोज ,
  गृहस्थी की उलझनों में उलझे हुए हम,
  उन्हे सुलझाते सुलझाते,
  अपने लिए कुछ भी नहीं कर पाए,
  और विदा की बेला आ गई,
  पता ही न लगा

देखते ही देखते,
हमारी मानसिकता
और लोगों के व्यवहार में
कितना परिवर्तन आ गया,
पता ही न लगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
चांडाल चौकड़ी 

यह सारे उत्दंड तत्व है,
ईर्षा, द्वेष,मोह और माया
इस चंडाल चौकड़ी ने ही,
मिलकर है उत्पात मचाया 
 जग के हर झगड़े की जड़ में 
 हर फसाद में ,हर गड़बड़ में 
 जब भी हमने कारण ढूंढा, 
 छुपा इन्ही तत्वों को पाया 
 
देख फूलता फलता कोई ,
उससे जलना मन ही मन में 
और किसी से द्वेष पालना 
हरदम दुख देता जीवन में

होती प्रगति देख किसी की 
मन लाओ लहर खुशी की 
जिसने भी ये पथ अपनाया  
सच्चा सुख है उसने पाया 
ये सारे उदंड तत्व हैं
ईर्षा, द्वेष मोह और माया

मन जो उलझा अगर मोह में 
तो बिछोह में दुख होता है 
जो फसता माया चक्कर में ,
निज सुखचैन सभी खोता है 

जर,जमीन, जोरू के झगड़े ,
में कितने ही घर है उजड़े
इनमे जो भी कोई उलझा,
होकर दुखी ,बहुत पछताया
ये सारे उदंड तत्व हैं,
ईर्षा, द्वेष, मोह और माया

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, September 20, 2022

आग लगी है 

कोई नहीं चैन से बैठा, 
ऐसी भागम भाग लगी है,
 महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
घी और तेल, गेंहू और चावल 
दिन दिन महंगे होते जाते 
दाम दूध के और दही के ,
आसमान को छूते जाते 
सब्जी महंगी, फल भी महंगे ,
महंगे कपड़े ,जूते चप्पल 
यातायात हो गया महंगा, 
मंहगे पेट्रोल और डीजल 
कैसे कोई करे गुजारा ,
सभी तरफ बढ़ रही ठगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है, 
हर एक चीज में आग लगी है

पांच रुपए था, कभी समोसा,
अब है बीस रूपए में आता 
महंगा हुआ चाय का प्याला ,
मुंह से गले उतर ना पाता 
दाल और रोटी खाने वाले,
के अब कम हो गए निवाले
अब गरीब और मध्यमवर्गी
कैसे घर का खर्च संभाले 
पेट नहीं भरता भाषण से ,
जबकि पेट में भूख जगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
 आग लगी है जनसंख्या में,
 बढ़ती ही जाती आबादी
 सीमा पर कर रहे उपद्रव,
 कुछ आतंकी और उन्मादी  
 आग लगी है बेकारी की,
  सभी तरफ है मारामारी 
  अर्थव्यवस्था डूब रही है ,
  आवश्यक है जाए संभाली
  मगर देश को कैसे लूटें,
  नेताओं में होड़ लगी है 
  महंगाई से सभी त्रस्त हैं,
  हर एक चीज में आग लगी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 15, 2022

प्रभु कृपा

मैंने बहुत शान शौकत से ,
अभी तलक जीवन दिया है
 मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
 पर तूने भरपूर दिया है 
 
तू तो सबका परमपिता है ,
सब बच्चों का तुझे ख्याल है 
तेरे लिए बराबर सब है 
और सभी से तुझे प्यार है 

तरसे सदा लालची लोभी
माला माल मगर संतोषी 

जिसने जो प्रवर्ती अपनाली,
उसने वह व्यवहार किया है 
मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
पर तूने भरपूर दिया है

आज भोगते हैं हम ,फल है,
 किए कर्म का पूर्व जनम में 
 इसीलिए सौभाग्य ,दरिद्री ,
 का अंतर होता है हम में

 जैसे कर्म किए हैं संचित
  सुखी कोई है कोई वंचित 
  
  सत्कर्मों से झोली भर लो ,
  प्रभु ने मौका तुम्हे दिया है 
  मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
  पर तूने भरपूर दिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, September 11, 2022

