Wednesday, August 7, 2024

व्यथा कथा


आओ तुम्हे सुनाएं यारों,

अपनी व्यथा कथा 

अब ये कथा व्यथा या सुख की,

 देना मुझे बता 


जिस लड़की पर भी दिल आया ,उसने हमको घास न डाली 

मुश्किल से मिल पाई बीवी, 

थोड़ी ठिगनी ,थोड़ी काली 

कामकाज में बड़ी निपुण थी ,

लेकिन थी तो काली कोयल 

उसे साथ में लेकर जाकर ,

कभी न हम हो पाए सोशल 


दोस्त पत्नियां सब थी सुंदर

मिलती जुलती रहती सज कर 

और पत्नी थी होशियार पर 

रहे किचन में घुसी सदा 

आओ तुम्हें सुनाए यारों 

अपनी व्यथा कथा 


पाक कला में वो प्रवीण थी

स्वाद भरे पकवान खिलाती  

सास ससुर की करती सेवा,

हम पर ढ़ेरों प्यार लुटाती 

साफ और सुथरा रखती घर को 

हरदम सुंदर और सजा कर 

मेहमानों का स्वागत करती 

हरदम खुश हो और मुस्काकर 


गुण उसमें कितने ही भरे थे 

सब उसकी तारीफ करे थे 

मैं मूरख काले रंग को ले ,

व्यंग मारता रहा सदा 

आओ तुम्हें सुनाए यारों 

अपनी व्यथा कथा 


गोरी पत्नी सदा सताती 

होती है फैशन की मारी 

उसके साज श्रृंगार को लेकर

खर्चे होते भारी-भारी 

सास ससुर आंखों में चुभते 

नहीं कोई  मेहमान सुहाते

नहीं पकाना आता अक्सर 

होटल से खाना मंगवाते 


उसके नखरे से सहते सहते 

पतिदेव टेंशन में रहते 

काली बीवी पाकर जीवन,

 सदा खुशी से  रहे लदा 

आओ तुम्हें सुनाये यारों 

अपनी व्यथा कथा


मदन मोहन बाहेती घोटू

ओ भैया मेरे लाडले 


तू जिए हजारों साल, ओ भैया मेरे लाडले तेरा जीवन हो खुशहाल , ओ भैया मेरे लाडले 


एक मां की संताने हैं हम 

संग गुजारा,हमने बचपन 

एक मिट्टी में हम तुम खेले 

वो दिन भी थे,क्या अलबेले 

कभी दोस्ती, कभी लड़ाई 

मिलजुल हमने करी पढ़ाई


तुम चले गए कालेज और हम ससुराल चले 

तू जिये हजारों साल ,ओ भैया मेरे लाडले


भाई बहन के प्यार का रिश्ता 

सारी उमर तलक हैं निभता 

हर एक बरस जब आता सावन 

बंधता है रक्षा का बंधन 

भाई की कलाई पर बहना 

बांधती है राखी का गहना 

और बरसती है प्यार, ओ भैया मेरे लाडले तू जिये हजारों साल , ओ भैया मेरे लाडले


मदन मोहन बाहेती घोटू

मौत से निवेदन 


ऐ मौत तू आएगी ही, निश्चित तेरा आना

बस इतनी गुजारिश है जरा देर से आना


जबतक था जवां,उलझा गृहस्थी के जाल में 

हर दम ही रहा व्यस्त, कमाने को माल मैं 


यूं वक्त खिसकता गया और आया बुढ़ापा

अपने में भी मैंने दिया तब ध्यान जरा सा


 भगवान ने इतनी हसीं दुनिया यह बनाई 

कुछ भी मजा लिया न ,यूं ही उम्र गमाई


जितनी बची है जिंदगी, कुछ ऐश मैं कर लूं

भगता उम्र का भूत ,लंगोटी ही पकड़ लूं


 आनंद से है उम्र बची मुझको बिताना  

ऐ मौत गुजारिश है ,जरा देर से आना


कितनी ही मेरी ख्वाइशें अब तक है अधूरी

मैं चाहता हूं जीते जी कर लूं उन्हें पूरी


कितनों के ही एहसान है,मैं उनको चुका दूं

सतकर्म में, मैं,अपनी उमर बाकी लगा दूं 


काटू बुढ़ापा ऐश और आराम करूं मैं

गगरी को अपने कर्म की पुण्यों से भरूं मैं


 सब पाप धो दूं गंगा में ,जीवन सुधार लूं

कुछ दान धर्म कर लूं ,प्रभु को पुकार लूं


 अगले जन्म के वास्ते हैं पुण्य कमाना  

ऐ मौत गुजारिश है कि ज़रा देर से आना


मदन मोहन बाहेती घोटू