रूढ़ियाँ
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
आज भी चिपकी हुई, रहती हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते कदम
आधुनिक से आधुनिकतम ,सुरक्षित,सुविधाजनक ,
खरीदा करते कई लाखों की मंहगी कार हैं
किन्तु पूजा करके नीबू चार लेकर सड़क पर,
चार पहियों से दबाना ,आज भी बक़रार है
शुभ मुहूर्त देखते रहते है और हर काम में,
दिशाशूलम,राहुकालम,आज भी है रोकता
आज भी हम ठिठक जाते और लगता है बुरा ,
निकलते जब कहीं जाने और कोई टोकता
काम यदि जो बन न पाये कुछ भी हो कारण भले ,
और यदि जो कुछ बुरा उस दिन हमारे संग हुआ
अपनी कमजोरी या कमियां ,कुछ नहीं आती नज़र ,
सुबह मुंह देखा था जिसका ,उसे देते बददुआ
ठेकेदारी धर्म की पण्डे और पंडित कर रहे ,
भागवत की कथाएं अब बन गयी व्यापार है
कुटिल साधू संत के संग,चल रहा सत्संग है,
पुरानी सब संस्कृति का ,हुआ बंटाधार है
ज्योतिषी को जन्मपत्री ,हस्त रेखाएं दिखा ,
हम ग्रहों का शांति पूजन ,कराते हर रोज है
महिमामंडित खुद को कितना भी करें हम शान से ,
सत्य यह ,अब भी हमारी ,बड़ी कुंठित सोच है
सवेरे दूकान ,ठेले और हर शोरूम पर ,
नीबू और मिर्ची पिरोये ,लटकते मिल जाएगे
हम कहाँ थे ,और कहाँ है और कहाँ तक जाएंगे ,
पर पुरानी मान्यताएं ,क्या बदल हम पाएंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
आज भी चिपकी हुई, रहती हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते कदम
आधुनिक से आधुनिकतम ,सुरक्षित,सुविधाजनक ,
खरीदा करते कई लाखों की मंहगी कार हैं
किन्तु पूजा करके नीबू चार लेकर सड़क पर,
चार पहियों से दबाना ,आज भी बक़रार है
शुभ मुहूर्त देखते रहते है और हर काम में,
दिशाशूलम,राहुकालम,आज भी है रोकता
आज भी हम ठिठक जाते और लगता है बुरा ,
निकलते जब कहीं जाने और कोई टोकता
काम यदि जो बन न पाये कुछ भी हो कारण भले ,
और यदि जो कुछ बुरा उस दिन हमारे संग हुआ
अपनी कमजोरी या कमियां ,कुछ नहीं आती नज़र ,
सुबह मुंह देखा था जिसका ,उसे देते बददुआ
ठेकेदारी धर्म की पण्डे और पंडित कर रहे ,
भागवत की कथाएं अब बन गयी व्यापार है
कुटिल साधू संत के संग,चल रहा सत्संग है,
पुरानी सब संस्कृति का ,हुआ बंटाधार है
ज्योतिषी को जन्मपत्री ,हस्त रेखाएं दिखा ,
हम ग्रहों का शांति पूजन ,कराते हर रोज है
महिमामंडित खुद को कितना भी करें हम शान से ,
सत्य यह ,अब भी हमारी ,बड़ी कुंठित सोच है
सवेरे दूकान ,ठेले और हर शोरूम पर ,
नीबू और मिर्ची पिरोये ,लटकते मिल जाएगे
हम कहाँ थे ,और कहाँ है और कहाँ तक जाएंगे ,
पर पुरानी मान्यताएं ,क्या बदल हम पाएंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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