पुनर्वालोकन 

जाने अनजाने मुझसे कुछ 
गलती कहीं हुई ही होगी ,
वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
मुझ को कष्ट न देता इतने 
वह सब खुशियों का दाता है 
परमपिता है भाग्य विधाता
 प्यार लुटाता संतानों पर,
 है उपकार लुटाता कितने
 
 बचपन में हम जब शैतानी
  करते, पिता पिटाई करते 
  दोषी कभी,कभी निर्दोषी 
  आपस में बस यूं ही झगड़ते 
  इन भोले भाले  झगड़ों में 
  लेकिन राग द्वेष ना होता 
  किंतु बाद में इर्षा से जब,
   कोई अपना धीरज होता 
   उससे पाप कर्म हो जाता
    तो वह गलती निंदनीय है 
    हमें भोगना ही पड़ता है 
    उसका फल इस ही जीवन में 
    जाने अनजाने मुझसे कुछ 
    गलती कही हुई ही होगी ,
    वरना कृपासिंधु परमेश्वर 
    मुझको कष्ट देता है इतने 
    
इसीलिए ये ही अच्छा है
 गलती की है , तुरंत सुधारो 
 मन में चुभन ना हो कोई के 
 क्षमा मांग कर , बैर विसारो
 अंतःकरण शुद्ध कर अपना 
 सारा जीवन जियो प्यार से 
 जीवन में शांति मिलती है 
 सब के प्रति अच्छे विचार से 
 गलती से, गलती हो जाए,
 धो दो बहा क्षमा की गंगा,
 वरना पापों की झोली फिर,
 देती कष्ट लगे जब भरने
 जाने अनजाने मुझसे कुछ
  गलती कहीं हुई ही होगी 
  वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
  मुझको कष्ट न देता है इतने 
  
तन के रोग मानसिक चिंता 
उन्हीं पाप कर्मों का फल है 
जो संचित हो करके सारे ,
करते रहते तुम्हें विकल है 
तुम जो चिंता मुक्त रहोगे 
तो दुख पास नहीं फटकेंगे
 तुम जिनके दुख दूर करोगे 
 वे सब तुम्हें दुआएं देंगे 
 शांतिपूर्ण जीवन जीने का,
  यही तरीका सर्वोत्तम है 
  तुम उतने सुख के भागी हो 
  पाप कर्म  कम होते जितने
  जाने अंजाने मुझसे कुछ,
  गलती कहीं हुई ही होगी,
  वर्ना कृपासिंधु परमेश्वर,
  कष्ट न देता मुझको इतने

मदन मोहन बाहेती घोटू 
हार या जीत

 मैंने विगत कई वर्षों से 
 करी दोस्ती संघर्षों से 
 अपने हक के लिए लड़ा मैं 
 और लक्ष्य की और बढ़ा मैं
 कभी लड़खड़ा गिरा, उठा मै
  लेकर दूना जोश ,जुटा मैं 
  लड़ा किसी से, हाथ मिलाया 
  मैंने धीरज नहीं गमाया 
  बढ़ा सदा उम्मीदें लेके
  कभी न अपने घुटने टेके 
  जीत मिली तो ना गर्वाया
  हार मिली तो ना शरमाया 
  नहीं किसी के देखा देखी 
  मैंने कभी बघारी  शेखी
  मन में कभी क्षोभ ना पाला 
  किसी चीज का लोभ न पाला
  बस ऐसे ही जीवन बीता 
  पता नहीं हारा या जीता


मदन मोहन बाहेती घोटू
मूषक चिंतन 

जब मिष्ठान का प्रेमी मूषक ,
चोरी चोरी कुतर कुतर कर खाने की,
अपनी आदत को छोड़ ,
अपने स्वामी के चरणों पर चढ़ाए गए,
 मोदक के थाल की सुरक्षा में तत्पर होकर, अनुशासन में बंध जाता है
 तो गणेश जी के वाहन 
 बनने का हकदार हो जाता है 
 
