हश्र-शादी का
अपनी हथेलियों पर ,हमने उन्हें बिठाया ,
वो अपनी उँगलियों पर ,हमको नचा रही है
हमने तो मांग उनकी ,सिन्दूर से भरी थी,
मांगों को उनकी भरने में ,उम्र जा रही है
जबसे बने है दूल्हे,सब हेकड़ी हम भूले,
बनने के बाद वर हम,बरबाद हो गए है
जब से पड़ा गले में ,है हार उनके हाथों,
हारे ही हारे हैं हम, नाशाद हो गए है
शौहर बने है जबसे ,भूले है अपने जौहर ,
वो मानती नहीं है,हम थक गए मनाते
पतियों की दुर्गती है,विपति ही विपत्ति है,
रूह उसकी कांपती है, बीबी की डॉट खाते
हम भूल गए मस्ती,गुम हो गयी है हस्ती,
चक्कर में गृहस्थी के, बस इस कदर फसें है
घरवाले उनके बन कर,हालत हुई है बदतर ,
घर के भी ना रहे हम,और ना ही घाट के है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अपनी हथेलियों पर ,हमने उन्हें बिठाया ,
वो अपनी उँगलियों पर ,हमको नचा रही है
हमने तो मांग उनकी ,सिन्दूर से भरी थी,
मांगों को उनकी भरने में ,उम्र जा रही है
जबसे बने है दूल्हे,सब हेकड़ी हम भूले,
बनने के बाद वर हम,बरबाद हो गए है
जब से पड़ा गले में ,है हार उनके हाथों,
हारे ही हारे हैं हम, नाशाद हो गए है
शौहर बने है जबसे ,भूले है अपने जौहर ,
वो मानती नहीं है,हम थक गए मनाते
पतियों की दुर्गती है,विपति ही विपत्ति है,
रूह उसकी कांपती है, बीबी की डॉट खाते
हम भूल गए मस्ती,गुम हो गयी है हस्ती,
चक्कर में गृहस्थी के, बस इस कदर फसें है
घरवाले उनके बन कर,हालत हुई है बदतर ,
घर के भी ना रहे हम,और ना ही घाट के है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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