व्यथा कथा
आओ तुम्हे सुनाएं यारों,
अपनी व्यथा कथा
अब ये कथा व्यथा या सुख की,
देना मुझे बता
जिस लड़की पर भी दिल आया ,उसने हमको घास न डाली
मुश्किल से मिल पाई बीवी,
थोड़ी ठिगनी ,थोड़ी काली
कामकाज में बड़ी निपुण थी ,
लेकिन थी तो काली कोयल
उसे साथ में लेकर जाकर ,
कभी न हम हो पाए सोशल
दोस्त पत्नियां सब थी सुंदर
मिलती जुलती रहती सज कर
और पत्नी थी होशियार पर
रहे किचन में घुसी सदा
आओ तुम्हें सुनाए यारों
अपनी व्यथा कथा
पाक कला में वो प्रवीण थी
स्वाद भरे पकवान खिलाती
सास ससुर की करती सेवा,
हम पर ढ़ेरों प्यार लुटाती
साफ और सुथरा रखती घर को
हरदम सुंदर और सजा कर
मेहमानों का स्वागत करती
हरदम खुश हो और मुस्काकर
गुण उसमें कितने ही भरे थे
सब उसकी तारीफ करे थे
मैं मूरख काले रंग को ले ,
व्यंग मारता रहा सदा
आओ तुम्हें सुनाए यारों
अपनी व्यथा कथा
गोरी पत्नी सदा सताती
होती है फैशन की मारी
उसके साज श्रृंगार को लेकर
खर्चे होते भारी-भारी
सास ससुर आंखों में चुभते
नहीं कोई मेहमान सुहाते
नहीं पकाना आता अक्सर
होटल से खाना मंगवाते
उसके नखरे से सहते सहते
पतिदेव टेंशन में रहते
काली बीवी पाकर जीवन,
सदा खुशी से रहे लदा
आओ तुम्हें सुनाये यारों
अपनी व्यथा कथा
मदन मोहन बाहेती घोटू