अध्याय नहीं ,परिशिष्ट सही
तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम ,परिशिष्ट ही,अगर बना ,आभार करूंगा
तुम्हारी जीवनगाथा का ,नहीं पात्र जो अगर बन सका ,
फिर भी प्यार किया था तुमसे ,और जीवनभर प्यार करूंगा
मेरा तो ये मन दीवाना ,पागल ,सदा रहेगा पागल ,
चाह रहा था चाँद चूमना ,मालुम था ,पाना मुश्किल है
लेकिन इसे चकोर समझ कर ,लेना जोड़ नाम संग अपने ,
बहुत चाहता तुम्हे हृदय से ,नहीं मानता ,दिल तो दिल है
थाली में जल भर कर मैंने ,तुम्हारी छवि बहुत निहारी ,
कम से कम बस इसी तरह से ,तुम्हे पास पाया है अपने
छूता तो लहरों में छवि ,हिल ,लगता जैसे ना ना कहती ,
कर न सका महसूस तुम्हे मैं ,रहे अधूरे मेरे सपने
कभी दूज में तुम्हे निहारा ,घूंघट में आहट चेहरे की ,
देखा अपलक ,पूरा मुखड़ा ,कभी पूर्णिमा की रातों में
कभीअमावस को जब बिलकुल,नहीं नज़र आती तो लगता ,
निकली शायद मुझसे मिलने ,मैं खो जाता,जज्बातों में
मिलन हमारा नहीं हुआ पर,यही लिखा शायद नियति ने ,
किन्तु चांदनी जब छिटकेगी,मैं तुमसे अभिसार करूंगा
तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम परिशिष्ट ही ,अगर बना,आभार करूंगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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