अपने व्यक्तिगत लाभ
 या लालसा को पूरी करने की उत्कंठा
 जब कर्तव्य परायणता में बदल जाती है 
 तो वह तुम्हें अपनी पीठ पर,
  गणेश जी को बैठाने की योग्यता दिलवाती है 
  
तो ए मेरे देश के नेताओं,
तुम भी मूषक सा बन जाओ 
अपने देश की व्यवस्थाओं को कुतर कुतर कर, खोखला मत करो बल्कि 
लोभ और लालच को त्याग,
अपने देश और देशवासियों की,
सुरक्षा के लिए तत्पर हो जाओ 
और देश के गणराज्य में ,
गणपति का वाहन कहलाने का सम्मान पाओ

अपने व्यक्तित्व में इतना निखार लाओ
  सबके इतने विश्वास पात्र बन जाओ 
 कि लोग अपने मन की बात 
 तुम्हारे कानों में विश्वास से कह कर
 गणपति तक पहुंचा सके 
 
 तुम भी गणेश जी का विश्वास पा लोगे 
 अगर अपने आचरण में 
 मूषक तत्व जगा लोगे 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, September 5, 2022

श्री कृष्ण जी के जीवन से
 सीखो कैसे जीवन जीते 
मस्ती भरा हुआ हो बचपन 
यौवन संघर्षों में बीते 
और बुढ़ापा सागर तीरे ,
पड़े काटना तनहाई में 
जब परिवार के भाई बंधु,
 उलझे आपस की लड़ाई में 
 
बचपन में नन्हे कान्हा सा ,
प्यार यशोदा मां का पाओ
गोप गोपियों के संग खेलो ,
हांडी फोड़ों ,माखन खाओ 
राधा संग प्रेम में डूबो,
 वृंदावन में रास रचाओ
 और बजा मधुर मुरली की ताने,
  ब्रज में प्यार सभी का पाओ

  फिर यौवन में कंस हनन कर ,
  राजनीति के बनों खिलाड़ी 
  जरासंध और शिशुपाल पर 
  पड़ो सुदर्शन लेकर भारी 
  कौरव पांडव के झगड़ों में
  बन मध्यस्थ उन्हें निपटाओ
महाभारत में बनो सारथी,
ना कोई भी शस्त्र उठाओ

और फिर जब इन संघर्षों से
लगे ऊबने तुम्हारा मन
तो फिर शान्ति की तलाश में,
सागर तट पर काटो जीवन  
बसा द्वारका सुंदर नगरी,
राज करो उसके शासक बन
 इतना प्यार लुटाओ सब में 
 पूजे लोग ,मान कर भगवन 
 
शांति पूर्वक कटे बुढ़ापा 
अंत समय तुम रहो अकेले
साथ नहीं हो संगीसाथी,
जिनके लिए कष्ट सब झेले
अपनो के ही तीरों हो,
चोटिल परमधाम को जाओ
नटखट बचपन उलझा यौवन
जीवन अपना यूं ही बिताओ

मदन मोहन बाहेती घोटू

हिप हिप हुर्रे,हिप हिप हुर्रे
 नेता बन उड़ाओ गुलछर्रे 
 
पैसा हो जो अगर पास में 
हो कुछ धंधे की तलाश में 
करना अगर कहीं इन्वेस्ट 
लड़ो चुनाव, यह निवेश बेस्ट 
बनो विधान सभा एमएलए 
और वह भी स्वतंत्र अकेले 
सीख लो थोड़ी भाषणबाजी
कहलाओगे तुम नेताजी
मिली-जुली आए सरकार 
मंत्री पद निश्चित है यार 
बढ़ जाएंगे भाव तुम्हारे 
हो जाएंगे वारे न्यारे 
पांचों उंगली होगी घी में 
खाओ कमाओ आए जो जी में 
उलटफेर का आए मौका 
सत्ता दल को देकर धोखा 
गए पार्टी को जो छोड़
तुम्हें मिलेंगे कई करोड़
और रिसोर्ट में मौज उड़ाओ 
मनचाहा पियो और खाओ 
लगे न हींग, फिटकरी हर्रे 
 खूब उड़ाओ तुम गुलछर्रे 
 हिप हिप हुर्रे हिप हिप हुर्रे

