बारिश का मज़ा
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बरस रहा हो पानी रिमझिम
और साथ में हो मै और तुम
छोटी सी छत्री के नीचे
दोनों संग संग भीजे भीजे
एक दूजे के तन से सट के
हो जाते है ,कुछ पागल से
तू भी व्याकुल,आँखे मूंदे
मोती सी पानी की बूँदें
बह कर के तेरे बालों से
चमक रही तेरे गालों पर
और गरजते है जब बादल
सहमा करती तू डर डर कर
तड़ित चमकती,तू डर जाती
मुझसे लिपट लिपट सी जाती
तेरे भीगे तन को छूकर
मुझ में गर्मी सी जाती भर
गीले तन से चिपका आँचल
कर देता है मुझको पागल
मन कहता घन रहे बरसते
पानी में हम रहे तरसते
मज़ा प्यास का मगर अजब है
बारिश का रोमांस गजब है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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