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 1, 2022

धन्यवाद

 यह सब किस्मत का फेरा था
  मुझे बीमारी ने घेरा था 
इतना  ज्यादा मैं घबराया,
 आंखों आगे अंधेरा था
  इतनी ज्यादा कमजोरी थी 
  चलना फिरना भी दूभर था 
  बचा नहीं था दम पैरों में,
  और पूरा तन ही जर्जर था 
  तबीयत थी इतनी घबराई 
  लगता था अंतिम घड़ी आई 
  तब डॉक्टर ने देवदूत बन
  किया इलाज दिया नवजीवन
   शुभचिंतक ने सच्चे मन से 
   करी प्रार्थना थी भगवन से 
   दुआ, दवा ने असर दिखाया 
   मैं विपदा से बाहर आया 
   धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ कर 
   मेरी हालत अब है बेहतर 
   पूर्ण स्वस्थ होने में लेकिन
    अभी लगेंगे कितने ही दिन 
    आप सभी से विनती इतनी
    कृपा बनाए रखना अपनी
    
    धन्यवाद
मदन मोहन बाहेती घोटू 
अंधे की रेवड़ी 

लग जाती है रेवड़ी, जब अंधे के हाथ 
वह अपनों को बांटता, भरकर दोनों हाथ
भरकर दोनों हाथ, मुफ्त का माल लुटाता 
दरिया दिली दिखाकर, वाही वाही पाता 
बदले में कुछ नहीं कृपा इतनी कर देना 
बसअगले चुनाव में वोट मुझी को देना

घोटू 
मन की बात

 तेरे मन की बात और है
  मेरे मन की बात और है
  यूं तो बंधे कई बंधन में 
  रिश्ते नाते ,भाई बहन में 
  मगर सात फेरों का बंधन ,
  इस बंधन, की बात और है
  तेरे मन की बात और है 
  मेरे मन की बात और है
  
 यूं तो छाते, काले बादल ,
 सबके मन को है हर्षाते
 रिमझिम रिमझिम रिमझिम रिमझिम ,
 मोती की बूंदे बरसाते
 पर जिस बारिश हम तुम भीगे ,
 उस सावन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है
 मेरे मन की बात और है


 राधा कृष्ण प्रेम गाथाएं,
 बृज की गली गली में फैली 
 मोह रही है ,गोपी के संग ,
 छेड़ाछेड़ी वह अलबेली 
 महारास पर जहां रचा, 
 उस वृंदावन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है 
 मेरे मन की बात और है

 रहे भटकते हम जीवन भर 
 आज यहां ,कल वहां बिताया 
 जैसा लेख लिखा नियति ने 
 वैसा खेला कूदा खाया 
 पर जिस आंगन बचपन बीता 
 उस आंगन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है
 मेरे मन की बात और है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ओ गिरधारी, छवि तुम्हारी 
मुझको एक बार दिखला दो 
गोप गोपियों पर बरसाया,
 वही प्यार मुझ पर बरसा दो 
 यमुना तट पर ,बंसी वट की,
  बस थोड़ी सी छैया दे दो 
  राधा के संग रास रचाते 
  दर्शन ,कृष्ण कन्हैया दे दो 
  
माटी खाते , मुंह खुलवाते,
तीन लोक की छवि दिखला दो 
चोरी-चोरी ,हंडिया फोड़ी,
बस उसका मक्खन चखवा दो 
कान उमेठ, पेड़ से बांधे ,
मुझे जसोदा मैया दे दो 
राधा के संग रास रचाते ,
दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 

बृज कानन में, मुरली की धुन,
 मुझको भी पड़ जाए सुनाई 
 धेनु चलाते, बस मिल जाए ,
 कान्हा, दाऊ ,दोनों भाई 
 नन्हे बछड़े संग रंभाती
 मुझको कपिला गैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते ,
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 
 
बरसाने की राधा रानी ,
और गोकुल का कान्हा प्यारा 
ठुमुक ठुमुक, चलता घर भर में
हृदय मोहता, नंददुलारा,
नजर बचाने , यशुमत मैया,
 लेती हुई बलैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते 
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो

मदन मोहन बाहेती घोटू